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Janmashtami 2025: जन्माष्टमी पर नहीं मिल रहा रोहिणी नक्षत्र, इस दिन होगा व्रत और श्रीकृष्ण जन्म

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। लेकिन इस बार इस पर्व की तिथि को लेकर भक्त असमंजस में हैं क्योंकि अष्टमी तिथि मध्यरात्रि को नहीं मिल रही है और दूसरा मध्यरात्रि में अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र नहीं मिल रहा है।

अपडेटेड Aug 12, 2025 पर 1:26 PM
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था।

भगवान श्रीकृष्ण जन्मष्टमी का त्योहार हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे पूरे भारत में धार्मिक आस्था और उल्लास के साथ मनाया जाता है। ये त्योहार हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। लेकिन इस बार इस पर्व की तिथि को लेकर भक्त असमंजस में हैं क्योंकि अष्टमी तिथि मध्यरात्रि को नहीं मिल रही है और दूसरा मध्यरात्रि में अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र नहीं मिल रहा है। भक्तों की दुविधा पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान मथुरा के धर्माचार्यों ने समस्या का समाधान किया है। इसकी पुष्टि वाराणसी के विशेषज्ञों ने भी की है।

मथुरा में 16 तारीख को रखा जाएगा व्रत

श्रीकृष्ण जन्म स्थान मथुरा के पंडित मृदुल कांत ने दैनिक भास्कर से बातचीत में बताया कि जन्माष्टमी की उत्तम तिथि 16 अगस्त, शनिवार को होगी। उनके मुताबिक इसी दिन जन्माष्टमी से जुड़े उत्तम योग बन रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो लोग रोहिणी नक्षत्र के आधार पर जन्माष्टमी का पर्व मनाते हैं, वो 17 अगस्त, रविवार के दिन व्रत करेंगे। इसी मसले पर वाराणसी के ज्योतिषाचार्य प्रोफेसर विनय पांडे ने कहा कि अष्टमी तिथि के अनुसार व्रत और पूजा करने वाले 16 अगस्त को व्रत और पूजा करें, वहीं रोहिणी नक्षत्र के अनुसार पर्व मनाने वाले 17 अगस्त को व्रत करेंगे। वहीं इस्कॉन भारत के कम्युनिकेशंस डायरेक्टर ब्रजेंद्र नंदन दास के अनुसार इस साल वैष्णव संप्रदाय के लोग 16 अगस्त को व्रत करेंगे और मध्यरात्रि 00:05 से 00:47 बजे के बीच श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाएंगे सकेंगे। आप अपनी परंपरा और मान्यताओं के अनुसार 16 या 17 अगस्त को जन्माष्टमी मना सकते हैं।

इस विधि से करें बाल-गोपाल का पूजन

जन्माष्टमी के दिन नन्हे से बाल-गोपाल की पूजा की जाती है। इसके लिए दूध, दही, घी, शहद, तुलसी, पंचामृत, पंजीरी, शक्कर का उपयोग किया जाता है।

  • सबसे पहले कान्हा की पूजा के लिए एक चौकी पर पीले वस्त्र बिछाएं
  • उस पर एक थाल रखें और उसमें अपने लड्डू गोपाल को विराजमान करें।
  • उन्हें दूध, दही, घी, शहद, आदि से स्नान कराएं। इसके बाद उन्हें गंगाजल से एक बार फिर नहलाएं।
  • इसके बाद कान्हा की मूर्ति को साफ कपड़े से पोंछें।
  • उनका वस्त्र, मोर मुकुट, चंदन आदि से श्रृंगार करें।
  • श्रृंगार के बाद कान्हा को धनिया पंजीरी, पंचामृत, मिठाई, फल आदि का भोग लगाएं
  • कान्हा की पूजा में भोग के साथ तुलसी अवश्य चढ़ाएं।
  • अंत में भगवान श्री कृष्ण की आरती करें और प्रसाद बांटने के साथ ही स्वयं भी ग्रहण करें।


जन्माष्टमी पूजा का मुहूर्त

जन्माष्टमी पर पूजा का शुभ मुहूर्त 16 अगस्त को तड़के रात 12:05 बजे से शुरू होकर रात 12:47 बजे तक रहेगा। पूजा के लिए कुल 43 मिनट का समय मिलेगा।

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