Day 2 of Shardiya Navratri: शारदीय नवरात्र के पर्व में नौ दिन भक्त मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं। नवरात्र का दूसरा दिन मां के ब्रह्मचारिणी रूप को समर्पित है। मां के इस रूप की पूजा अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को की जाती है। इस साल अश्विल शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि आज 23 सितंबर 2025 को है। इस साल ब्रह्मचारिणी मां की पूजा के दिन द्विपुष्कर योग का निर्माण हो रहा है। मां ब्रह्मचारिणी विद्या, ज्ञान और तपस्या की देवी मानी जाती हैं। माता का नाम ही ब्रह्मचर्य से जुड़ा है, जो जीवन में संयम और अनुशासन का संदेश देता है। उनकी पूजा करने से मानसिक संतुलन, धैर्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं मां के इस रूप के बारे में और पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व
द्रिक पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11.49 बजे से शुरू होकर दोपहर 12.37 बजे तक रहेगा और राहुकाल का समय दोपहर के 3.15 बजे से 4.46 बजे तक रहेगा। इस दिन सूर्य कन्या राशि में रहेंगे। वहीं, चंद्रमा सुबह 2.56 बजे से 24 सितंबर तक कन्या राशि में रहेंगे। इसके बाद तुला राशि में गोचर करेंगे।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, द्विपुष्कर योग (रविवार, मंगलवार या शनिवार) को चंद्र तिथि (द्वितीया, सप्तमी या द्वादशी) और नक्षत्र (चित्रा, स्वाति, या धनिष्ठा) के एक विशिष्ट संयोग से बनता है। इस योग में किए गए किसी भी शुभ कार्य का फल दोगुना प्राप्त होता है। इसलिए, द्विपुष्कर योग में शुभ कार्य शुरू करना अच्छा माना जाता है। द्विपुष्कर के साथ ही इस दिन ब्रह्म योग, इंद्र योग, सूर्य बुध ग्रह की युति से बुधादित्य योग और गजकेसरी योग भी बन रहा है, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है।
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
दूसरे दिन का शुभ रंग : लाल
मां ब्रह्मचारिणी पूजा का महत्व
मां ब्रह्मचारिणी दूसरे दिन की माता हैं, जो संयम और तपस्या की प्रतीक हैं। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से मानसिक संतुलन, धैर्य और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। मां ब्रह्मचारिणी विद्या, ज्ञान और तपस्या की देवी मानी जाती हैं। जैसा कि माता के नाम से ही जानकारी मिल रही है, मां के इस रूप का ध्यान और व्रत करने से जीवन में धैर्य, शक्ति और बुद्धि की वृद्धि होती है। यह व्रत विशेष रूप से विद्यार्थियों और कामकाजी लोगों के लिए लाभकारी माना जाता है।
कैसे पड़ा ब्रह्मचारिणी नाम
देवी ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने हेतु कठोर तपस्या की थी। उनकी कठोर तपस्या के कारण, उन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से भी जाना जाता है। राजा हिमवान की पुत्री के रूप में जन्म लेने के बाद जब उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने का प्रण किया तो उन्होंने कई हजार वर्ष कठोर तपस्या की। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी ब्रह्मचारिणी ने सती रूप में इसीलिये आत्मदाह कर लिया था ताकि, अगले जन्म में उन्हें ऐसे पिता प्राप्त हों, जो उनके पति भगवान शिव का सम्मान कर सकें।