Repo Rate Cut Effect: कुछ समय पहले केंद्रीय बैंक RBI ने रेपो रेट में 25 बेसिस यानी 0.25 पर्सेंटेज प्वाइंट्स की कटौती का ऐलान किया था। इस कटौती के बाद ही घर खरीदार पब्लिक सेक्टर में देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई (SBI) से लोन की किश्तें कम होने का इंतजार कर रहे थे और उनका यह इंतजार आखिरकार खत्म हुआ। एसबीआई ने होम लोन पर ब्याज की दरों को कम कर दिया है। साथ ही बैंक ने फिक्स्ड डिपॉजिट्स (FD) पर भी ब्याज घटा दिया है लेकिन ये बदलाव सभी डिपॉजिट्स पर नहीं लागू होंगे। नई दरें आज 15 दिसंबर से प्रभावी हो गई हैं।
SBI के ऐलान के बाद अब क्या हैं नई दरें?
पहले डिपॉजिट को लेकर बात करें तो ₹3 करोड़ से कम की अधिकतर खुदरा जमा पर एसबीआई ने ब्याज की दरें स्थिर रखी हैं। हालांकि बैंक ने अपने मशहूर 44 दिनों वाले 'अमृत वृष्टि (Amrit Vrishti)' एफडी स्कीम की ब्याज दरें 6.60% से घटाकर 6.45% कर दी हैं। वरिष्ठ नागरिकों के लिए बात करें तो ब्याज दरें हाई बनी हुई हैं लेकिन 2-3 साल के डिपॉजिट स्लैब में हल्की कटौती कर 6.95% से 6.90% कर दिया है। इसी टेन्योर में 60 वर्ष से कम के लोगों के लिए एफडी की दरें 6.45% से घटाकर 6.40% कर दी गई हैं।
डिपॉजिट्स के मामले में आम लोगों को झटका तो लगा है लेकिन लोन की किश्तों के मामले में राहत भी मिली है। एसबीआई ने सभी टेन्योर के मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स-बेस्ड लेंडिंग रेट (MCLR) में 5 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती की है। अधिकतर लोन के लिए अहम बेंचमार्क एक साल का एमसीएलआर अब 8.75% से घटकर 8.70% रह गया है। वहीं दूसरी तरफ बैंक ने एक्सटर्नल बेंचमार्क लिंक्ड रेट (EBLR) में तेज कटौती की है जो होम लोन जैसे अधिकतर फ्लोटिंग-रेट रिटेल लोन पर लागू होता है। बैंक ने ईबीएलआर को 25 बेसिस प्वाइंट्स घटाकर 8.15% से 7.90% कर दिया है। साथ ही बैंक ने लीगसी बॉरोअर्स के लिए भी अपने बेस रेट को घटाकर 10.00% से 9.90% कम कर दिया है।
Repo Rate में कटौती का क्या होता है असर?
आरबीआई ने इस साल 2025 की आखिरी मौद्रिक नीतियों में रेपो रेट को 25 बेसिस प्वाइंट्स घटा दिया जिसके बाद रेपो रेट अब कम होकर 5.25% पर आ गई है। आरबीआई के रेपो रेट में कटौती के फैसले से लोन की किश्तें कम होने की संभावना बढ़ जाती हैं। यह वह रेट है, जिस पर बैंक आरबीआई से कर्ज लेते हैं। अब रेपो रेट कम होने पर बैंकों के लिए आरबीआई से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है तो इसका फायदा बैंक आम लोगों तक भी पहुंचाते हैं तो उनके लोन की किश्तें हल्की हो सकती हैं। हालांकि दूसरी तरफ रेपो रेट कम होने पर एफडी पर ब्याज दरें भी कम हो सकती हैं। इसकी वजह ये है कि रेपो रेट घटने से बैंकों को लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए एफडी को आकर्षक बनाने की जरूरत नहीं रहती।