Life Insurance Claim: डेथ के बाद इंश्योरेंस क्लेम पर टैक्स लगता है या नहीं? क्या कहते हैं नियम
Life Insurance Claim: बीमाधारक की मृत्यु के बाद नॉमिनी को मिलने वाला लाइफ इंश्योरेंस क्लेम आमतौर पर टैक्स फ्री होता है, लेकिन कुछ खास स्थितियों में इस पर टैक्स लग सकता है। नियम धारा 10(10D) के तहत तय होते हैं। आइए जानते हैं पूरी डिटेल।
अगर पॉलिसी डेथ बेनिफिट नहीं बल्कि मैच्योरिटी या सरेंडर वैल्यू के रूप में ली गई है और उसका प्रीमियम बीमा राशि का 10% से अधिक है, तो टैक्स छूट नहीं मिलेगी।
Life Insurance Claim: किसी प्रियजन की मृत्यु के बाद मिलने वाला जीवन बीमा (Life Insurance) क्लेम भावनात्मक और आर्थिक दोनों नजरिए से बेहद अहम होता है। लेकिन, एक सवाल कई लोगों को उलझन में डालता है, यह रकम पूरी तरह टैक्स फ्री होती है या इस पर टैक्स देना पड़ता है?
आइए विस्तार से समझते हैं कि डेथ के बाद मिलने वाले लाइफ इंश्योरेंस क्लेम पर टैक्स नियम क्या कहते हैं, किन मामलों में छूट मिलती है, और किन मामलों में टैक्स देना पड़ सकता है।
इंश्योरेंस क्लेम पर टैक्स को लेकर नियम?
आयकर कानून की धारा 10(10D) के तहत, अगर कोई बीमाधारक की मृत्यु के बाद नॉमिनी को मिलने वाली रकम पूरी तरह टैक्स फ्री होती है। इसका मतलब है कि अगर आपको नॉमिनी के तौर पर 25 लाख रुपये, 50 लाख रुपये या 1 करोड़ रुपये भी मिलते हैं, तो उस पर आयकर विभाग कोई टैक्स नहीं लगाता।
Finhaat के को-फाउंडर और CFO संदीप कटियार का कहना है कि डेथ के बाद मिलने वाले इंश्योरेंस क्लेम पर आमतौर पर कोई टैक्स नहीं लगता। इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 10(10D) के तहत अगर पॉलिसी के नियम पूरे किए गए हों, तो नॉमिनी को मिलने वाला बीमा क्लेम पूरी तरह टैक्स-फ्री होता है। इसमें टर्म इंश्योरेंस, एंडोमेंट प्लान्स और यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान्स (ULIPs) सभी शामिल हैं।
बीमा क्लेम कब टैक्स फ्री नहीं होगा?
लाइफ इंश्योरेंस से मिलने वाले पैसे पर आमतौर पर इनकम टैक्स नहीं लगता, अगर वह भुगतान इनकम टैक्स एक्ट की धारा 10(10D) के तहत आता हो। लेकिन कुछ खास स्थितियां ऐसी हैं, जिनमें यह छूट नहीं मिलती। आइए, समझते हैं कि कब इंश्योरेंस क्लेम टैक्स फ्री नहीं होता।
1. Keyman Insurance Policy का पेआउट
अगर कोई कंपनी अपने किसी महत्वपूर्ण कर्मचारी के नाम पर Keyman Insurance Policy खरीदती है और बाद में उससे मिलने वाली राशि कंपनी को मिलती है, तो यह टैक्स फ्री नहीं होती। क्योंकि इसमें लाभ कंपनी को मिलता है, न कि मृतक के परिजनों को। इसलिए यह धारा 10(10D) के तहत कवर नहीं होता।
2. धारा 80DD(3) या 80DDA(3) के तहत भुगतान
अगर किसी पॉलिसी के तहत भुगतान विकलांग व्यक्ति की मृत्यु पर मिलता है, और वह धारा 80DD(3) या 80DDA(3) के तहत आता है, तो यह भी 10(10D) की टैक्स छूट से बाहर होता है। यह भुगतान डेथ बेनिफिट नहीं, बल्कि एक तरह का सावधि निवेश (deposit with condition) माना जाता है।
3. 2003 से 2012 के बीच की पॉलिसीज
अगर आपने 1 अप्रैल 2003 से 31 मार्च 2012 के बीच कोई पॉलिसी खरीदी थी और उसमें सालाना प्रीमियम, बीमा राशि (Sum Assured) का 20% से अधिक है, तो उस पॉलिसी से मिलने वाला पैसा टैक्स फ्री नहीं होगा। बहुत से हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स (HNIs) कम बीमा लेकर ज्यादा प्रीमियम देते थे ताकि वे टैक्स फ्री इनकम के नाम पर इन्वेस्टमेंट का लाभ उठा सकें। इसलिए सरकार ने 20% की सीमा लगाई, ताकि ये पॉलिसी "बीमा" के उद्देश्य से ली जाए, न कि टैक्स बचाने के लिए।
4. 2012 के बाद हाई प्रीमियम और नॉन-डेथ क्लेम
अगर पॉलिसी डेथ बेनिफिट नहीं बल्कि मैच्योरिटी या सरेंडर वैल्यू के रूप में ली गई है, और उसका प्रीमियम बीमा राशि का 10% से अधिक है, तो टैक्स छूट नहीं मिलेगी। यह नियम 1 अप्रैल 2012 के बाद खरीदी गई पॉलिसियों के लिए है।
क्या TDS (Tax Deducted at Source) कटता है?
डेथ क्लेम के मामले में आमतौर पर TDS नहीं काटा जाता, लेकिन यदि बीमा कंपनी को लगता है कि पॉलिसी छूट के दायरे में नहीं आती, तो वे 5% TDS काट सकती हैं, खासकर अगर PAN उपलब्ध न हो।
हालांकि, यदि पॉलिसी डेथ क्लेम से संबंधित है, तो यह TDS भी नहीं कटता।
टर्म प्लान में भी मिलती है टैक्स छूट?
टर्म इंश्योरेंस प्लान्स में शर्त ही यही होती है कि क्लेम पॉलिसीधारक की मृत्यु के बाद मिलेगा। यह स्पष्ट रूप से धारा 10(10D) के तहत कवर होता है। इसका मतलब है कि टर्म प्लान में भी नॉमिनी को मिलने वाली बीमा क्लेम की रकम पूरी तरह से टैक्स फ्री होती है।
नॉमिनी कौन है, क्या इससे फर्क पड़ता है क्या?
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि नॉमिनी कौन है। नॉमिनी चाहे महिला हो या पुरुष, बीमाधारक की मृत्यु के बाद इंश्योरेंस क्लेम की रकम हमेशा मिलती है। नॉमिनी पत्नी हो, माता-पिता हों या बच्चे टैक्स छूट सभी को मिलती है, बशर्ते क्लेम व्यक्ति की मृत्यु के कारण मिला हो।
पर्सनल टैक्स रिटर्न में दिखाना जरूरी है या नहीं?
हालांकि यह रकम टैक्स फ्री होती है, फिर भी आपको इसे अपने ITR (Income Tax Return) में “Exempt Income” के तौर पर दिखाना चाहिए। इससे पारदर्शिता बनी रहती है और भविष्य में किसी पूछताछ से बचा जा सकता है।
आपको क्लेम लेते समय बीमा कंपनी से सभी दस्तावेज और टैक्स स्टेटमेंट भी ले लेने चाहिए। इसकी भी भविष्य में जरूरत पड़ सकती है।