SIP Profit Booking: म्यूचुअल फंड में कब और कैसे बुक करें मुनाफा, किन बातों का रखें ध्यान?
SIP Profit Booking: SIP के जरिए म्यूचुअल फंड में निवेश बढ़ रहा है। लेकिन, कई लोग उलझन में रहते हैं कि म्यूचुअल फंड में मुनाफा कब बुक करना चाहिए। एक्सपर्ट से जानिए प्रॉफिट बुकिंग कब करना सही रहता है और आप टैक्स बचाने और मुनाफा बढ़ाने के लिए क्या कर सकते हैं।
एक्सपर्ट के मुताबिक, म्यूचुअल फंड से एकसाथ सारा पैसा न निकालें।
SIP Profit Booking: सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए म्यूचुअल फंड में निवेश का चलन काफी तेजी से बढ़ा है। इसे लॉन्ग टर्म में पैसा बनाने का सबसे बेहतर रास्तों में से एक माना जाता है। शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव और वैश्विक स्तर पर बदलते सेंटीमेंट के बावजूद म्यूचुअल फंड में SIP के जरिए पैसा लगातार आ रहा है। ऐसे में निवेशकों के सामने एक अहम सवाल हमेशा रहता है, म्यूचुअल फंड में प्रॉफिट बुकिंग कब करनी चाहिए? साथ ही, प्रॉफिट बुक करते समय किन बातों का ध्या नरखन
म्यूचुअल फंड में कब बुक करें प्रॉफिट बुक?
LIC म्यूचुअल फंड एसेट मैनेजमेंट लिमिटेड में इक्विटी के सीनियर फंड मैनेजर दीक्षित मित्तल का कहना है कि म्यूचुअल फंड में प्रॉफिट बुकिंग पूरी तरह से आपके फाइनेंशियल गोल्स के हिसाब से होनी चाहिए। उनका कहना है, 'म्यूचुअल फंड्स से कमाई पर मुनाफा बुक करना यानी पैसे निकालना, जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए। बाजार में तेजी या गिरावट देखकर अगर आप घबराकर फंड्स बेचते हैं, तो इसमें फायदे से ज्यादा नुकसान की आशंका रहती है।'
मित्तल के मुताबिक, 'हर कोई म्यूचुअल फंड में SIP कुछ खास मकसद से करता है। जैसे कि घर खरीदना, बच्चे की पढ़ाई या शादी या फिर अपना रिटायरमेंट। जब आपका मकसद के लिए पर्याप्त पैसा जमा हो जाए, तो म्यूचुअल फंड्स से पैसा निकालना समझदारी भरा कदम होता है। साथ ही, जब शेयर बाजार में तेजी के कारण आपके पोर्टफोलियो में इक्विटी का अनुपात बहुत बढ़ जाता है, तो थोड़ी-थोड़ी मुनाफा बुकिंग करके अपने निवेश में सही संतुलन बनाए रखना चाहिए। इस तरह आप अपने रिस्क को भी कंट्रोल कर सकते हैं और निवेश को सुरक्षित भी रख सकते हैं।'
मार्केट ओवरवैल्यूएड लगे तो क्या करना चाहिए?
कुछ फाइनेंशियल एक्सपर्ट का मानना है कि अगर मार्केट ओवरवैल्यूड लगे, तो प्रॉफिट बुक करना अच्छा सिग्नल हो सकता है। अगर आपके म्यूचुअल फंड का परफॉर्मेंस अपने बेंचमार्क या पीयर ग्रुप से काफी अलग है, तो अपने इनवेस्टमेंट पर फिर से विचार करना जरूरी है। म्यूचुअल फंड आमतौर पर लॉन्ग-टर्म इनवेस्टमेंट्स होते हैं। इसलिए पहला पोर्टफोलियो रिव्यू आइडियली 3 साल बाद, और उसके बाद कम से कम साल में एक बार होना चाहिए। अगर फंड्स की जरूरत है, तो प्रॉफिट बुक करना वाजिब है। नहीं तो शेयर मार्केट के उतार-चढ़ाव से घबराए बिना अपने निवेश रणनीति पर बने रहना चाहिए।
एक्सपर्ट के मुताबिक, म्यूचुअल फंड से एकसाथ सारा पैसा न निकालें। इसके बजाय Systematic Withdrawal Plan (SWP) के साथ पार्शियल विड्रॉल करें, ताकि आपका इनवेस्टमेंट भी बना रहे और प्रॉफिट भी लॉक हो जाए। ऐसे में आप टारगेट-बेस्ड स्ट्रैटेजी अपना सकते हैं। पहले से रिटर्न का एक टारगेट तय करें, और जब वो मिल जाए, तो प्रॉफिट बुक कर लें। पोर्टफोलियो की रेगुलर रीबैलेंसिंग करना भी जरूरी है। इससे इनवेस्टमेंट्स आपके रिस्क प्रोफाइल और फाइनेंशियल गोल्स के हिसाब से अलाइन रहेगा।
म्यूचुअल फंड प्रॉफिट पर टैक्स देनदारी कैसे कम करें?
टैक्स प्लानिंग प्रॉफिट बुकिंग के साथ-साथ चलनी चाहिए। लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) टैक्स एग्जेंप्शन का बेनिफिट लेने के लिए इनवेस्टमेंट को आइडियली एक साल से ज्यादा होल्ड करना चाहिए। टैक्स आउटफ्लो को और कम करने के लिए आप अंडरपरफॉर्मिंग एसेट्स बेच सकते हैं और उस लॉस का इस्तेमाल गेन्स को सेट ऑफ करने के लिए कर सकते हैं, जिसे टैक्स-लॉस हार्वेस्टिंग कहते हैं। इसके अलावा, टैक्स-एफिशिएंट अकाउंट्स या मिनिमम टैक्स इम्पैक्ट वाले फंड्स से विड्रॉल करने पर भी विचार कर सकते हैं।
आप जब भी मुनाफा निकालने का प्लान करें, तो दो चीजों का खास ध्यान रखें। पहला, ज्यादा से ज्यादा फायदा (गेंस) कमाना और दूसरा, कम से कम टैक्स देना। जब आप अपने म्यूचुअल फंड्स में बदलाव (रीबैलेंसिंग) करने की सोचें, तो पहले यह देख लें कि उस फंड में पैसे निकालने पर कोई एग्जिट लोड यानी फीस या जुर्माना तो नहीं लग रहा। साथ ही, यह भी चेक करें कि आपके इक्विटी फंड्स से जो मुनाफा हो रहा है, वह सालाना ₹1.25 लाख से ज्यादा न हो, क्योंकि इस लिमिट तक आपको टैक्स नहीं देना पड़ता।
अगर आपके पास पिछले सालों के नुकसान बचे हैं (जिसे कैरी-फॉरवर्ड लॉस कहते हैं), तो उन्हें सही से जोड़ना बहुत जरूरी है, ताकि आपकी टैक्स कम देनदारी कम हो सके। इसके अलावा, जिन फंड्स का प्रदर्शन कमजोर है या जिनसे आपको फायदा नहीं हो रहा, उन्हें भी समय-समय पर देखना चाहिए। अगर जरूरत हो, तो ऐसे फंड्स में नुकसान को बुक करना फायदेमंद हो सकता है, ताकि आप टैक्स में और फायदा ले सकें।
SIP करते समय किन बातों का रखें ध्यान
LIC के दीक्षित मित्तल का कहना है कि म्यूचुअल फंड्स में SIP लंबी अवधि में धन बढ़ाने का एक अच्छा तरीका है। म्यूचुअल फंड्स आपकी फाइनेंशियल प्लानिंग का एक हिस्सा होने चाहिए और इनका चुनाव इस बात पर निर्भर होना चाहिए कि आप कितना जोखिम उठा सकते हैं और आपके क्या निवेश के लक्ष्य हैं।
निवेश शुरू करने से पहले तय करें कि आपका लक्ष्य क्या है। जैसे कि घर खरीदना, बच्चों की पढ़ाई, रिटायरमेंट। अगर आप ज्यादा जोखिम ले सकते हैं, तो इक्विटी फंड्स, वरना डेट फंड्स या हाइब्रिड फंड्स पर विचार करें।
फंड ने अतीत में कैसा प्रदर्शन किया है, यह देखना जरूरी है। लेकिन, सिर्फ पुराने रिटर्न देखकर निवेश न करें। बाजार की स्थिति, फंड मैनेजर का अनुभव और फंड की रणनीति को भी समझें।
अपने पूरे पैसे एक ही फंड या एक ही तरह के फंड में न लगाएं। अलग-अलग कंपनियों, सेक्टर्स और एसेट क्लास (जैसे इक्विटी, डेट, गोल्ड) के फंड्स में निवेश करें ताकि जोखिम बंट जाए।
हर म्यूचुअल फंड कुछ शुल्क लेता है, जिसे एक्सपेंस रेश्यो कहते हैं। कम एक्सपेंस रेश्यो वाले फंड लंबी अवधि में ज्यादा फायदेमंद हो सकते हैं, क्योंकि इससे आपके रिटर्न पर कम असर पड़ता है। एंट्री लोड और एग्जिट लोड जैसे शुल्कों को भी समझें।
बाजार की स्थिति और आपके वित्तीय लक्ष्यों में बदलाव के साथ, अपने निवेश की समय-समय पर समीक्षा करें। अगर जरूरी लगे, तो अपने पोर्टफोलियो में बदलाव करें। SIP के जरिए निवेश करने वाले भी समय-समय पर अपने निवेश की समीक्षा करते रहें।
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