Pitra Paksha 2025: भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से 7 सितंबर से पितृ पक्ष का पवित्र समय शुरू हो चुका है। ये 15-16 दिनों की अवधि होती है, जो आश्विन मास की अमावस्या को सर्व पितृ विसर्जन के साथ समाप्त होती है। इस साल सर्व पितृ विसर्जन 21 सितंबर को किया जाएगा। माना जाता है कि इस दिन विसर्जन के बाद हमारे पितृ अपने लोक वापस अपने लोक चले जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन 15 दिनों में हमारे पूर्वज धरती पर अपने वंशजों को देखने के लिए आते हैं। इस दौरान श्रद्धापूर्वक उनका पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध करने से इनकी आत्मा को शांति मिलती है और ये अपने वंशजों को आशीर्वाद देकर वापस चले जाते हैं।
पितृ पक्ष की अवधि में आमतौर से अपने मृत परिजनों के श्राद्ध कर्म करने का विधान है। श्राद्ध और पिंडदान के लिए गया जी का विशेष महत्व माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गया जी में पिंडदान करने के बाद पितृऋण से मुक्ति मिलती है। यही वो जगह है, जहां भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता ने भी त्रेता युग में राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए फल्गु नदी के किनारे श्राद्ध और पिंडदान किया था। यही वजह है आज भी गया जी को पितृश्राद्ध का सबसे बड़ा तीर्थस्थल मानते हैं। गया जी में करीबन 54 पिंडदेवी और 53 पवित्र स्थल हैं, जहां पितरों का पिंडदान होता है। लेकिन, जनार्दन मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जहां लोग अपना खुद का श्राद्ध करने के लिए दुनिया के कोने-कोने से आते हैं।
क्या है आत्मश्राद्ध और कहां होता है ये?
आत्मश्राद्ध यानी खुद के जीवित रहते हुए अपना श्राद्ध करना। बिहार के गया जी में जनार्दन मंदिर पूरी दुनिया में इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां जीवित व्यक्ति अपना ही श्राद्ध करते हैं। ये मंदिर भस्मकूट पर्वत पर मां मंगला गौरी मंदिर के उत्तर में मौजूद है। माना जाता है यहां भगवान विष्णु खुद जनार्दन स्वामी के रूप में पिंड ग्रहण करते हैं। आमतौर पर यहां वे लोग आत्मश्राद्ध करने के लिए आते हैं, जिनकी संतान नहीं है या परिवार में उनके बाद पिंडदान करने वाला कोई नहीं है या फिर सांसरिक जीवन से संन्यास ले चुके लोग लोग भी अपना पिंडदान करने के लिए यहां आते हैं।
तीन दिन में पूरी होती है आत्मश्राद्ध की विधि