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सड़क हादसे के दौरान ड्राइवर का लाइसेंस एक्सपायर होने पर भी पीड़ित को मुआवजा देगी इंश्योरेंस कंपनी: बॉम्बे हाई कोर्ट

जस्टिस शिवकुमार डिगे ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक्सपायर्ड ड्राइविंग लाइसेंस के कारण बीमा कंपनी को किसी भी देनदारी से मुक्त किया गया था। अदालत ने आगे ऐसे मामले में अपील करने के मूल दावेदार के अधिकार को बरकरार रखा। साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि एक एक्सपायर लाइसेंस ये साबित नहीं कर देता कि गाड़ी चलाने वाला व्यक्ति एक 'स्किल्ड ड्राइवर' नहीं है

अपडेटेड Jun 01, 2023 पर 9:18 PM
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सड़क हादसे के दौरान ड्राइवर का लाइसेंस एक्सपायर होने पर भी पीड़ित को मुआवजा देगी इंश्योरेंस कंपनी

बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने एक बड़ा निर्देश देते हुए एक इंश्योरेंस कंपनी (Insurance Company) को सड़क हादसे में जान गंवाने वाली एक महिला के परिवार वालों को मुआवजा देने का निर्देश दिया, भले ही गाड़ी चलाने वाले का ड्राइविंग लाइसेंस एक्सपायर (Driving License) हो चुका हो। साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि एक एक्सपायर लाइसेंस ये साबित नहीं कर देता कि गाड़ी चलाने वाला व्यक्ति एक 'स्किल्ड ड्राइवर' नहीं है।

LiveLaw के मुताबिक, जस्टिस शिवकुमार डिगे ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक्सपायर्ड ड्राइविंग लाइसेंस के कारण बीमा कंपनी को किसी भी देनदारी से मुक्त किया गया था। अदालत ने आगे ऐसे मामले में अपील करने के मूल दावेदार के अधिकार को बरकरार रखा।

अदालत ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 173 में कहा गया है कि ट्रिब्यूनल के फैसले से पीड़ित कोई भी व्यक्ति अपील दायर कर सकता है। इसलिए "अपीलकर्ताओं को दावेदार होने के नाते अपील दायर करने का अधिकार है।"


क्या था ये पूरा मामला?

23 नवंबर 2011 को, मृतक आशा बाविस्कर अपने पति के साथ टू व्हिलर पर पीछे बैठी थी। तभी एक ट्रक ने उनके वाहन को ओवरटेक करने की कोशिश की। बाविस्कर उस ट्रक की चपेट में आ गई और ट्रक के पिछले पहिए की चपेट में आने से उसकी मौत हो गई।

इसके बाद ट्रिब्यूनल ने ट्रक के मालिक को मुआवजा देने का आदेश दिया, जबकि इंश्योरेंस कंपनी को क्लेम का पैसा देने से इसलिए छूट दे दी, क्योंकि घटना से चार महीने पहले ही ट्रक ड्राइवर का लाइसेंस एक्सपायर हो गया था। इसका मतलब था कि घटना के दौरान उसके पास एक वैलिड लाइसेंस नहीं था।

इसके बाद मृतका के परिवार ने इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस पर बीमा कंपनी का तर्क था कि ट्रक मालिक 'पीड़ित व्यक्ति' ही माना जाएगा और MV एक्ट की धारा 173 के तहत अपील दायर कर सकता है।

MV एक्ट में 'पीड़ित व्यक्ति' शब्द की व्याख्या नहीं की गई है और दावेदारों को केवल बीमा कंपनी से मुआवजा लेने के लिए पीड़ित व्यक्ति नहीं माना जा सकता।

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हालांकि, दुर्घटना के समय अदालत के विचार में, उल्लंघन करने वाले ट्रक का बीमा कंपनी की तरफ से बीमा किया गया था। अदालत ने कहा कि मुआवजे देना बीमा कंपनी की कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर जिम्मेदारी थी।

अदालत ने कहा, “घटना के समय जिस वाहन से हादसा हुआ उसके ड्राइवर का लाइसेंस रिन्यू नहीं था, तो इसका मतलब ये नहीं है कि वह एक कुशल चालक (Skilled Driver) नहीं था।”

आखिरकार कोर्ट ने बीमा कंपनी को मुआवजा देने और ट्रक मालिक से इसकी वसूली करने का आदेश दिया।

अदालत ने कहा, "कानून का यही स्थापित सिद्धांत है कि अगर दुर्घटना के समय ड्राइवर के पास वैलिड ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था, तो बीमा कंपनी को पहले मुआवजा देना होगा और इसे उल्लंघन करने वाले वाहन के मालिक से वसूलना होगा।"

कोर्ट ने आगे कहा कि हालांकि, आपत्तिजनक ट्रक के मालिक ने आदेश को चुनौती नहीं दी है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि दावेदार इसे चुनौती नहीं दे सकते। इसलिए, मेरा मानना ​​है कि कोई भी पीड़ित व्यक्ति अपील दायर कर सकता है।

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