Allahabad HC Sparks Debate: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक विवादित टिप्पणी पर लोगों ने नाराजगी जताई है। हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि किसी लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पाजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना रेप या रेप की कोशिश का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यह केवल यौन उत्पीड़न की कैटेगरी में आता है। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच का ये फैसला सोशल मीडिया पर चर्चा में आ गया है। यह टिप्पणी इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने यूपी के कासगंज के पटियाली थाने में दर्ज मामले में आकाश और पवन की याचिका पर की।
'दैनिक भास्कर' की रिपोर्ट के मुताबिक, इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने अपने आदेश में कहा, "पीड़िता के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना, उसे पुलिया के नीचे खींचकर ले जाने की कोशिश करना रेप या रेप की कोशिश नहीं मान सकते।"
एक पुनरीक्षण याचिका में स्पेशल जज पॉक्सो एक्ट कासगंज के सम्मन आदेश को चुनौती दी गई थी। दो आरोपियों पवन और आकाश को कासगंज की एक अदालत ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार) और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत 11 वर्षीय लड़की के साथ कथित रूप से बलात्कार करने के आरोप में मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया था। आकाश ने कथित तौर पर उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की।
हालांकि, राहगीरों ने बीच-बचाव किया और आरोपी मौके से भागने पर मजबूर हो गए। इससे पीड़िता वहीं रह गई। ट्रायल कोर्ट ने पाया कि यह मामला बलात्कार के प्रयास का है। यह POCSO एक्टर के साथ-साथ IPC की धारा 376 के दायरे में आता है। हालांकि, आरोपी ने आदेश को चुनौती दी और इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया।
जस्टिस नारायण मिश्रा ने ट्रायल के दौरान कहा कि आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ लगाए गए आरोप और मामले के तथ्य शायद ही मामले में बलात्कार के प्रयास का अपराध बनाते हैं। बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को यह स्थापित करना होगा कि यह तैयारी के चरण से आगे निकल गया था।
एनडीटीवी के मुताबिक अदालत ने कहा, "आकाश के खिलाफ आरोप यह है कि उसने पीड़िता को पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। उसकी पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया। गवाहों ने यह भी नहीं कहा कि आरोपी के इस कृत्य के कारण पीड़िता निर्वस्त्र हो गई या उसके कपड़े उतर गए। ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता के साथ यौन उत्पीड़न करने की कोशिश की।"
पीठ ने कहा कि आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप और तथ्य बलात्कार के प्रयास का अपराध नहीं बनाते। इसी के साथ अदालत ने दोनों आरोपियों के खिलाफ आरोपों को IPC की धारा 354-बी (नंगा करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और POCSO एक्ट की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के मामूली आरोप में बदल दिया।
हाई कोर्ट के इस फैसले की सोशल मीडिया पर जमकर चर्चा हो रही है। लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, "न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठकर कोई इतनी विकृत, घटिया मानसिकता का कैसे हो सकता है। शर्मनाक।" एक दूसरे ने लिखा, "अगर यह बच्ची किसी गरीब की ना होकर, किसी बड़े अफसर, नेता या जज की होती तब भी अटेम्प्ट टू रेप के मानक यही रहते? गरीबों को न्याय देने में ही इतना छिद्रान्वेषण क्यों?"
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भी इस फैसले की आलोचना की है। उन्होंने इस खबर को शेयर करते हुए लिखा, "यह कहना है इलाहाबाद हाईकोर्ट जज राम नारायण मिश्रा का..जो कानून एक औरत की सुरक्षा के लिए बना है उससे क्या उम्मीद रखे इस देश की आधी आबादी।"
एक यूजर ने लिखा, "जज राम मनोहर नारायण मिश्र ने तो बलात्कारियों का हौसला बढ़ाने का काम कर दिया है। उनके कथन का समाज पर क्या असर पड़ेगा?उन्हें पता है या नहीं? यह दरिंदगी एक बच्ची के साथ की जा रही थी। उस पर जस्टिस मिश्र की यह टिप्पणी है। यही जज कोई यादव होता तो बीजेपी आईटी सेल अब तक उसे बदनाम कर चुका होता।"
एक यूजर ने तंज कसते हुए कहा, "न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र ने कहा हैं तो कुछ सोच समझकर कर ही कहा होगा। भारत सरकार को सुझाव हैं की जज साहेब की प्रतिभा को देखते हुए उन्हें सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया जाए।"