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Kali Puja 2025: 20 या 21 अक्टूबर किस दिन होगी काली पूजा, जानें क्यों की जाती है काली पूजा

Kali Puja 2025: काली पूजा हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को की जाती है। उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में जब दीपावली का त्योहार मनाते हैं, उसी रात देवी काली की पूजा की जाती है। ये पर्व पश्चिम बंगाल में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस साल ये पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

अपडेटेड Oct 13, 2025 पर 9:16 PM
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काली पूजा खासतौर से पश्चिम बंगाल में काफी धूमधाम से की जाती है।

Kali Puja 2025: कार्तिक मास की अमावस्या को जब देश के अधिकांश हिस्सों में अंधकार पर प्रकाश की जीत का पर्व दिवाली मनाई जाती है, उसी रात काली पूजा की जाती है। काली पूजा खासतौर से पश्चिम बंगाल में काफी धूमधाम से की जाती है। इसे श्यामा पूजा के नाम से भी जाना जाता है और यह शक्ति के प्रचंड रूप का उत्सव है।

इस साल 20 अक्टूबर को होगी काली पूजा

पंचांग के अनुसार, इस बार कार्तिक मास की अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर को दोपहर 3.44 बजे शुरू होगी और इसका समापन 21 अक्टूबर को शाम 5.54 बजे होगा। इसलिए इस साल काली पूजा 20 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी। निशीथ काल की पूजा का समय 20 अक्टूबर को रात 11:41 बजे से 21 अक्टूबर को मध्यरात्रि 12:31 बजे के बीच होगा।

काली पूजा को लेकर भ्रम क्यों ?

हर साल, काली पूजा को लेकर थोड़ा भ्रम होता है। काली पूजा, अमावस्या को आधी रात में पूजा की जाती है। वहीं, दिवाली की लक्ष्मी पूजा अमावस्या वाले दिन प्रदोष (शाम) काल में की जाती है। दोनों त्योहार आमतौर पर एक ही दिन होते हैं, लेकिन किसी साल काली पूजा लक्ष्मी पूजा से एक दिन पहले भी होती है।

काली पूजा विधि


काली पूजा देर रात शुरू होती है और आधी रात के बाद तक चलती है। कुछ परंपराओं के अनुसार, भक्त प्रसाद के रूप में 108 गुड़हल के फूल, बिल्व पत्र, मिट्टी के दीपक और घास के पत्ते, मौसमी फलों, मिठाइयों, खिचड़ी, खीर और तली हुई सब्जियों के साथ चढ़ाते हैं। कुछ भक्त दिन भर का उपवास भी रखते हैं, जिसे रात भर की पूजा और होम (अग्नि अनुष्ठान) के बाद ही तोड़ा जाता है।

काली पूजा क्यों मनाते हैं

पौराणिक कथाओं के अनुसार, काली शक्ति का अवतार हैं। उनकी उत्पत्ति का सबसे प्रसिद्ध स्रोत देवी दुर्गा का राक्षस रक्तबीज के साथ युद्ध है। रक्तबीज एक राक्षस था, जो मरने के बाद फिर से प्रकट हो सकता था। उसे वरदान प्राप्त था कि उसके खून की एक भी बूंद भी धरती पर गिरेगी, तो उसमें से वह फिर जी उठेगा। देवी दुर्गा ने रक्तबीज को हराने के लिए काली का अवतार लिया। देवी काली ने रक्तबीज के रक्त की हर बूंद को धरती पर गिरने से पहले ही पी लिया। उन्होंने उसका सिर काट कर उसे माला की तरह अपने गले में पहन लिया।

कहा जाता है कि राक्षसों का वध करने के बाद भी देवी काली का क्रोध बेकाबू था। देवताओं को लगा कि उनका क्रोध पृथ्वी को नष्ट कर देगा। तब भगवान शिव ने हस्तक्षेप किया और उनके चरणों के नीचे लेट गए। जैसे ही उन्होंने शिव की छाती पर पैर रखा, उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने क्या किया है और पश्चाताप और विनम्रता के भाव से वह शांत हो गईं।

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