पाकिस्तान और उसके हुकमरान में इस समय आगे कुआं पीछे खाई की स्तिथि में नजर आ रहा है। एक तरफ वह वॉशिंगटन को नाराज नहीं करना चाहता, तो दूसरी तरफ उसे अपने देश के अंदर बिगड़े हालात भी संभालने हैं। इसी बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान पर गाजा में बनने वाली इंटरनेशनल स्टेबिलाइजेशन फोर्स में सैनिक भेजने का दबाव बना रहे हैं। डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के पहले चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज और सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने फिलहाल गाजा के लिए प्रस्तावित इंटरनेशनल स्टेबिलाइजेशन फोर्स (ISF) में सैनिक भेजने को लेकर कोई फैसला नहीं लिया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को यह साफ किया।
मुश्किल में पाकिस्तान
यह बयान ऐसे समय में आया है, जब यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि वॉशिंगटन इस मिशन में शामिल होने के लिए इस्लामाबाद पर दबाव बना रहा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ताहिर हुसैन अंद्राबी ने साप्ताहिक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि इंटरनेशनल स्टेबिलाइजेशन फोर्स (ISF) में पाकिस्तान की भागीदारी को लेकर अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है। उन्होंने साफ किया कि भले ही इस फोर्स को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बातचीत चल रही हो, लेकिन पाकिस्तान को सैनिक भेजने का कोई आधिकारिक अनुरोध अब तक नहीं मिला है।
ट्रंप का गाजा प्लान
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर आने वाले हफ्तों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने के लिए वॉशिंगटन जा सकते हैं। यह पिछले छह महीनों में उनकी तीसरी मुलाकात होगी। माना जा रहा है कि इस बैठक में गाजा में बनने वाली फोर्स मुख्य चर्चा का विषय रह सकती है। इंटरनेशनल स्टेबिलाइजेशन फोर्स (ISF) अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के गाजा प्लान का एक अहम हिस्सा है। इस योजना को नवंबर में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मंजूरी मिली थी। इसका उद्देश्य गाजा में सुरक्षा बनाए रखना, हथियारों को हटाना और पुनर्निर्माण की निगरानी करना है।
पाकिस्तान ने इस फोर्स से जुड़े संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव का समर्थन किया था, लेकिन उसने हमास के निरस्त्रीकरण से जुड़ी किसी भी भूमिका को लेकर अपनी चिंता भी जताई है। इससे पहले उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने कहा था कि पाकिस्तान सैद्धांतिक तौर पर योगदान देने को तैयार है, लेकिन इसके लिए फोर्स के जनादेश और नियमों (TOR) पर पूरी साफ-सफाई जरूरी है। डार ने कहा था, “हम फोर्स में योगदान देने के लिए तैयार हैं। प्रधानमंत्री ने फील्ड मार्शल से सलाह के बाद सैद्धांतिक रूप से यह बात कही है। लेकिन अंतिम फैसला तभी लिया जाएगा, जब यह साफ हो जाएगा कि ISF का जनादेश और उसकी जिम्मेदारियां क्या होंगी।”
चारो ओर से घिरा आसिम मुनीर!
यह मुद्दा आसिम मुनीर के लिए देश के अंदर बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। पाकिस्तान गाजा में बनने वाली स्टेबिलाइजेशन फोर्स को लेकर बहुत संभलकर कदम रखना चाहता है। अगर पाकिस्तान इस फोर्स में सैनिक भेजता है, तो उसे इस्लामी संगठनों और आम जनता के विरोध का सामना करना पड़ सकता है। वहीं, अगर वह इसमें शामिल होने से मना करता है, तो अमेरिका के साथ रिश्ते बिगड़ने का खतरा है, क्योंकि अमेरिका चाहता है कि मुस्लिम देशों का समर्थन उसे मिले।
इसके अलावा पाकिस्तान पर तुर्की, ओमान और कतर जैसे देशों का भी राजनयिक दबाव बन सकता है, जो आम तौर पर हमास के प्रति सहानुभूति रखते हैं। पाकिस्तान ने आज तक इज़राइल को मान्यता नहीं दी है और वह शुरू से ही फिलिस्तीनी मुद्दे का समर्थन करता आया है। यह रुख 1948 से चला आ रहा है, जब देश के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना ने यहूदी राष्ट्र के गठन का विरोध किया था।
अटलांटिक काउंसिल में दक्षिण एशिया के सीनियर फेलो माइकल कुगेलमैन ने कहा कि अगर पाकिस्तान गाजा स्टेबिलाइजेशन फोर्स में योगदान नहीं देता है, तो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नाराज़ हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तान के लिए छोटी बात नहीं है, क्योंकि देश अमेरिकी निवेश और सुरक्षा मदद पाने के लिए अमेरिका की नजरों में अच्छा बने रहना चाहता है।
क्या कहते हैं रक्षा विशेषज्ञ
रक्षा विशेषज्ञ आयशा सिद्दीका ने कहा कि पाकिस्तान की मजबूत सैन्य क्षमता उसे इस मिशन में शामिल होने के लिए दबाव में डालती है। वहीं, सिंगापुर के एस. राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के विशेषज्ञ अब्दुल बासित ने चेतावनी दी कि अगर गाजा में हिंसा बढ़ती है, तो इसके पाकिस्तान के अंदर भी गंभीर असर हो सकते हैं। ट्रंप की गाजा योजना के तहत एक इंटरनेशनल स्टेबिलाइजेशन फोर्स (ISF) बनाने की बात है, जिसमें ज़्यादातर मुस्लिम देशों की सेनाएं शामिल होंगी। इस फोर्स की कमान एक अमेरिकी नियुक्त दो-स्टार जनरल के हाथ में होगी, जो इज़राइल से ऑपरेशंस की निगरानी करेगा। हालांकि योजना का तालमेल अमेरिका करेगा, लेकिन जमीन पर कोई अमेरिकी सैनिक तैनात नहीं होगा। पाकिस्तान, परमाणु हथियार रखने वाला एकमात्र मुस्लिम देश होने की वजह से इस फोर्स के लिए आमंत्रित देशों में सबसे अलग और अहम माना जा रहा है।
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