H-1B Visa: जैसे-जैसे अमेरिका H-1B वीजा नियमों को सख्त कर रहा है, दुनिया के अन्य प्रमुख देश साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में शीर्ष भारतीय पेशेवरों को लुभाने के लिए तेजी से कदम उठा रहे हैं। पिछले दिनों राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने इमिग्रेशन को हतोत्साहित करने का प्रयास शुरू किया है, जिससे भारत और चीन जैसे देशों के पेशेवरों में अनिश्चितता बढ़ गई है। इसके बाद कई देशों ने इसे एक मौके के तौर पर भुनाने के लिए भारतीयों के लिए अपने देश के दरवाजे खोल दिए है। आइए आपको बताते हैं क्या है ये पूरा मामला।
अमेरिका में H-1B वीजा नियम सख्त, लॉटरी सिस्टम होगा खत्म
हाल ही में ट्रंप प्रशासन ने एक घोषणा में H-1B वीजा शुल्क को बढ़ाकर $100,000 कर दिया था, जिससे दुनियाभर के जो लोग अमेरिका में इस वीजा पर रहते है उनमें व्यापक चिंता फैल गई थी। हालांकि, बाद में प्रशासन ने स्पष्ट किया कि यह नया शुल्क केवल नए आवेदनों पर लागू होगा, मौजूदा वीजा धारकों पर नहीं, जिससे हजारों पेशेवरों को राहत मिली। हालांकि ट्रंप प्रशासन के इस कदम से यह स्पष्ट हो गया कि वह अमेरिका में इमिग्रेशन को हतोत्साहित करना चाहते है।
इसके साथ ही ट्रंप प्रशासन ने मंगलवार को H-1B वीजा सिस्टम में बदलाव का प्रस्ताव दिया, ताकि अधिक वेतन पाने वाले और उच्च-कुशल कर्मचारियों को प्राथमिकता दी जा सके, और मौजूदा लॉटरी प्रणाली को समाप्त किया जा सके। अधिकारियों का कहना है कि यह कदम कम वेतन वाले विदेशी पेशेवरों को काम पर रखने से अमेरिकी श्रमिकों के वेतन में होने वाली कमी को रोकने के लिए है।
जर्मनी और ब्रिटेन लुभा रहे भारतीय प्रतिभाओं को
अमेरिका के सख्त होते नियमों के बीच, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे यूरोपीय देश भारतीय पेशेवरों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन ने एक वीडियो मैसेज में जर्मनी को अमेरिका के एक 'स्थिर और भरोसेमंद ऑप्शन' के रूप में पेश किया। उन्होंने बताया कि जर्मनी में भारतीय, औसतन, वहां के मूल निवासियों से अधिक कमाते हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था में उनके महत्वपूर्ण योगदान को दर्शाता है। हालांकि, जर्मनी ने हाल ही में अपने इमिग्रेशन कानूनों को भी सख्त किया है, जहां अब नागरिकता के लिए पांच साल तक निवास करना अनिवार्य है, जबकि पहले यह तीन साल था।
ब्रिटेन ने शीर्ष वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और तकनीकी विशेषज्ञों को आकर्षित करने के लिए अपनी एक 'ग्लोबल टैलेंट टास्कफोर्स' को एक्टिव किया है। यह दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों से आने वाले या प्रतिष्ठित पुरस्कारों वाले पेशेवरों के लिए वीजा शुल्क में कटौती या उन्हें पूरी तरह से खत्म करने पर विचार कर रहा है।
वहीं, चीन ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रतिभाओं को लुभाने के लिए एक विशेष 'K-वीजा' पेश किया है, जिससे वह भी इस वैश्विक प्रतिस्पर्धा में शामिल हो गया है।