Christmas 2025: हर साल 25 दिसंबर को ही क्यों मनाते हैं क्रिसमस ? जानिए इसका इतिहास और अर्थ

Christmas 2025: हर साल दिसंबर का महीना आते ही हर तरफ क्रिसमस की चहल-पहल शुरू हो जाती है। 25 दिसंबर को आता है क्रिसमस का त्योहार। कभी सोचा है क्रिसमस 25 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है। आइए जानें इसकी कहानी, क्रिसमस का इतिहास और क्रिसमस का अर्थ क्या है

अपडेटेड Dec 23, 2025 पर 2:31 PM
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दुनिया भर के अरबों लोग हर साल 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार मनाते हैं।

Christmas 2025: दिसंबर का महीना साल का आखिरी महीना होने के साथ ही एक और चीज के लिए जाना जाता है। ये महीना शुरू होने के साथ ही दो जश्न का काउंटडाउन भी शुरू हो जाता है। अगर आप नहीं समझे हैं, तो चलिए आपको बता दें कि इनमें से एक जश्न 25 दिसंबर को क्रिसमस के त्योहार का होता है और दूसरा नए साल का होता है। जैसे-जैसे क्रिसमस का दिन पास आने लगता है, चारों तरफ चहल-पहल बढ़ने लगती है। बाजार, दुकान, मॉल, स्कूल आदि जगहों पर क्रिसमस की रोनक दिखाई देने लगती है। लेकिन, कभी सोचा है कि ये त्योहार 25 दिसंबर के दिन ही क्यों मनाया जाता है।

क्रिसमस का त्योहार प्रभु ईशु के जन्म का प्रतीक है और दुनिया के प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहारों में से एक है। दुनिया भर के अरबों लोग हर साल 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार मनाते हैं। ये उनकी आस्था, परंपरा, इतिहास और आधुनिक उत्सवों का मिश्रण है। यह इसे एक ऐसा वैश्विक त्योहार बनाता है जो धार्मिक सीमाओं से परे है। ये त्योहार आज जितना पॉपुलर हो गया है, लेकिन इसकी कहानी, इतिहास और महत्व के बारे में शायद ही उतने लोगों को पता होगा। जैसे 25 दिसंबर को ही प्रभु इसा मसीह का जन्मदिन क्यों मनाया जाता है, जबकि बाइबिल में जीसस के जन्म की सही तारीख का जिक्र नहीं है? अगर आप भी इस सवाल का जवाब जानना चाहते हैं, तो आइए जानें

पुराना है क्रिसमस का इतिहास

25 दिसंबर को क्रिसमस मनाने का इतिहास काफी पुराना है। लेकिन चौथी शताब्दी में रोम के सम्राट कॉन्सटेंटाइन ने 25 दिसंबर को ही यीशु मसीह के जन्मदिवस के रूप में आधिकारिक मान्यता दी थी। यह तारीख रोमन साम्राज्य में शीतकालीन संक्रांति के साथ मेल खाती थी, जो अंधेरे पर रोशनी की जीत का प्रतीक थी।

जीसस के जन्म की कहानी

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ईश्वर के दूत ग्रैबियल वर्जिन मैरी के पास आए थे। उनसे कहा कि वो जल्द ही गर्भवती होंगी। उनकी होने वाली संतान स्वयं प्रभु यीशु हैं। मैरी उस समय रोमन साम्राज्य के एक हिस्से नाजरथ में रहती थीं। एक बार जोसेफ और मैरी किसी काम से बैथलेहम जा रहे थे। उन दिनों वहां की किसी भी धर्मशाला और शरणालय में पैर रखने तक की जगह नहीं थी। मैरी और जौसेफ को एक अस्तबल में स्थान मिला। उसी स्थान पर आधी रात के समय प्रभु यीशु का जन्म हुआ। प्रभु ईशु को एक चरनी में रखा गया था। स्वर्गदूतों ने चरवाहों को जन्म की खबर दी, जिन्होंने यह संदेश फैलाया। बाद में कुछ जानकार लोग एक तारे का पीछा करते हुए वहां पहुंचे और नवजात बच्चे को उपहार दिया। प्रभु इसा मसीह के जन्म की यह कहानी हर साल दुनिया भर में क्रिसमस के मौके पर सुनने को मिलती है।


25 दिसंबर को क्यों चुना गया

चौथी सदी की शुरुआत में, चर्च ने आधिकारिक तौर पर 25 दिसंबर को क्रिसमस दिवस के रूप में नामित किया। माना जाता है कि यह तारीख घोषणा के दिन 25 मार्च के नौ महीने बाद की है। कई विद्वान इसे रोमन त्योहार डाइस नैटलिस सोलिस इनविक्टी से भी जोड़ते हैं, जो ‘अजेय सूर्य’ के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। ज्यादातर ईसाई ग्रेगोरियन कैलेंडर का पालन करते हैं और 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाते हैं। वहीं, कुछ पूर्वी ईसाई चर्च जूलियन कैलेंडर का पालन करते हुए इसे 7 जनवरी को मनाते हैं।

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