जब भी दशहरे की बात होती है, तो रावण दहन और रामलीला की यादें सबसे पहले ज़हन में आती हैं। लेकिन इस पर्व से जुड़ी एक मीठी परंपरा भी है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। दशहरे का नाम आते ही कई घरों में जलेबी बनाने की तैयारी शुरू हो जाती है। सुनने में भले ही यह साधारण लगे, लेकिन जलेबी और विजयदशमी का रिश्ता सदियों पुराना है। मान्यता है कि भगवान राम ने रावण पर विजय के बाद जश्न मनाने के लिए जलेबी जैसी मिठाई का स्वाद चखा था और तभी से इस दिन इसे शुभ माना जाने लगा।
धीरे-धीरे यह परंपरा लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा बन गई और दशहरे की मिठास में जलेबी ने अपनी खास जगह बना ली। यही वजह है कि आज भी देश के कई हिस्सों में दशहरे की सुबह मीठी जलेबी से ही शुरू होती है।
क्यों खाते हैं दशहरे पर जलेबी और पान?
कहानी के अनुसार त्रेता युग में राम जी को शशकुली नामक मिठाई बेहद प्रिय थी, जिसे आज हम जलेबी कहते हैं। मान्यता है कि रावण वध के बाद उन्होंने यही मिठाई खाकर जीत का आनंद लिया। इसी कारण दशहरे पर जलेबी और पान का स्वाद लेना शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
दिल्ली का दिल कहे जाने वाले चांदनी चौक की दरीबा कलां में एक ऐसी दुकान है जो 139 साल से शुद्ध घी की जलेबी और मटर समोसे परोस रही है। कुरकुरी जलेबी और मलाईदार रबड़ी यहां की पहचान है। पुराने जमाने में जो समोसा 1 रुपए का मिलता था, वही आज 25 रुपए का है।
जामा मस्जिद के पास स्थित सुल्तान जी स्वीट्स की जलेबी कुछ अलग ही अंदाज में मिलती है। खोए से बनी और गहरे भूरे रंग की ये जलेबी बाहर से खस्ता और अंदर से नर्म होती है। जो लोग कुछ हटकर स्वाद लेना चाहते हैं, उनके लिए ये जगह खास है।
कालिचरण गुप्ता जलेबी वाले
फतेहपुरी मस्जिद के पास यह दुकान अपनी विशाल आकार की जलेबियों के लिए मशहूर है। इतनी बड़ी कि एक ही जलेबी कई लोगों की मिठाई की इच्छा पूरी कर दे। देसी घी का स्वाद और स्थानीय लोगों का विश्वास इस दुकान को खास बनाता है।