अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दवाइयों और चिप पर टैरिफ लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसका मतलब है कि अमेरिका को दवाइयां और सेमीकंडक्टर एक्सपोर्ट करने वाली दुनियाभर की कंनियों के लिए मुसीबत बढ़ने जा रही है। हालांकि, अभी इसमें समय लगेगा, क्योंकि ट्रंप सरकार ने इस बारे में लोगों से राय मांगी है। इस महीने की शुरुआत में ट्रंप ने दुनिया के करीब 180 देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने का ऐलान किया था। लेकिन, दवाओं और चिप को इसके दायरे से बाहर रखा गया था।
सेमीकंडक्टर के आयात पर टैरिफ
Donald Trump ने 9 अप्रैल को 70 से ज्यादा देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ 90 दिनों के लिए टालने का ऐलान किया। इसमें वे देश शामिल हैं, जिन्होंने जवाबी कार्रवाई में अमेरिकी गुड्स पर टैरिफ नहीं लगाया था। ऐसे देशों में इंडिया भी शामिल है। ट्रंप ने 13 अप्रैल को कहा कि वह अगले हफ्ते इंपोर्टेड सेमीकंडक्टर पर टैरिफ का ऐलान करेंगे। हालांकि, उन्होंने इस सेक्टर की कुछ कंपनियों को राहत देने की इच्छा जताई थी।
इंपोर्टेड चिप पर ज्यादा निर्भरता
ध्यान में रखने वाली बात है कि अमेरिका इंपोर्टेड चिप पर काफी ज्यादा निर्भर है। अमेरिका सबसे ज्यादा चिप ताइवान से आयात करता है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी चिप के इंपोर्ट को हतोत्साहित करने की कोशिश की थी। उन्होंने अमेरिका में चिप का उत्पादन बढ़ाने के लिए चिप कंपनियों को अरबों डॉलर की सहायता की पेशकश की थी।
दवा पर टैरिफ से अमेरिकी में बढ़ेगी समस्या
अमेरिका दवाइयों पर भी टैरिफ लगाने जा रहा है। सूत्रों ने कहा है कि ट्रंप सरकार फार्मास्युटिकल्स, फार्मास्युटिकल्स इनग्रेडिएंट्स और कुछ डेरिवेटिव प्रोडक्ट्स पर भी टैरिफ लगाएगी। हालांकि, अमेरिका ड्रग इंडस्ट्री ट्रंप के इस फैसले से खुश नहीं है। उसका मानना है कि इससे अमेरिका में दवाओं की कमी पैदा हो सकती है, जिससे आम लोगों के इलाज में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि जेनरिक ड्रग बनाने वाली कंपनियां बहुत कम मार्जिन पर ऑपरेट करती हैं। टैरिफ की वजह से उनकी दवाओं की कीमतें बढ़ जाएंगी। ऐसे में कंपनियों को अमेरिकी मार्केट में सप्लाई बंद करनी पड़ सकती है।
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जेनरिक दवां कंपनियां एक्सपोर्ट बंद कर देंगी
एसोसिएशन ऑफ एक्सेसिबल मेडिसिंस के सीईओ जॉन मर्फी III ने कहा है, "टैरिफ से सिर्फ समस्याएं बढ़ेंगी, जो पहले से अमेरिकी मार्केट में मौजूद हैं।" एक्सपर्ट्स का कहना है कि ब्रांडेड दवाएं बनाने वाली फार्मा कंपनियां तो टैरिफ का सामना कुछ हद तक कर सकती हैं, लेकिन जेनरिक दवा कंपनियां इसका बोझ बर्दाश्त नहीं कर सकेंगी।