भारतीय वैज्ञानिकों का कमाल, जेम्स वेब टेलिस्कोप की मदद से खोजी आकाशगंगा का नाम रखा अलकनंदा

भारतीय वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक आकाशगंगा की खोज की है, जो ब्रह्मांड के शुरुआती समय की है। इस गैलेक्सी का नाम अलकनंदा रखा गया है। इस आकाशगंगा की खोज जेम्स वेब टेलिस्कोप की मदद से की गई है। जानिए कौन हैं ये वैज्ञानिक और कितनी दूर है ये आकाशगंगा

अपडेटेड Dec 04, 2025 पर 12:47 PM
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राशि जैन ने ये खोज टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के प्रो. योगेश वाडेकर के मार्गदर्शन में की है।

भारतीय खगोल वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जिससे पूरी दुनिया में एक बार फिर से भारत का डंका बजा दिया है। भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर के खगोल वैज्ञानिकों ने ये उपलब्धि अपने नाम की है। इन्होंने एक नई आकाशगंगा की खोज की है, जिसे ‘अलकनंदा’ नाम दिया गया है। यह गैलेक्स पहली बार खोजी गई है, लेकिन इसका अस्तित्व काफी पुराना है। बताया जा रहा है कि यह गैलेक्सी उस समय मौजूद थी जब ब्रह्मांड केवल 1.5 अरब वर्ष पुराना था। इस खोज ने शुरुआती ब्रह्मांड के विकास संबंधी मौजूदा सिद्धांतों को चुनौती दी है। सांप के आकार की इस गैलेक्सी को जेम्स वेब टेलिस्कोप की मदद से खोजा गया है। आइए जानें इसके बारे में और बातें

पुणे के दो शोधकर्ताओं के नाम रही ये उपलब्धि

‘अलकनंदा’ नाम की इस आकाशगंगा को खोजने का श्रेय पुणे के दो शोधकर्ताओं राशि जैन और योगेश वाडेकर को जाता है। राशि जैन ने ये खोज टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के प्रो. योगेश वाडेकर के मार्गदर्शन में की है। ये अब तक देखी गई सबसे दूर स्थित सर्पिल आकाशगंगाओं में से एक की पहचान करने में सफल रहे हैं। राशि और योगेश ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के ‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ (जेडब्लूएसटी) की मदद से इस आकाशगंगा की पहचान की है। इन शोधकर्ताओं ने इस भव्य सर्पिल आकाशगंगा को ‘अलकनंदा’ नदी का नाम दिया है। यह आकाशगंगा उस समय अस्तित्व में थी जब ब्रह्मांड महज 1.5 अरब वर्ष पुराना यानी अपनी वर्तमान आयु का केवल 10% था। यह शोध प्रमुख यूरोपीय खगोल विज्ञान पत्रिका एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स में छपा है।

जेम्स वेब टेलिस्कोप की मदद से खोजी गैलेक्सी

जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप 2021 में लॉन्च हुआ था और अब तक कई पुरानी गैलेक्सियों की जानकारी दे चुका है। अलकनंदा गैलेक्सी की खोज में भी इसी का योगदान है। यह ब्रह्मांड की सबसे पुरानी वस्तुओं को देखने में सक्षम है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अलकनंदा जैसी स्पष्ट संरचना बताती है कि शुरुआती ब्रह्मांड पहले की सोच से कहीं अधिक विकसित था। इसमें बड़े आकार की गैलेक्सियां बहुत जल्दी बनना शुरू हो गई थीं।

आगे होगी गैलेक्सी की सर्पीली संरचना पर खोज


खगोल वैज्ञानिक अब इस आकाशगंगा की सर्पीली संरचना पर खोज करेंगे। इनकी कोशिश इसमें गैस और तारों की गति को मापने की है, ताकि पता लगाया जा सके कि इसकी स्पाइरल भुजाएं कैसे बनीं। आगे का अध्ययन जेम्स वेब टेलीस्कोप और चिली में मौजूद ALMA टेलीस्कोप की मदद से किया जाएगा।

गैलेक्सी को अलकनंदा नाम देने की वजह

शोधकर्ता राशी जैन ने बताया कि इस गैलेक्सी को अलकनंदा नाम देने की खास वजह है। यह आकाशगंगा अपनी आकृति में हमारी मिल्की वे से काफी मेल खाती है। हिंदी में मिल्की वे को ‘मंदाकिनी’ कहा जाता है और अलकनंदा नदी मंदाकिनी नदी की बहन मानी जाती है। इसलिए हमारी मिल्कीवे गैलेक्सी की “बहुत दूर की ब्रह्मांडीय बहन” को अलकनंदा आकाशगंगा नाम दिया गया।

क्यों खास है ये खोज और कितनी दूर है अलकनंदा 

अलकनंदा आकाशगंगा पृथ्वी से लगभग 12 अरब प्रकाश वर्ष दूर स्थित है। इसका आकार 30 हजार प्रकाश वर्ष तक फैला हुआ है। इसका बेहद व्यवस्थित होना ही इसकी सबसे अनूठी पहचान है क्योंकि पहले खगोलविदों का मानना था कि प्रारंभिक ब्रह्मांड में आकाशगंगाएं अव्यवस्थित और गुच्छेदार होती थीं। इनमें स्थिर सर्पिल संरचनाएं तभी उभरीं जब ब्रह्मांड कई अरब वर्ष पुराना हो गया। दो चमकती सर्पिल भुजाएं, केंद्र में तेज उजाला और पूरी संरचना में गजब का संतुलन। खगोलविद मानते थे कि प्रारंभिक आकाशगंगाएं ‘गर्म’ और ‘अशांत’ थीं। इन्हें ठंडा होने और सर्पिल पैटर्न बनाए रखने में समय लगता था।

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