अगर आप महंगे आइटम्स खरीदने का प्लान बना रहे हैं तो आपको उसके लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी। दरअसल 10 लाख रुपये से ज्यादा कीमत के लग्जरी आइटम्स खरीदने पर 1 फीसदी टीसीएस चुकाना होगा। इनकम टैक्स का यह नया नियम 22 अप्रैल से लागू हो चुका है। यह नया नियम इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 206सी के तहत नोटिफाय किया गया है। आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
कौन-कौन से आइटम इस नियम के दायरे में आएंगे?
इनकम टैक्स (Income Tax) के इस नए नियम का मकसद महंगे आइटम्स की खरीदारी को ट्रैक करना है। इस नियम के दायरे में लग्जरी हैंडबैग्स, हाथ की घड़ियां, डिजाइनर फुटवियर, प्रीमियम स्पोर्ट्सवियर, पेंटिंग्स, स्कल्पचर्स, एंटिक्स, कॉइन और स्टैंप्स जैसे कलेक्शन वाले आइटम्स, होम थिएटर सिस्टम्स, रेसिंग या पोलो के लिए घोड़ा, यॉट और हेलीकॉप्टर्स आएंगे। सरकार ने इस नियम को फाइनेंस एक्ट, 2025 में शामिल किया है।
TCS काटने की जिम्मेदारी किस पर होगी?
एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस नए नियम से सरकार महंगे आइट्म्स खरीदने वाले लोगों पर नजर रख सकेगी तो दूसरी तरफ इससे कंप्लायंस बढ़ाने में मदद मिलेगी। यह ध्यान में रखने वाली बात है कि जब ग्राहक लग्जरी आइटम्स खरीदेगा तो दुकानदार उसके पेमेंट के वक्त 1 फीसदी TCS चार्ज करेगा। इससे पहले से महंगे ये आइटम्स और महंगे हो जाएंगे। टीसीएस का पेमेंट ग्राहक की जेब से होगा।
टीसीएस कितनी कीमत के आइटम पर लागू होगा?
यह ध्यान में रखने वाली बात है कि सेल अमाउंट पर 1 फीसदी का TCS तभी लगेगा जब सेलिंग प्राइस 10 लाख रुपये से ज्यादा होगी। इसे हम एक उदाहरण की मदद से आसानी से समझ सकते हैं। मान लीजिए आप 30 रुपये कीमत की एक लग्जरी घड़ी खरीदते हैं। फिर दुकानदार आपसे टीसीएस के 30,000 रुपये वसूलेगा।
क्या टैक्सपेयर को क्रेडिट क्लेम करने की इजाजत होगी?
नांगिया एंडरसन एलएलपी के टैक्स पार्टनर संदीप झुनझुनवाला ने कहा कि इस नए नियम से लग्जरी सेगमेंट में ऑडिट ट्रेल को मजबूती मिलेगी। इससे यह भी पता चलता है कि सरकार का फोकस फाइनेंशियल ट्रांसपेरेंसी पर है। इस नियम में टीसीएस डिपॉजिट करने की जिम्मेदारी विक्रेता यानी दुकानदार पर डाली गई है। उसे टीसीएस अमाउंट खरीदार के PAN के साथ डिपॉजिट करना होगा। टीसीएस का यह अमाउंट टैक्सपेयर के फॉर्म 26 एएस में दिखेगा। टैक्सपेयर इनकम टैक्स रिटर्न फाइलिंग के वक्त इसे बतौर क्रेडिट क्लेम कर सकता है।
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क्या यह सैलरी पर टीडीएस काटने की तरह है?
अगर किसी टैक्सपेयर ने महंगे आइटम्स को खरीदने पर टीसीएस चुकाया है, लेकिन उसकी टैक्स लायबिलिटी टीसीएस के अमाउंट से कम है तो वह रिफंड का दावा पेश कर सकता है। यह ठीक उसी तरह से है जैसे सैलरी पर टीडीएस लगता है। एंप्लॉयर की तरफ से सैलरी से काटा गया टीडीएस अमाउंट आइटीआर फाइलिंग के वक्त एडजस्ट हो जाता है।