Shardiya Navratri 2025: सर्वार्थ सिद्धि और ब्रह्म योग में होगी कलश स्थापना, खुलेगा किस्मत का ताला और आएगी समृद्धि

Shardiya Navratri 2025: इस साल अश्विन मास की प्रतिपदा को मां दुर्गा का आगमन 22 सितंबर के दिन होगा। प्रतिपदा के दिन ही सुबह घटस्थापना की जाती है। इस साल मां अंबे के आगमन पर घटस्थापना दो शुभ योगों ब्रह्म योग और सर्वार्थ सिद्धि योग में होगी। आइए जानें इसका महत्व

अपडेटेड Sep 18, 2025 पर 7:00 AM
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शारदीय नवरात्र की शुरुआत 22 सितंबर को हो रही है।

Shardiya Navratri 2025: शारदीय नवरात्र का त्योहार आने में अब बस गिनती के दिन रह गए हैं। पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन लोगों के घर और मंदिर मां दुर्गा के स्वागत के लिए सज जाएंगे। हिंदू धर्म का यह पावन पर्व हर साल अश्विन मास की प्रतिपदा से शुरू होकर 10 दिनों तक चलता है। इस साल जगतजननि मां दुर्गा भक्तों के साथ एक दिन ज्यादा रुकेंगे, क्योंकि नवरात्र इस बार नौ दिनों का नहीं 10 दिनों का है और 11वें दिन विजयादशमी का त्योहार मनाया जाएगा।

इस साल मां का आगमन जहां शुभ संकेत दे रहा है, वहीं कलश स्थापना का बेहद अहम और पहला चरण दो दुर्लभ संयोगों में किया जाएगा। ऋषिकेश के पुजारी शुभम तिवारी ने न्यूज 18 को बताया कि इस साल 2025 में शारदीय नवरात्र में कलश स्थापना 22 सितम्बर को की जाएगी।

हस्त नक्षत्र और ब्रह्म योग के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा

इस साल घट स्थापना पर हस्त नक्षत्र के साथ ब्रह्म योग और सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। यह दिन कलश स्थापना के लिये बेहद शुभ होगा। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजे से लेकर 8 बजे तक होगा। इसके बाद अभिजीत मुहूर्त सुबह 11.49 बजे से दोपहर 12.38 बजे तक रहेगा।

कलश स्थापना का महत्व

पुराणों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कलश में संपूर्ण ब्रह्मांड और देवताओं का वास होता है। इसे को शक्ति का प्रतीक माना गया है। नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना को देवी मां के आवाहन का प्रतीक माना जाता है। इसमें जल, आम के पत्ते, सुपारी, सिक्के, चावल और नारियल रखा जाता है। नारियल को देवी मां का मस्तक माना जाता है, वहीं आम के पत्ते जीवन में समृद्धि के सूचक होते हैं। कलश के भरा जल पवित्रता और जीवनदायिनी शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।


कलश स्थापना की विधि

  • कलश को किसी साफ और पवित्र स्थान पर, पूजा कक्ष या घर के उत्तर-पूर्व कोण में स्थापित किया जाता है।
  • स्थापना के समय जमीन पर चावल या लाल कपड़ा बिछाकर उस पर मिट्टी का कलश रखा जाता है।
  • कलश में मान्यता अनुसार सुपारी, सिक्के और पंचरत्न डालकार गंगा जल भरा जाता है।
  • आम के पत्ते लगाकर इसके ऊपर लाल वस्त्र और मौली से ढक कर नारियल रखा जाता है।
  • इसके बाद अखंड ज्योति जलाकर नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है।

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First Published: Sep 18, 2025 7:00 AM

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