लोन लेने वाले ग्राहकों के​ लिए RBI का बड़ा फैसला, वक्त से पहले पेमेंट पर खत्म हो सकती है पेनल्टी

मौजूदा मानदंडों के अनुसार, रेगुलेटेड एंटिटीज की कुछ कैटेगरीज को व्यक्तियों को कारोबार के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए मंजूर किए गए फ्लोटिंग रेट टर्म लोन्स पर प्री-पेमेंट चार्ज या फोरक्लोजर चार्ज लगाने की इजाजत नहीं है। RBI के सुपरवायजरी रिव्यूज से पता चला है कि MSEs को सैंक्शन किए गए लोन्स के मामले में फोरक्लोजर चार्ज/प्रीपेमेंट पेनल्टी लगाने को लेकर रेगुलेटेड एंटिटीज की प्रैक्टिस अलग-अलग हैं

अपडेटेड Feb 22, 2025 पर 2:51 PM
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RBI का यह भी कहना है कि रेगुलेटेड एंटिटीज को मिनिमम लॉक-इन पीरियड तय किए बिना लोन्स के फोरक्लोजर/प्रीपेमेंट की इजाजत देनी चाहिए।

लोन लेने वाले ग्राहकों के लिए अच्छी खबर है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने व्यक्तियों और माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज (MSEs) द्वारा लिए जाने वाले सभी फ्लोटिंग रेट लोन्स के मामले में उन्हें वक्त से पहले चुकाए जाने या बंद किए जाने पर बैंकों और अन्य लेंडर्स की ओर से लगाए जाने वाले प्रीपेमेंट चार्जेस या फोरक्लोजर चार्जेस को खत्म करने का प्रस्ताव किया है। इन लोन्स में कारोबारी उद्देश्यों के लिए लोन भी शामिल हैं। वर्तमान में रिटेल बॉरोअर्स के लिए लोन वक्त से पहले चुकाने या बंद करने पर प्रीपेमेंट चार्ज 4-5 प्रतिशत है।

मौजूदा मानदंडों के अनुसार, रेगुलेटेड एंटिटीज (REs) की कुछ कैटेगरीज को व्यक्तियों को कारोबार के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए मंजूर किए गए फ्लोटिंग रेट टर्म लोन्स पर प्री-पेमेंट चार्ज या फोरक्लोजर चार्ज लगाने की इजाजत नहीं है।

जारी हुआ ड्राफ्ट सर्कुलर


RBI के ड्राफ्ट सर्कुलर में कहा गया है, ''टियर-1 और टियर-2 सहकारी बैंकों और शुरुआती स्तर के NBFCs के अलावा उसके दायरे में आने वाली रेगुलेटेड एंटिटीज व्यक्तियों और MSE कर्जदारों द्वारा कारोबारी उद्देश्य के लिए लिए गए फ्लोटिंग रेट लोन के वक्त से पहले पेमेंट पर कोई शुल्क/जुर्माना नहीं लगाएंगे।'' हालांकि, MSE बॉरोअर्स के मामले में ये निर्देश प्रति बॉरोअर 7.50 करोड़ रुपये की कुल सैंक्शंड लिमिट तक लागू होंगे।

RBI के इस कदम के पीछे क्या है वजह

रिजर्व बैंक के सुपरवायजरी रिव्यूज से पता चला है कि MSEs को सैंक्शन किए गए लोन्स के मामले में फोरक्लोजर चार्ज/प्रीपेमेंट पेनल्टी लगाने को लेकर रेगुलेटेड एंटिटीज की प्रैक्टिस अलग-अलग हैं। इसके कारण ग्राहकों की शिकायतें और विवाद पैदा होते हैं। इसके अलावा, कुछ रेगुलेटेड एंटिटीज ने लोन कॉन्ट्रैक्ट/समझौतों में रिस्ट्रिक्टिव क्लॉज शामिल किए हैं, ताकि बॉरोअर्स को कम ब्याज दरों या बेहतर सर्विस टर्म्स का फायदा उठाने के लिए किसी अन्य लेंडर के पास जाने से रोका जा सके।

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ड्राफ्ट सर्कुलर में आगे कहा गया है कि रेगुलेटेड एंटिटीज को मिनिमम लॉक-इन पीरियड तय किए बिना लोन्स के फोरक्लोजर/प्रीपेमेंट की इजाजत देनी चाहिए। उन्हें ऐसे मामलों में कोई शुल्क/पेनल्टी नहीं लगानी चाहिए, जहां फोरक्लोजर/प्रीपेमेंट रेगुलेटेड एंटिटीज के कहने पर किया जाता है। साथ ही किसी भी परिस्थिति में उन लोन्स के फोरक्लोजर/प्रीपेमेंट के समय ऐसा कोई पिछला चार्ज भी नहीं वसूलना चाहिए, जिन्हें रेगुलेटेड एंटिटीज ने या तो माफ कर दिया था या बॉरोअर्स को पहले से बताया नहीं था। RBI ने इस ड्राफ्ट पर स्टेकहोल्डर्स से 21 मार्च, 2025 तक कमेंट मांगे हैं।

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First Published: Feb 22, 2025 2:42 PM

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