सुनहरे रेगिस्तान में 30 साल के लंबे अंतराल के बाद दुर्लभ कैरेकल बिल्ली नजर आई है। यह जंगली बिल्ली भारत में विलुप्ति के कगार पर है और इसकी संख्या लगभग 50 ही बची है। जैसलमेर के सम क्षेत्र में शिक्षक अजीत चारण ने हाल ही में इस बिल्ली के बच्चे को देखा और उसे सुरक्षित जंगल में छोड़ दिया। वन विभाग अब इसकी संरक्षण और आवास की रक्षा के लिए सक्रिय प्रयास कर रहा है।
कैरेकल को शिकार करने में माहिर माना जाता है क्योंकि यह हवा में तकरीबन 11 फीट तक छलांग लगा सकती है। इसकी लंबी छलांग और तेजी की वजह से यह उड़ते हुए पक्षियों और छोटे जीवों को पकड़ने में सक्षम होती है। यह बिल्ली लगभग 9 किलो वजनी और 31 इंच ऊंची होती है तथा रात्रीचर और एकाकी स्वभाव की होती है। इसके कानों के चारों ओर काले लंबे बाल होते हैं जो इसे अन्य वन्य बिल्ली से अलग पहचान देते हैं।
शिक्षक अजीत चारण ने बताया कि रामगढ़ के एक खेत में एक कार्यक्रम में जा रहे थे, तब उन्होंने कैरेकल के बच्चे को देखा। उन्होंने पहले इसकी तस्वीरें खींचीं और फिर उसे जंगल में वापस छोड़ दिया ताकि वह अपने प्राकृतिक आवास में सुरक्षित रह सके। वन्यजीव वैज्ञानिकों ने इस पर जांच पड़ताल शुरू कर दी है और वन विभाग ने इसके परिवार को खोजने के लिए कैमरे भी लगाए हैं।
कैरेकल भारत के साथ-साथ अफ्रीका, मध्य पूर्व और एशिया के शुष्क इलाकों में भी पाई जाती है। यह मुख्यतः चूहे, खरगोश, पक्षी और छोटे स्तनधारियों का शिकार करती है। कैरेकल अपने लंबे पिछले पैरों के बल से शिकार को हवा में छलांग लगाकर पकड़ सकती है, जो इसे एक कुशल शिकारी बनाता है।
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि कैरेकल की संख्या कम होने का प्रमुख कारण इसके आवास का नुकसान और शिकार बंद करने की कमियां हैं। राजस्थान और गुजरात के कुछ क्षेत्र इसकी आखिरी बस्तियां हैं, जहां संरक्षण के प्रयास जरुरी हैं। इसके लिए स्थानीय प्रशासन और वन विभाग मिलकर इसे बचाने की मुहिम चला रहे हैं ताकि इस दुर्लभ प्रजाति को विलुप्त होने से बचाया जा सके।