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इंडियन कंपनियों की प्रॉफिट ग्रोथ एशिया में सबसे ज्यादा रहेगी: क्रिस्टोफर वुड

क्रिस्टोफर वुड ने कहा कि साल 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत तक सेंसेक्स एक लाख अंक के स्तर पर पहुंच सकता है। अभी सेंसेक्स 57,000 अंक के करीब है। इसका मतलब है कि अगले पांच साल में 70 फीसदी चढ़ सकता है। यह सालाना 11 फीसदी की ग्रोथ होगी

अपडेटेड Feb 08, 2022 पर 12:51 PM
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क्रिस्टोफर वुड ने भारत में चुनाव और बाजार के बारे में कहा कि मैं इस मसले को लेकर बिल्कुल आश्वस्त हूं, क्योंकि आम चुनाव अभी काफी दूर है। लेकिन, ऑयल की कीमतें बहुत चैलेंजिंग लग रही हैं।

कंपनियों के प्रॉफिट की ग्रोथ के लिहाज से इंडिया एशिया में नंबर वन होगा। इतना ही नहीं, इंडिया के स्टॉक मार्केट्स (Stock Markets) में 2003 और 2007 जैसी तेजी दिख सकती है। यह कहना है कि जेफरीज (Jefferies) के ग्लोबल हेड (इक्विटी स्ट्रेटेजी) क्रिस्टोफर वुड (Christopher Wood) का। सीएनबीसी टीवी-18 के साथ बातचीत में उन्होंने इंडियन मार्केट को लेकर खुलकर चर्चा की।

हाल में जारी एक रिपोर्ट में क्रिस वुड ने अगले पांच-छह साल में सेंसेक्स (Sensex) के 1,00,000 अंक के स्तर पर पहुंच जाने की उम्मीद जताई थी। उन्होंने कहा कि साल 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत तक सेंसेक्स एक लाख अंक के स्तर पर पहुंज सकता है। अभी सेंसेक्स 57,000 अंक के करीब है। इसका मतलब है कि अगले पांच साल में 70 फीसदी चढ़ सकता है। यह सालाना 11 फीसदी की ग्रोथ होगी।

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वुड ने कहा, "इंडिया में मार्केट करेक्शन पूरी तरह से लॉजिकल है, क्योंकि उभरते बाजारों में देखें तो इंडियन मार्केट अभी महंगा है। लेकिन, जो बात सबसे उत्साहजनक है, वह यह कि भारतीय शेयरों को विदेशी इन्वेस्टर्स बेच रहे हैं...और भारत को घरेलू फ्लो से लगातार अच्छा सपोर्ट मिल रहा है।"

भारत में चुनाव और बाजार के बारे में उन्होंने कहा कि मैं इस मसले को लेकर बिल्कुल आश्वस्त हूं, क्योंकि आम चुनाव अभी काफी दूर है। लेकिन, ऑयल की कीमतें बहुत चैलेंजिंग लग रही हैं। मेरी नजर में इंडियन मार्केट के सामने अभी दो बड़ी चुनौतियां हैं। पहला, फेडरल रिजर्व का सख्त मॉनेटरी पॉलिसी का प्लान और दूसरा ऑयल प्राइसेज।

उन्होंने कहा, "ऑयल प्राइसेज अब भी चढ़ रहे हैं। इसके पीछ बड़ा हाथ डिमांड का है, जो कोरोना के बाद बढ़ रही है। उधर, सप्लाई पर भी दबाव है, जिसकी वजह हाल के सालों में परंपरागत ईंधन के साधनों पर राजनीतिक हमला है।" दरअसल, भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी पेट्रोलियम आयात करता है। इसलिए क्रूड की वैश्विक कीमतें बढ़ने से इकोनॉमी के लिए मुश्किल बढ़ जाती है। क्रूड की कीमत 93 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई है।

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