ट्रंप के टैरिफ पाखंड का खुलासा! तेल बेचकर जितना पैसा कमा रहा रूस, उसमें 23% EU देशों की हिस्सेदारी, भारत का सिर्फ 13% हिस्सा
Trump Tarrif: सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि ह डेटा पश्चिम के उस "पाखंड" को उजागर करता है, जिसमें वह बार-बार रूस से तेल और एनर्ज की खरीद के लिए भारत को निशाना बना रहा है, जबकि वे अपने ही साथी देशों के बराबर या इससे भी ज्यादा की खरीदारी या सपोर्ट को नजरअंदाज कर रहा है
Trump Tarrif: ट्रंप के टैरिफ पाखंड का खुलासा! तेल बेचकर जितना पैसा कमा रहा रूस, उसमें 23% EU देशों की हिस्सेदारी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से इंपोर्ट होने वाले सामान पर पहले लगाए गए 25% टैरिफ के अलावा एक्स्ट्रा 25% टैरिफ और लगाने का आदेश भी दे दिया है, जिससे अब कुल टैरिफ 50% हो गया है। रूस से तेल खरीदने के चलते यह एडिशनल टैरिफ भारत पर लगाया है। लेकिन इस बीच एक ऐसी रिपोर्ट भी सामने आई है, जिसके आंकड़े ट्रंप प्रशासन के पाखंड को उजागर करते हैं। वैसे तो ट्रंप बार-बार कई मौकों पर ये दावे करते आए हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराया और पहलगाम हमले के बाद दोनों देशों के टकराव रोका, लेकिन खुद को 'शांति का दूत' बनाने में जुटे ट्रंप साहब पिछले करीब 6 महीने से खुद ही एकतरफा सबके खिलाफ टैरिफ वॉर छेड़े हुए हैं।
दरअसल फिनलैंड के सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के ताजा आंकड़े बताते हैं जब से यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ है, तब से रूस से बिकने वाले फॉसिल फ्यूल, जैसे तेल, गैस, कोयला की कुल बिक्री में 23 प्रतिशत हिस्सा यूरोपीय संघ (European Union) के देशों का है, जबकि भारत का इसमें सिर्फ 13 प्रतिशत हिस्सा है।
इतना ही नहीं, वर्तमान में रूस के आधे से ज्यादा तेल शिपमेंट का ट्रांसपोर्टेशन G7+ टैंकरों के जरिए जा रहा है और G7 में सात बड़े देश है- अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम (UK)।
TOI की रिपोर्ट में सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि ह डेटा पश्चिम के उस "पाखंड" को उजागर करता है, जिसमें वह बार-बार रूस से तेल और एनर्ज की खरीद के लिए भारत को निशाना बना रहा है, जबकि वे अपने ही साथी देशों के बराबर या इससे भी ज्यादा की खरीदारी या सपोर्ट को नजरअंदाज कर रहा है।
उन्होंने बताया कि यूरोपीय संघ रूस से न केवल एनर्जी, बल्कि फर्टिलाइजर्स, केमिकल, आयरन, स्टील और ट्रांसपोर्ट इक्विपमेंट भी इंपोर्ट करता रहता है।
CREA की ये आंकड़े अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारत के खिलाफ टैरिफ को दोगुना कर 50 प्रतिशत करने की घोषणा के ठीक बाद आए हैं, जिसमें उन्होंने नई दिल्ली पर "रूसी युद्ध मशीन को बढ़ावा देने" का आरोप लगाया है। इससे पहले पिछले महीने भारतीय रिफाइनर नायरा एनर्जी पर यूरोपीय संघ ने भी प्रतिबंध लगाए थे।
भारतीय अधिकारियों का कहना है कि यह रिपोर्ट भारत को अलग-थलग करने के पश्चिम के दोहरे मापदंड को उजाकर करती है, जबकि दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मास्को के साथ लगातार व्यापार कर रही हैं।
मास्को की कमाई, चीन का नेतृत्व, G7+ की भूमिका
CREA के अनुसार, युद्ध शुरू होने के बाद से रूस ने फॉसिल फ्यूल एक्सपोर्ट से 923 अरब यूरो की कमाई की है - जिसमें तेल, गैस, कोयला, रिफाइन फ्यूल शामिल हैं।
इसमें से 212 अरब यूरो यूरोपीय संघ के देशों से, 121 अरब यूरो भारत से आया, जबकि चीन 200 अरब यूरो से ज्यादा के इंपोर्ट के साथ टॉप खरीदार बना हुआ है।
रिपोर्ट में रूसी तेल की आवाजाही यानी ट्रांसपोर्टेशन में G7+ टैंकरों की बढ़ती भूमिका पर भी जोर डाला गया है, खासतौर से जून में यूरोपीय संघ के नए प्रतिबंधों के बाद। इसमें कहा गया है, "जनवरी से रूसी तेल ट्रांसपोर्टेशन में G7+ की हिस्सेदारी 36 प्रतिशत से बढ़कर 56 प्रतिशत हो गई है।"
अकेले जून में, रूस के आधे से ज्यादा समुद्री तेल के एक्सपोर्ट को G7+ टैंकरों का इस्तेमाल करके भेजा गया, जो मई की तुलना में छह प्रतिशत ज्यादा है।
जहां पश्चिमी टैंकरों के इस्तेमाल से लगता है कि G7 देशों की तय की हुई तेल के प्राइस कैप का पालन हो रहा है, वहीं भारतीय अधिकारी कहते हैं कि भारत के रूस से तेल खरीदने से वैश्विक तेल बाजार को स्थिर रखने में मदद मिली है।
रूस का तेल दुनिया की रोजाना की कुल सप्लाई का लगभग 9 प्रतिशत है। भारत का कहना है कि उसके लगातार इंपोर्ट करने से तेल की कीमतों में अचानक भारी बढ़ोतरी (price shocks) नहीं हुई। यही वजह है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) ने रूस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के बजाय तेल की कीमतों पर प्राइस कैप लगाने का रास्ता चुना। क्योंकि इससे वैश्विक तेल बाजार में बड़े संकट से बचते हुए रूस की युद्ध फंडिंग को रोकने में मदद मिली है।