Pitra Paksha 2025: पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध का बहुत महत्व है। ये 15-16 दिनों की अवधि हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या तक रहती है। इस दौरान लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान करते हैं। इस साल पितृ पक्ष का समय रविवार 7 सितंबर से शुरू हो चुका है और इसका समापन 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ होगा। पिंडदान के लिए देश के कुछ धार्मिक स्थलों का विशेष महत्व बताया गया है। इसके बिहार राज्य के गया तीथस्थल का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी स्थान पर माता सीता ने अयोध्या के राजा दशरथ का पिंडदान किया था। एक कथा यह भी प्रचलित है कि यहीं पर माता सीता ने फल्गु नदी को श्राप दिया था।
फल्गु नदी के तट पर स्थित गया को मोक्षस्थली भी कहा जाता है। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से 108 कुल और सात पीढ़ियों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। गया का उल्लेख वायु पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में मिलता है।
पौराणिक काल में गयासुर नाम के असुर ने तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा कि उसका शरीर इतना पवित्र हो जाए कि उसके दर्शन मात्र से लोग पापमुक्त हो जाएं। उसके इस वरदान से स्वर्ग-नरक का संतुलन बिगड़ गया। परेशान देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद मांगी। भगवान विष्णु ने गयासुर से यज्ञ के लिए शरीर मांगा, जिसे उसने खुशी-खुशी मान लिया। यज्ञ पूरा होने के बाद विष्णु ने उसे मोक्ष देते हुए आशीर्वाद दिया कि जहां-जहां उसका शरीर फैलेगा, उस स्थान पर पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलेगा। मान्यता है कि आज की गया नगरी गयासुर के शरीर के पत्थर रूप में फैलने से ही बनी।
भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान करने गया तीर्थ गए थे। यहां माता सीता को फल्गु नदी के तट पर छोड़ कर भगवान राम और लक्ष्मण श्राद्ध की सामग्री लेने चले गए। इस बीच राजा दशरथ की आत्मा ने वहां प्रकट को सीता जी से पिंडदान करने को कहा। इस पर सीता ने कहा कि बेटों के रहते बहु पिंडदान कैसे कर सकती है, लेकिन दशरथ ने बताया कि नियमों के अनुसार पुत्रवधु भी श्राद्ध कर सकती है। शुभ मुहूर्त बीतता देख माता सीता ने पिंडदान कर दिया। कहा जाता है कि सीता जी के पास कुछ नहीं था, इसी कारण उन्होंने नदी से बालू निकालकर पिंड दान किया था। पिंडदान के समय सीता ने फल्गु नदी, गाय, केतकी फूल और वटवृक्ष को साक्षी बनाया था।
फल्गु नदी, गाय और केतकी फूल के झूठ बोलने पर दिया श्राप
श्राद्ध की सामग्री लेकर जब भगवान राम और लक्ष्मण लौटे तो उन्हें सीता की बात पर विश्वास नहीं हुआ। इस पर माता सीता ने अपने गवाह बुलाए। राम-लक्ष्मण के सामने चार में से तीन फल्गु नदी, गाय और केतकी फूल ने झूठ बोला, सिर्फ वटवृक्ष ने सच बोला। इसके बाद माता सीता क्रोधित हो गईं और तीनों को श्राप दिया। उन्होंने फल्गु नदी को श्राप दिया कि उसका जल सूख जाएगा। गाय को पवित्र होकर भी मनुष्यों की जूठन खाने का श्राप दिया और केतकी के फूल को श्राप दिया कि वह किसी भी देवी-देवता की पूजा में नहीं चढ़ाया जाएगा। वहीं, सच बोलने के लिए वटवृक्ष को उन्होंने दीर्घायु होने का वरदान दिया।