महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के बोरमणी इलाके में भारत की अब तक की सबसे बड़ी गोल आकार की पत्थरों से बनी भूलभुलैया (labyrinth) मिली है। यह 15 घेरों वाली प्राचीन भूलभुलैया है, जो करीब 50×50 फुट के क्षेत्र में फैली है। इसे पुणे के डेक्कन कॉलेज के आर्कियोलॉजिस्ट डॉ. सचिन पाटिल ने खोजा है और माना जा रहा है कि इसकी उम्र 2,000 साल से ज्यादा है। इससे महाराष्ट्र के तेर और रोम के बीच प्राचीन व्यापारिक संबंधों के बारे में नया खुलासा हुआ है।
TOI की रिपोर्ट के अनुसार, पहले भारत में दर्ज सबसे बड़ी गोल भूलभुलैया 11 घेरों वाली थी, लेकिन अब यह नई खोजी गई 15 घेरों वाली सबसे बड़ी गोल भूलभुलैया मानी जा रही है। तमिलनाडु के गेडीमेडु में 56 फुट की चौकोर भूलभुलैया क्षेत्रफल के लिहाज से सबसे बड़ी है, लेकिन गोल आकार में सोलापुर वाली पहला स्थान ले चुकी है।
माहाराष्ट्र के सोलापुर में मिला 15 घेरों वाला क्लासिकल लैबिरिंथ यानी भूलभुलैया
ब्रिटेन की जर्नल ऑफ लैबिरिंथ ‘Caerdroia’ के संपादक और विशेषज्ञ जेफ सॉवर्ड के अनुसार, यह क्लासिकल तरह की भूलभुलैया है, जिसके बीच में सर्पिल जैसा हिस्सा है, जिसे भारत में ‘चक्रव्यूह’ भी कहा जाता है। उनका कहना है कि इतने ज्यादा गोल घेरों वाली पत्थरों से बनी यह भारत की सबसे बड़ी भूलभुलैया है।
डॉ. पाटिल का मानना है कि ऐसी भूलभुलैया उस समय रोमन व्यापारियों के लिए रास्ता दिखाने वाले निशान (नेविगेशन मार्कर) का काम करती थीं, जो महाराष्ट्र के पश्चिमी तट से होते हुए उत्तर-पूर्व और देश के दूसरे हिस्सों में व्यापार के लिए आते थे। ये व्यापारी सोना, शराब और कीमती पत्थर लाते थे और बदले में मसाले, रेशम और नील ले जाते थे।
TOI के मुताबिक, डेक्कन कॉलेज के पुरातत्व विभाग प्रमुख पी. डी. सबले ने बताया कि कोल्हापुर, कराड और तेर का इलाका उस समय विदेशी व्यापार का बड़ा केंद्र था। 1945 में ब्रह्मपुरी में खुदाई के दौरान ग्रीको-रोमन समुद्री देवता पोसाइडन की मूर्ति और एक चमकदार कांसे का शीशा मिला था, जो इस विदेशी संपर्क की पुष्टि करता है।
सांगली, सातारा और सोलापुर जिलों में मिलीं कई छोटे-छोटे 11 घेरों वाली भूलभुलैया बताती हैं कि यह पूरा इलाका शातवाहन काल के एक बिजी ट्रेड रूट, एक तरह के ‘सिल्क रूट’, का हिस्सा रहा होगा। यह नया खोजा गया ढांचा भी छोटे पत्थरों से बना है और इसकी परतों के बीच लगभग डेढ़ इंच मिट्टी जम चुकी है, जिससे पता चलता है कि यह सदियों से बिना छेड़छाड़ के मौजूद है।
तमिलनाडु के गेडीमेडु में 56 फुट का चौकोर लैबिरिंथ क्षेत्रफल में सबसे बड़ा है
इस संरचना को सबसे पहले बोरमणी ग्रासलैंड सफारी सेंचुरी में काम कर रहे ‘नेचर कंजर्वेशन सर्कल’ नाम के NGO के सदस्यों ने देखा। वे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और भेड़िए की आबादी की निगरानी कर रहे थे, तभी उन्हें यह पत्थरों की गोल बनावट दिखी और उन्होंने इसकी जानकारी डॉ. सचिन पाटिल को दी।
डॉ. पाटिल के अनुसार इस भूलभुलैया की बनावट उन डिजाइनों जैसी है, जो क्रीट के सिक्कों पर दिखती है, जो पहली से तीसरी सदी के बीच प्रचलन में थे। उनका अनुमान है कि यह संरचना 2,000 साल से भी ज्यादा पुरानी है और शातवाहन राजवंश के समय के महत्वपूर्ण व्यापारिक रास्तों पर बनाई गई होगी।
कई संस्कृतियों में ऐसी भूलभुलैया उर्वरता (fertility) की प्रतीक मानी जाती हैं और ध्यान या साधना के लिए भी इस्तेमाल होती हैं। स्थानीय भाषा में इन्हें ‘कोडे’ (पहेली) कहा जाता है, जबकि कई जगह इन्हें ‘चक्रव्यूह’, ‘मंचक्र’ और ‘यमद्वार’ नामों से भी जाना जाता है।
हिंदी में शेयर बाजार, स्टॉक मार्केट न्यूज़, बिजनेस न्यूज़, पर्सनल फाइनेंस और अन्य देश से जुड़ी खबरें सबसे पहले मनीकंट्रोल हिंदी पर पढ़ें. डेली मार्केट अपडेट के लिए Moneycontrol App डाउनलोड करें।