म्यूचुअल फंड में निवेश करने से पहले टैक्स के नियमों को जरूर जान लें, नहीं तो आपका रिटर्न काफी घट जाएगा
अगर कोई फंड इंडियन कंपनियों के शेयरों में कम से कम 65 फीसदी तक इनवेस्ट करता है तो वह इक्विटी फंड की कैटेगरी में आता है। इस कैटेगरी में सामान्य इक्विटी फंड, ईटीएफ, इंडेक्स फंड्स, थिमैटिक फंड्स, हाइरब्रिड फंड्स, आर्बिट्राज फंड्स और इक्विटी सेविंग्स फंड्स आते हैं
एक्सपर्ट्स का कहना है कि म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने वाले लोगों को सिर्फ रिटर्न के पीछे नहीं भागना चाहिए। उन्हें फंड के टैक्स के नियमों को जान लेना के बाद निवेश का फैसला करना चाहिए।
पिछले कुछ सालों में म्यूचुअल फंड्स पर टैक्स के नियमों में बड़े बदलाव हुए हैं। पहला बड़ा बदलाव 1 अप्रैल, 2023 से लागू हुआ था। दूसरा बड़ा बदलाव 23 जुलाई , 2024 से लागू हुआ था। कुछ समय पहले तक म्यूचुअल फंड्स की स्कीम दो कैटेगरी-इक्विटी या डेट में बंटी होती थीं। टैक्स के लिहाज से इक्विटी स्कीम फायदेमंद थी। लेकिन, सरकार ने 2023 में कई बदलाव किए। इंडेक्सेशन बेनेफिट्स खत्म किए। होल्डिंग पीरियड में बदलाव किया। 2024 में टैक्स के रेट्स में बदलाव हुए। 2025 में 'स्पेशिफायड फंड' की परिभाषा बदली गई। इससे अगर आप अच्छा रिटर्न कमाना चाहते हैं तो म्यूचुअल फंड की स्कीम में निवेश करने से पहले उस स्कीम से जुड़े टैक्स के नियमों को जान लेना जरूरी है।
टैक्स के लिहाज से म्यूचुअल फंड की तीन कैटेगरी
एडलवाइज म्यूचु्अल फंड के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट निरंजन अवस्थी ने कहा, "अब Mutual Fund की स्कीम को टैक्स के लिहाज से तीन कैटेगरी में बांटा जा सकता है। इनमें इक्विटी ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड, स्पेशिफायड/डेट ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड्स और अन्य म्यूचुअल फंड्स शामिल हैं। इक्विटी फंड के टैक्स के नियम आसान हैं। नॉन-इक्विटी फंड्स के नियम अलग-अलग हैं। कुछ मामलों में ये पर्चेज और रिडेमप्शन की तारीख पर निर्भर करते हैं।"
इक्विटी फंड के लिए सबसे जरूरी शर्त
अगर कोई फंड इंडियन कंपनियों के शेयरों में कम से कम 65 फीसदी तक इनवेस्ट करता है तो वह इक्विटी फंड की कैटेगरी में आता है। इस कैटेगरी में सामान्य इक्विटी फंड, ईटीएफ, इंडेक्स फंड्स, थिमैटिक फंड्स, हाइरब्रिड फंड्स, आर्बिट्राज फंड्स और इक्विटी सेविंग्स फंड्स आते हैं। शर्त यह है कि उस फंड का 65 फीसदी निवेश शेयरों में होना चाहिए।
इक्विटी फंड के टैक्स के नियमों में बदलाव
सरकार ने यूनियन बजट 2018 में इक्विटी फंडों के टैक्स के नियम में बदलाव किए। अगर कोई व्यक्ति इक्विटी फंड को 12 महीने के बाद बेचता है तो उस पर होने वाले गेंस को लॉन्ग टर्म गेंस माना गया। इस पर 10 फीसदी टैक्स का रेट तय किया गया। फाइनेंस एक्ट, 2024 में टैक्स के रेट को 10 फीसदी से बढ़ाकर 12.5 फीसदी कर दिया गया है। अब 12 महीने से पहले फंड को बेचने पर जो गेंस होता है उसे शॉर्ट टर्म गेंस माना जाता है। इस पर टैक्स का रेट 20 फीसदी है, जो पहले 15 फीसदी था। सेक्शन 112ए के तहत लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस पर टैक्स से छूट की लिमिट 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 1.25 लाख रुपये कर दी गई है। यह नियम 23 जुलाई, 2024 से लागू है।
डेट फंड पर इंडेक्सेशन का फायदा खत्म
दिल्ली के टैक्स एक्सपर्ट आशीष करूंदिया ने कहा, "2023 से पहले डेट फंड पर इंडेक्सेशन का फायदा मिलता था। इससे डेट फंड को टैक्स के लिहाज से बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट से अच्छा माना जाता था। फाइनेंस एक्ट 2023 में बड़ा बदलाव किया गया। इसमें सेक्शन 50एए शुरू किया गया और यह बताया गया कि 1 अप्रैल, 2023 के बाद स्पेशिफायड फंड से हुए कैपिटल गेंस को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस माना जाएगा और इस पर टैक्सपेयर के स्लैब के हिसाब से टैक्स लगेगा।" स्पेशिफायड म्यूचुअल फंड्स उन फंडों को माना गया जो इंडियन कंपनियों के शेयरों में 35 फीसदी से ज्यादा निवेश नहीं करते। इस कैटेगरी में गोल्ड फंड्स, इंटरनेशनल फंड्स और गोल्ड ईटीएफ भी शामिल किए गए, जिनका फोकस डेट पर नहीं था। इस कमी को फाइनेंस एक्ट 2024 में दूर किया गया।
स्पेशिफायड फंड का मतलब
फाइनेंस एक्ट 2024 में कहा गया कि 1 अप्रैल, 2025 से अगर कोई फंड 65 फीसदी से ज्यादा निवेश डेट और मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स में करता है तो उसे स्पेशिफायड/डेट फंड माना जाएगा। टैक्स बलवंत जैन का कहना है कि इससे गोल्ड और इंटरनेशनल फंड्स पर टैक्स के नियम बदल गए हैं। चूंकि, ये डेट में 65 फीसदी निवेश की शर्त पूरी नहीं करते हैं जिससे इन्हें स्पेशिफायड कैटेगरी से हटाकर अन्य कैटेगरी में ट्रांसफर कर दिया गया। स्पेशिफायड फंड के टैक्स के नियम पर्चेज डेट पर निर्भर करते हैं। पुरानी स्कीमों में ग्रैंडफादरिंग का फायदा मिलता है।
ऑर्बिट्रांज फंड के लिए टैक्स के नियम
कुछ फंड अभी भी टैक्स के मामले में काफी फायदेमंद हैं। आर्बिट्राज फंड भले ही डेट जैसी स्ट्रेटेजी अपनाते हैं लेकिन ये 65 फीसदी निवेश शेयरों में करते हैं। इससे इन पर इक्विटी फंड के टैक्स के नियम लागू होते हैं। इसका मतलब है कि इनसे होने वाले लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस पर 12.5 फीसदी टैक्स लगेगा और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस पर 20 फीसदी टैक्स लगेगा। जो टैक्सपेयर्स सबसे हाई टैक्स स्लैब में आते हैं उनके लिए यह निवेश का अच्छा विकल्प है।
इक्विटी सेविंग्स फंड और एग्रेसिव हाइब्रिड फंड भी टैक्स के लिहाज से अच्छे हैं। लेकिन, शर्त यह है कि इनका निवेश शेयरों में 65 फीसदी से ज्यादा होना चाहिए। इसका मतलब है कि म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने वाले लोगों को सिर्फ रिटर्न के पीछे नहीं भागना चाहिए। उन्हें फंड के टैक्स के नियमों को जान लेना चाहिए। अगली बार अगर इक्विटी, गोल्ड या डेट फंड में सिप के जरिए निवेश करने जा रहे हैं तो आपको खुद से यह पूछने की जरूरत है कि रिटर्न पर कितना टैक्स लगेगा?