महाराष्ट्र में मिली देश की अब तक की सबसे बड़ी भूलभुलैया, चक्रव्यूह जैसा डिजाइन, सोलापुर और रोम के बीच के संबंधों का प्रतीक

डेक्कन कॉलेज के पुरातत्व विभाग प्रमुख पी. डी. सबले ने बताया कि कोल्हापुर, कराड और तेर का इलाका उस समय विदेशी व्यापार का बड़ा केंद्र था। 1945 में ब्रह्मपुरी में खुदाई के दौरान ग्रीको-रोमन समुद्री देवता पोसाइडन की मूर्ति और एक चमकदार कांसे का शीशा मिला था, जो इस विदेशी संपर्क की पुष्टि करता है

अपडेटेड Dec 19, 2025 पर 4:26 PM
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पहले भारत में दर्ज सबसे बड़ी गोल भूलभुलैया 11 घेरों वाली थी (FILE PHOTO)

महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के बोरमणी इलाके में भारत की अब तक की सबसे बड़ी गोल आकार की पत्थरों से बनी भूलभुलैया (labyrinth) मिली हैयह 15 घेरों वाली प्राचीन भूलभुलैया है, जो करीब 50×50 फुट के क्षेत्र में फैली है।​ इसे पुणे के डेक्कन कॉलेज के आर्कियोलॉजिस्ट डॉ. सचिन पाटिल ने खोजा है और माना जा रहा है कि इसकी उम्र 2,000 साल से्यादा हैइससे महाराष्ट्र के तेर और रोम के बीच प्राचीन व्यापारिक संबंधों के बारे में नया खुलासा हुआ है।​

TOI की रिपोर्ट के अनुसार, पहले भारत में दर्ज सबसे बड़ी गोल भूलभुलैया 11 घेरों वाली थी, लेकिन अब यह नई खोजी गई 15 घेरों वाली सबसे बड़ी गोल भूलभुलैया मानी जा रही हैतमिलनाडु के गेडीमेडु में 56 फुट की चौकोर भूलभुलैया क्षेत्रफल के लिहाज से सबसे बड़ी है, लेकिन गोल आकार में सोलापुर वाली पहला स्थान ले चुकी है।​

माहाराष्ट्र के सोलापुर में मिला 15 घेरों वाला क्लासिकल लैबिरिंथ यानी भूलभुलैया माहाराष्ट्र के सोलापुर में मिला 15 घेरों वाला क्लासिकल लैबिरिंथ यानी भूलभुलैया


ब्रिटेन की जर्नल ऑफ लैबिरिंथCaerdroiaके संपादक और विशेषज्ञ जेफ सॉवर्ड के अनुसार, यह क्लासिकल तरह की भूलभुलैया है, जिसके बीच में सर्पिल जैसा हिस्सा है, जिसे भारत मेंचक्रव्यूहभी कहा जाता हैउनका कहना है कि इतने ज्यादा गोल घेरों वाली पत्थरों से बनी यह भारत की सबसे बड़ी भूलभुलैया है।​

डॉ. पाटिल का मानना है कि ऐसी भूलभुलैया उस समय रोमन व्यापारियों के लिए रास्ता दिखाने वाले निशान (नेविगेशन मार्कर) का काम करती थीं, जो महाराष्ट्र के पश्चिमी तट से होते हुए उत्तर-पूर्व और देश के दूसरे हिस्सों में व्यापार के लिए आते थेये व्यापारी सोना, शराब और कीमती पत्थर लाते थे और बदले में मसाले, रेशम और नील ले जाते थे।​

TOI के मुताबिक, डेक्कन कॉलेज के पुरातत्व विभाग प्रमुख पी. डी. सबले ने बताया कि कोल्हापुर, कराड और तेर का इलाका उस समय विदेशी व्यापार का बड़ा केंद्र था। 1945 में ब्रह्मपुरी में खुदाई के दौरान ग्रीको-रोमन समुद्री देवता पोसाइडन की मूर्ति और एक चमकदार कांसे का शीशा मिला था, जो इस विदेशी संपर्क की पुष्टि करता है।​

सांगली, सातारा और सोलापुर जिलों में मिलीं कई छोटे-छोटे 11 घेरों वाली भूलभुलैया बताती हैं कि यह पूरा इलाका शातवाहन काल के एक बिजी ट्रेड रूट, एक तरह केसिल्क रूट’, का हिस्सा रहा होगायह नया खोजा गया ढांचा भी छोटे पत्थरों से बना है और इसकी परतों के बीच लगभग डेढ़ इंच मिट्टी जम चुकी है, जिससे पता चलता है कि यह सदियों से बिना छेड़छाड़ के मौजूद है।​

तमिलनाडु के गेडीमेडु में 56 फुट का चौकोर लैबिरिंथ क्षेत्रफल में सबसे बड़ा है तमिलनाडु के गेडीमेडु में 56 फुट का चौकोर लैबिरिंथ क्षेत्रफल में सबसे बड़ा है

इस संरचना को सबसे पहले बोरमणी ग्रासलैंड सफारी सेंचुरी में काम कर रहेनेचर कंजर्वेशन सर्कलनाम के NGO के सदस्यों ने देखावे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और भेड़िए की आबादी की निगरानी कर रहे थे, तभी उन्हें यह पत्थरों की गोल बनावट दिखी और उन्होंने इसकी जानकारी डॉ. सचिन पाटिल को दी।​

डॉ. पाटिल के अनुसार इस भूलभुलैया की बनावट उन डिजाइनों जैसी है, जो क्रीट के सिक्कों पर दिखती है, जो पहली से तीसरी सदी के बीच प्रचलन में थेउनका अनुमान है कि यह संरचना 2,000 साल से भी ज्यादा पुरानी है और शातवाहन राजवंश के समय के महत्वपूर्ण व्यापारिक रास्तों पर बनाई गई होगी।​

कई संस्कृतियों में ऐसी भूलभुलैया उर्वरता (fertility) की प्रतीक मानी जाती हैं और ध्यान या साधना के लिए भी इस्तेमाल होती हैंस्थानीय भाषा में इन्हेंकोडे’ (पहेली) कहा जाता है, जबकि कई जगह इन्हेंचक्रव्यूह’, ‘मंचक्रऔरयमद्वारनामों से भी जाना जाता है

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