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क्या है Cost Inflation Index, यह टैक्स बचाने में आपकी कैसे मदद करता है?

CII की वैल्यू से यह पता चलता है कि इनफ्लेशन या डिफ्लेशन की वजह से साल-दर-साल आधार पर गुड्स और एसेट्स के एवरेज प्राइस में कितना बदलाव आया है

अपडेटेड Jun 17, 2022 पर 12:02 PM
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Central Board of Direct Taxes (CBDT) ने फाइनेंशियल ईयर 2022-23 के लिए कॉस्ट इनफ्लेशन इंडेक्स (CII) का डेटा इश्यू किया है। 14 जून को आए इस डेटा से पता चलता है कि CII बढकर 331 पर पहुंच गया है।

Central Board of Direct Taxes (CBDT) ने फाइनेंशियल ईयर 2022-23 के लिए कॉस्ट इनफ्लेशन इंडेक्स (CII) का डेटा इश्यू किया है। 14 जून को आए इस डेटा से पता चलता है कि CII बढकर 331 पर पहुंच गया है। फाइनेंशियल ईयर 2021-22 में यह 317 था। CII क्या है, यह टैक्स बचाने में आपकी कैसे मदद कर सकता है? आइए इन सवालों के जवाब जानते हैं।

CII की वैल्यू से यह पता चलता है कि इनफ्लेशन या डिफ्लेशन की वजह से साल-दर-साल आधार पर गुड्स और एसेट्स के एवरेज प्राइस में कितना बदलाव आया है। FY23 में CII की वैल्यू 331 है, जबकि FY 2020-21 में 317 थी। इसका मतलब है कि एक साल पहले के मुकाबले कंज्यूमर गुड्स और एसेट्स के एवरेज प्राइसेज 4.42 फीसदी बढ़े हैं।

याद रखें कि यह गुड्स और एसेट्स के प्राइसे में फ्लैट वृद्धि नहीं है। यह एवरेज वृद्धि है। इसका मतलब है कि कुछ प्रोडक्ट्स के प्राइसेज दूसरों के मुकाबले कम बढ़े होंगे, जबिक कुछ के ज्यादा बढ़े होंगे। कुछ ऐसे भी प्रोडक्ट्स हो सकते हैं, जिनकी कीमतों मे गिरावट आई होगी।


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CII Value का क्या इस्तेमाल है?

जब आप कैपिटल मार्केट एसेट या प्रॉपर्टी बेचते हैं तो आपको कैपिटल गेंस टैक्स चुकाना पड़ता है। यह टैक्स सेल प्राइस और कॉस्ट प्राइस के अंतर पर लगता है। आम तौर पर आप जब किसी प्रॉपर्टी को लंबे समय तक बेचते हैं तो इसकी वैल्यू बढ़ जाती है। इस वजह से इसका सेल प्राइस काफी ज्यादा होता है। सेल और कॉस्ट प्राइस में फर्क जितना ज्यादा होगा, आपको उतना ही ज्यादा टैक्स चुकाना होगा।

लेकिन, इनफ्लेशन के चलते समय के साथ पैसे की वैल्यू घट जाती है। इसलिए उसी चीज को खरीदने के लिए आपको ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं। इस इनफ्लेशन के चलते आपका असल गेन उतना नहीं होता है जितना दिखता है। आपका गेन मार्केट प्राइस में हुई बढ़ोतरी है, जिस पर आपको टैक्स चुकाना होता है।

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टैक्सपेयर्स को राहत देने के मकसद से सरकार इनफ्लेशन के इस बेनेफिट का फायदा आपको देती है। सरकार इसे CII के जरिए देती है। CII आर्टिफिशियली आपका कॉस्ट प्राइस बढ़ा देता है, जिससे सेल प्राइस और कॉस्ट प्राइस का फर्क कम हो जाता है। इस वजह से आपका कैपिटल गेंस टैक्स घट जाता है। यही वजह है कि CII टैक्स प्लानिंग के लिए बहुत जरूरी है।

दूसरे शब्दों में, एसेट की इनफ्लेशन-एडजस्टेड कॉस्ट ऑफ एक्विजिशन जानने के लिए CII Value का इस्तेमाल किया जाता है। इसका इस्तेमाल रियल एस्टेट, गोल्ड सहित इनवेस्टमेंट्स और एसेट के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस (LTCG) के कैलकुलेशन के लिए किया जाता है। CII की वैल्यू से आप किसी एसेट की सेल पर हुए रियल गेन को जान सकते हैं।

इंडेक्स्ड कॉस्ट ऑफ एक्विजिशन का नियम क्या है?

LTCG टैक्स के कैलकुलेशन के लिए इनकम टैक्स डिपार्टमेंट एसेसी को इंडेक्स्ड कॉस्ट ऑफ एक्विजिशन को ध्यान में रखने की इजाजत देता है। उदाहरण के लिए किसी प्रॉपर्टी के ट्रांसफर पर होने वाले गेंस पर आपको कैपिटल गेंस टैक्स चुकाना जरूरी है। अगर कोई व्यक्ति खरीदने के दो साल के पहले बेच देता है तो उससे हुए गेंस (प्रॉफिट) को Short-term Capital gains (STCG) माना जाता है।

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STCG व्यक्ति के इनकम में जोड़ दिया जाता है। फिर इस पर व्यक्ति के टैक्स-स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है। अगर व्यक्ति प्रॉपर्टी दो साल से ज्यादा समय तक रखने के बाद बेचता है तो इस पर हुए गेंस (प्रॉफिट) को Long term capital gains (LTCG) कहा जाता है। इस पर इंडेक्सेशन के साथ 20 फीसदी टैक्स लगता है। प्रॉपर्टी के LTCG को कैलकुलेट करने के लिए व्यक्ति को प्रॉपर्टी के इंडेक्स्ड कॉस्ट ऑफ एक्विजिशन को कैलकुलेट करना होता है।

कैसे होता है इंडेक्स्ड कॉस्ट ऑफ एक्विजिशन का कैलकुलेशन?

इसके लिए एसेट का ट्रांसफर जिस साल होता है, उस साल की CII Value को कॉस्ट ऑफ एक्विजिशन से गुणा किया जाता है। फिर इसमें जिस साल प्रॉपर्टी खरीदी गई थी, उस साल की CII Value से विभाजित (Divide) किया जाता है।

इसे एक उदाहरण की सहायता से आसानी से समझा जा सकता है। मान लीजिए आपके 2010-11 में एक घर 50 लाख रुपये में खरीदा था। आपने इसे 2020-21 में एक करोड़ रुपये में बेच दिया। इस प्रॉपर्टी का इंडेक्स्ड कॉस्ट ऑफ एक्विजिशन कैलकुलेट करने के लिए आपको 2010-11 और 2020-21 की CII Value जाननी होगी। यह आपको www.incometaxindia.gov.in पर मिल जाएगी।

इस उदाहरण में CII प्रॉपर्टी खरीदने के साल में 167 था। प्रॉपर्टी बेचने के साल में यह 301 हो गया। इस तरह इस प्रॉपर्टी का इंडेक्स्ड कॉस्ट ऑफ एक्विजिशन 90,11,976 [50,00,000 x (301/167)] होगा। इस तरह आपका LTCG ₹9,88,023 (1,00,00,000 - 90,11,976) होगा। इस अमाउंट पर आपको LTCG टैक्स चुकाना होगा।

अगर आप LTCG पर टैक्स नहीं चुकाना चाहते हैं तो आपके पास दो ऑप्शन हैं। पहला, आप रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी में एलटीसीजी को इनवेस्ट कर सकते हैं। दूसरा, आप इसे 54ईसी बॉन्ड्स में निवेश कर सकते हैं।

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