संपत्ति के बंटवारे के लिए क्यों जरूरी है वसीयत बनाना, इसे नहीं बनाने पर क्या दिक्कत आ सकती है?

ज्यादातर लोगों सेविंग्स और इनवेस्टमेंट के लिए सही प्लानिंग करते हैं और उस पर अमल करते हैं। लेकिन, इनमें से कई वसीयत के महत्व की अनदेखी करते हैं। उन्हें वसीयत बनाना इसलिए जरूरी नहीं लगता क्योंकि वे मानते हैं कि उनके बच्चे शिक्षित हैं और वे संपत्ति के लिए आपस में नहीं लड़ेंगे

अपडेटेड Sep 25, 2024 पर 6:19 PM
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इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब अच्छे परिवार के सदस्यों ने संपत्ति पर हक के लिए आपस में लड़ाइयां की हैं। वे एक दूसरे के खिलाफ कोर्ट तक गए हैं।

अब्राहम लिंकन, पाब्लो पिकासो और अगाथा क्रिस्टी में क्या समानता है? दरअसल, इन तीनों की मौत वसीयत बनाने से पहले हो गई थी। वसीयत को अंग्रेजी में विल कहा जाता है। यह ऐसा डॉक्युमेंट है जिसके आधार पर विल बनाने वाले व्यक्ति की इच्छा के मुताबिक उसकी मौत पर उसकी संपत्ति का बंटवारा परिवार के सदस्यों के बीच किया जाता है। संपत्ति में अचल और चल दोनों तरह की संपत्ति आती हैं। उदाहरण के लिए इसमें प्रॉपर्टी, फिक्स्ड डिपॉजिट, शेयर और म्यूचुअल फंड्स आदि आते हैं।

पिछले कुछ सालों में क्लाइंट्स के साथ बातचीत में कई बार एस्टेट प्लानिंग (Estate Planning) और खासकर Will बनाने पर चर्चा हुई है। इस दौरान मुझे कई बार चौंकाने वाले जवाब मिले हैं। पहला, ज्यादातर क्लाइंट्स का यह मानना रहा है कि विल बहुत जरूरी नहीं है। इसकी बड़ी वजह यह है कि उन्हें लगता है कि उनकी मौत के बाद उनके बच्चों में संपत्ति को लेकर लड़ाई होने की संभावना नहीं है। दूसरा, कई क्लाइंट्स को ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी प्रॉपर्टी का बंटवारा कर दिया है। उन्होंने अपने बैंक अकाउंट, फिक्स्ड डिपॉजिट, इश्योरेंस पॉलिसी, डीमैट अकाउंट और म्यूचुअल फंड्स के फोलियो में नॉमिनी बनाए हैं।

यह सही है कि बच्चों को अच्छे नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने वाले मातापिता को ऐसा लगता है कि उनके बच्चे संपत्ति के लिए आपस में नहीं लड़ेंगे। लेकिन, इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब अच्छे परिवार के सदस्यों ने संपत्ति पर हक के लिए आपस में लड़ाइयां की हैं। वे एक दूसरे के खिलाफ कोर्ट तक गए हैं। दूसरा, अगर आपने अपने बैंक अकाउंट, इश्योरेंस पॉलिसी और म्यूचुअल फंड्स में नॉमिनी बनाया है तो यह अच्छी बात है लेकिन इतना काफी नहीं है।


ऐसे कई उदाहरण हैं, जिमें बैंक या डीमैंट अकाउंट के रिकॉर्ड में बनाए गए नॉमनी और विल में बनाए गए लाभार्थी के बीच फर्क रहा है। ऐसे में संबंधित पक्षों ने कोर्ट का रुख किया है। नॉमिनेशन बनाम सक्सेशन के मसले से जुड़े अनगिनत मामले कोर्ट में लंबित रहे हैं। सवाल है कि दोनों में से किसे वरीयता मिलनी चाहिए? इस बारे में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आ चुका है। कोर्ट ने कहा है कि किसी कंपनी का नॉमिनी को फंड सौंपना उसका कर्तव्य है लेकिन यह कानूनी वारिस की जगह नॉमिनी को सिक्योरिटी की ओनरशिप देने से पूरी तरह से अलग है।

आसान शब्दों में कहा जाए तो सुप्रीम कोर्ट के जजों का कहना था कि कानूनी वारिस को बाहर कर नॉमिनेशन से नॉमिनी को प्रॉपर्टी की पूरी ओनरशिप नहीं मिल जाती है। कंपनी ज्यादा से ज्यादा सक्सेशन लॉज के मुताबिक कानूनी वारिस की तरफ से लाभ (proceeds) की ट्रस्टी होती है। नॉमिनेशन से कंपनियों को संपत्ति के सही हकदार की तलाश करने की जिम्मेदारी से छुटकारा मिल जाता है।

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इसका मतलब है कि नॉमिनेशन जरूरी है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। अगर आप नॉमिनेशन करते हैं तो आपको यह ध्यान रखना होगा कि बैंक अकाउंट, इंश्योरेंस पॉलिसी और डीमैट अकाउंट में जिन लोगों को नॉमिनी बनाया गया है, उनके नाम विल में भी बतौर लाभार्थी शामिल होने चाहिए।

रविचंद

(लेखक शिर्का कैपिटल के फाउंडर हैं, जो बेंगलुरु की एक इनवेस्टमेंट बूटिक फर्म है)

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First Published: Sep 25, 2024 6:06 PM

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