दिग्गज टेक कंपनी माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) के ऐसे एंप्लॉयीज जो अमेरिका के एच-1बी (H-1B) या एच-4 (H-4) वीजा पर काम कर रहे हैं और फिलहाल अमेरिका के बाहर हैं, उन्हें फटाफट अमेरिका वापस जाना है। ऐसा इसलिए क्योंकि माइक्रोसॉफ्ट ने उन्हें 21 सितंबर यानी रविवार तक हर हाल में अमेरिका में एंट्री कर लेनी है। न्यूज एजेंसी रायटर्स की रिपोर्ट से इसका खुलासा हुआ है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी टेक कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने इंटर्नल मेल में एच-1बी और एच-4 वीजा वाले एंप्लॉयीज को अमेरिका आने को ट्रंप के फैसले के बाद कहा है जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा की सालाना फीस $1 लाख यानी ₹88 लाख कर दी है।
जो अमेरिका में हैं, उन्हें बाहर नहीं जाने की सलाह
माइक्रोसॉफ्ट ने अमेरिका से बाहर रह रहे एच-1बी (H-1B) या एच-4 (H-4) वीजा पर काम कर अपने एंप्लॉयीज को 21 सितंबर यानी रविवार तक अमेरिका आने को कहा है। कंपनी ने इसे लेकर एंप्लॉयीज को मेल भेजा है। साथ ही टेक कंपनी ने ये भी कहा कि एच-1बी (H-1B) या एच-4 (H-4) वीजा पर काम कर रहे जो एंप्लॉयीज पहले से ही अमेरिका में हैं, उन्हें फिलहाल यहीं बने रहना चाहिए तो जो बाहर हैं, उन्हें 21 सितंबर तक लौट आना चाहिए।
अमेरिका ने क्यों बढ़ाई H-1B Visa की फीस?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एक ऐसे घोषणा पत्र पर साइन किया जिसमें एच-1बी वीजा की एप्लीकेशन फीस को सालाना $1 लाख यानी करीब ₹88 लाख कर दिया गया है। सरकार के इस फैसले का बचाव करते हुए अमेरिकी कॉमर्स सेक्रेटरी हावर्ड लुटनिक ने कहा कि एंप्लॉयमेंट को लेकर पहले जो वीजा पॉलिसी थी, उससे औसत से कम वेतन पाने वाले एंप्लॉयीज भी अमेरिका में एंट्री पा जाते थे और इनमें से अधिकतर तो सरकारी मदद पर निर्भर थे। उन्होंने आगे कहा कि नई पॉलिसी से नीचे से 25% लोग बाहर हो जाएंगे यानी कि इनकी अमेरिका में एंट्री नहीं हो पाएगी और अमेरिकी खजाने में $10 हजार करोड़ डॉलर से अधिक रेवेन्यू आएगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि इस रेवेन्यू का इस्तेमाल देश पर कर्ज हल्का करने और टैक्सेज को कम करने में किया जाएगा।
टेक इंडस्ट्री में बढ़ी हलचल
ट्रंप ती नई वीजा नीतियों ने पूरी टेक इंडस्ट्री में हलचल मचा दी है। भारत की बात करें तो इसका झटका यहां के लोगों को तगड़ा लग सकता है क्योंकि करीब 73% एच-1बी वीजा भारतीयों के पास है और इनमें से अधिक टेक्नोलॉजी सेक्टर में काम कर रहे हैं। अधिकतर आईटी कंपनियां इंफोसिस (Infosys), विप्रो (Wipro), कॉग्निजेंट (Cognizant), और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (Tata Consultancy Services-TCS) अपने अमेरिकी प्रोजेक्ट में इंजीनियर्स और डेवलपर्स की भर्ती के लिए लंबे समय से इस पर निर्भर हैं। चूंकि ये वीजा आमतौर पर तीन साल के लिए वैलिड होती हैं और इन्हें छह वर्षों तक रिन्यू कराया जा सकता है और अब $1 लाख की सालाना फीस से अमेरिका में कंपनियों को भारतीयों को काम पर रखना महंगा हो जाएगा। ट्रंप की नई वीजा पॉलिसी पर अमेरिका में लिस्टेड आईटी सर्विसेज कंपनियों के शेयर 2-5% तक टूट गए।