पृथ्वी से अलग इस ग्रह पर मिला जीवन होने का अब तक का सबसे मजबूत सबूत! वैज्ञानिक भी हुए हैरान
ब्रिटेन के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के खगोल भौतिक विज्ञानी डॉ. निक्कु मधुसूदन ने इस खोज का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा, “हम जीवन की खोज के एक नए युग में प्रवेश कर चुके हैं, जहां मौजूदा तकनीक के जरिए हम संभावित रहने योग्य ग्रहों पर जैविक संकेतों को पहचान सकते हैं।” हालांकि, शोधकर्ताओं ने यह भी स्पष्ट किया कि यह खोज सीधे तौर पर जीवों की उपस्थिति की पुष्टि नहीं करती
पृथ्वी से अलग इस ग्रह पर जीवन होने का मिला अब तक का सबसे मजबूत सबूत, वैज्ञानिक भी हुए हैरान
वैज्ञानिकों ने एक ऐसे ग्रह पर जीवन के संकेत खोजे हैं जो हमारे सौरमंडल के बाहर है। यह खोज जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की मदद से की गई है। यह ग्रह K2-18 b नाम से जाना जाता है और यह धरती से करीब 124 लाइट ईयर दूर है। वहां वैज्ञानिकों को दो गैसें मिली हैं – डाइमेथाइल सल्फाइड (DMS) और डाइमेथाइल डिसल्फाइड (DMDS)। ये गैसें पृथ्वी पर सिर्फ बायोलॉजिकल प्रोसेस से बनती हैं, खासकर समुद्र में रहने वाले छोटे जीवों से, जैसे शैवाल।
जीवन की पुष्टि नहीं, लेकिन उम्मीद है
वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी यह तय नहीं कहा जा सकता कि वहां सच में जीवन है, लेकिन ये गैसें यह इशारा करती हैं कि वहां जीवन हो सकता है। इसे "बायोसिग्नेचर" कहा जाता है, यानी ऐसा केमिकल संकेत जो जीवन की ओर इशारा करता है।
ब्रिटेन के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के खगोल भौतिक विज्ञानी डॉ. निक्कु मधुसूदन ने इस खोज का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा, “हम जीवन की खोज के एक नए युग में प्रवेश कर चुके हैं, जहां मौजूदा तकनीक के जरिए हम संभावित रहने योग्य ग्रहों पर जैविक संकेतों को पहचान सकते हैं।”
हालांकि, शोधकर्ताओं ने यह भी स्पष्ट किया कि यह खोज सीधे तौर पर जीवों की उपस्थिति की पुष्टि नहीं करती, बल्कि यह एक "बायोसिग्नेचर" — यानी बायोलॉजिकल प्रोसेस का संकेत — हो सकता है। यह निष्कर्ष सतर्कता के साथ लिया जाना चाहिए, और इसकी पुष्टि के लिए और ज्यादा स्टडी की जरूरत है।
K2-18 b: एक अनोखा ग्रह
K2-18 b ग्रह का आकार पृथ्वी से लगभग 2.6 गुना बड़ा है और इसका मास पृथ्वी से 8.6 गुना ज्यादा है। यह ग्रह एक लाल बौने तारे की परिक्रमा करता है, जो हमारे सूरज से छोटा और कम चमकीला है। दिलचस्प बात यह है कि यह ग्रह अपने तारे की "रहने योग्य परिधि" (Habitable Zone) में स्थित है — यानी वह दूरी जहां ग्रह की सतह पर लिक्विड मौजूद हो सकता है, जो जीवन के लिए जरूरी तत्वों में से एक है।
वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि आने वाले समय में इस खोज को और सटीकता से परखा जाएगा। इस शोध से यह भी संकेत मिलता है कि पृथ्वी जैसे ग्रहों के अलावा भी अंतरिक्ष में जीवन के लिए उपयुक्त वातावरण मौजूद हो सकते हैं।
यह ग्रह कैसा है?
- यह ग्रह धरती से करीब 2.6 गुना बड़ा है।
- इसका वजन धरती से 8.6 गुना ज्यादा है।
- यह एक छोटे तारे के चारों ओर घूमता है, जो सूरज से छोटा और कम चमकीला है।
- यह "रहने लायक इलाके" में है, यानी वहां पानी मौजूद हो सकता है।
वैज्ञानिकों का क्या कहना है?
इस खोज का नेतृत्व करने वाले वैज्ञानिक डॉ. निक्कु मधुसूदन ने कहा, “हम अब ऐसे दौर में हैं, जहां हम दूसरे ग्रहों पर जीवन के संकेत ढूंढ सकते हैं। यह बहुत बड़ा कदम है।” उन्होंने यह भी कहा कि अभी और जांच-पड़ताल बाकी है, लेकिन यह खोज उम्मीद जगाती है कि हम ब्रह्मांड में अकेले नहीं हैं। इस खोज ने वैज्ञानिक समुदाय में नई ऊर्जा भर दी है और भविष्य में और ज्यादा गहराई से स्टडी करने की दिशा में प्रेरित किया है।
कितनी है इस खोज की सच्चाई की संभावना?
DMS और DMDS की मौजूदगी को लेकर वैज्ञानिकों को 99.7% यकीन है, यानी 0.3% संभावना है कि यह सिर्फ एक सांख्यिकीय भ्रम हो सकता है। इन गैसों की मात्रा इस ग्रह के वातावरण में धरती के मुकाबले हजारों गुना ज्यादा पाई गई है, जिसे बिना बायोलॉजिकल प्रोसेस के समझाना फिलहाल असंभव है।
'ट्रांजिट मेथड' से मिली जानकारी
जब यह ग्रह अपने तारे के सामने से गुजरता है, तब वैज्ञानिक उसके वातावरण की जानकारी लेते हैं। इसे ट्रांजिट मेथड कहा जाता है। इस दौरान तारे की रोशनी में जो बदलाव आता है, उससे ग्रह की वायुमंडलीय गैसों की पहचान की जाती है।
जीवन तो हो सकता है, लेकिन...
डॉ. मधुसूदन ने बताया कि इस तरह के ग्रहों पर माइक्रोबियल लाइफ, यानी छोटे-छोटे जीवों का जीवन हो सकता है, जैसा कि धरती के समुद्रों में पाया जाता है। लेकिन किसी भी तरह के बड़े जीव या जीवन के बारे में कुछ भी कहना अभी संभव नहीं है।
हालांकि यह खोज बेहद रोमांचक है, लेकिन वैज्ञानिक अभी भी पूरी सावधानी बरतने की बात कर रहे हैं। डॉ. मधुसूदन ने कहा, “हमें दो से तीन बार और ऐसे अवलोकन करने होंगे ताकि यह पक्का किया जा सके कि जो संकेत मिले हैं, वे सही हैं। इसके अलावा हमें यह भी जांचना होगा कि कहीं ये गैसें किसी गैर-जैविक (abiotic) प्रक्रिया से तो नहीं बन रही हैं।”