रिटायरमेंट फंड बनाने के लिए लोग एनपीएस और ईपीएफ में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं। दोनों का लक्ष्य एक है, लेकिन काम करने के तरीके में काफी फर्क है। दोनों के नियम भी अलग हैं। टैक्स के नियमों के लिहाज से भी दोनों में काफी फर्क है। एक बात ध्यान में रखने वाली है कि ईपीएफ में सिर्फ प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करने वाले लोग कंट्रिब्यूट कर सकते हैं, जबकि एनपीएएस में सेल्फ-एंप्लॉयड लोग भी कंट्रिब्यूट कर सकते हैं। इसका मतलब है कि प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लोग ईपीएफ और एनपीएस दोनों ने इनवेस्ट कर सकते हैं। ईपीएफ में निवेश करना उनके लिए अनिवार्य है, जबकि एनपीएस में निवेश करना उनकी इच्छा पर निर्भर करता है।
NPS में अपनी पसंद के हिसाब से निवेश करने का विकल्प
EPF एक गारंटीड रिटर्न प्लान है। ईपीएफ में जमा पैसे पर फिक्स्ड रेट से इंटरेस्ट मिलता है। उधर, NPS एक मार्केट लिंक्ड स्कीम है। यह एक इनवेस्टमेंट प्लान है, जिसमें इनवेस्टर के पास अपनी पसंद के हिसाब से इनवेस्टमेंट का प्लान और फंड मैनेजर को चुनने का विकल्प होता है। इनवेस्टर एग्रेसिव, मॉडरेट और कॉशस में से किसी एक इनवेस्टमेंट एप्रोच को सेलेक्ट कर सकता है। 18 से 70 साल की उम्र का व्यक्ति एनपीएस में इनवेस्ट कर सकता है।
एनपीएस मार्केट लिंक्ड इनवेस्टमेंट स्कीम
एनपीएस से मिलने वाला रिटर्न 8-12 फीसदी के बीच रहता है। उधर, ईपीएफ में जमा पैसे पर इंटरेस्ट रेट तय करने का काम सरकार करती है। EPF की सबसे बड़ी बात यह है कि यह EEE टैक्स बेनेफिट वाली स्कीम में आता है। इसका मतलब है कि कंट्रिब्यूशन पर टैक्स नहींल लगता है। इंटरेस्ट पर कोई टैक्स नहीं लगता है और मैच्योरिटी अमाउंट पर भी टैक्स नहीं लगता है। ईपीएफ में निवेश पर इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के सेक्शन 80सी के तहत डिडक्शन मिलता है। हालांकि, ध्यान में रखने वाली बात यह है कि यह डिडक्शन सिर्फ इनकम टैक्स की ओल्ड रीजीम का इस्तेमाल करने वाले टैक्सपेयर्स को मिलता है।
दोनों स्कीम में टैक्स बेनेफिट उपलब्ध
एनपीएस में सेक्शन 80सी के तहत डिडक्शन मिलता है। साथ ही अतिरिक्त 50,000 रुपये का भी टैक्स बेनेफिट मिलता है। यह सेक्शन 80सीसीडी(1बी) के तहत मिलता है। ईपीएफ में जमा पैसा एंप्लॉयी के रिटायर करने पर मिल जाता है। उधर, NPS में रिटायरमेंट पर जमा पैसा के 40 फीसदी हिस्से से एन्युटी खरीदनी पड़ती है। बाकी 60 फीसदी पैसा एकमुश्त मिल जाता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ईपीएस और एनपीएस दोनों ही रिटायरमेंट बाद के खर्चों के लिए काफी अहम हैं।
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प्राइवेट एंप्लॉयीज दोनों में कर सकते हैं इनवेस्ट
एक्सपर्ट्स का कहना है कि प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लोग एनपीएस और ईपीएफ दोनों में एक साथ कंट्रिब्यूट कर सकते हैं। इससे रिटायरमेंट बाद के खर्चों के लिए उन्हें किसी तरह की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा। एनपीएस के 40 फीसदी फंड का इस्तेमाल एन्युटी खरीदने के लिए करना जरूरी है। इससे व्यक्ति को हर महीने पेंशन मिलती रहती है। साथ ही ईपीएफ और एनपीएस दोनों से एकमुश्त काफी पैसा मिल जाता है।