खुफिया एजेंसियों के अनुसार को अब बड़ी अहम जानकारी हाथ लगी है। आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (JeM) ने अपने संगठन की ताकत बढ़ाने के लिए अब महिलाओं को अपने जाल फंसाने की काम शुरू कर दिया है। यह अभियान संगठन के शीर्ष नेताओं के करीबी रिश्तेदारों के नेतृत्व में चलाया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, यह कदम बताता है कि आतंकी संगठन ने अपनी रणनीति में एक बड़ा बदलाव किया है। अब यह डिजिटल तरीके और परिवार आधारित नेटवर्क के जरिए भर्ती और प्रचार पर ध्यान दे रहा है।
खुफिया रिपोर्टों के मुताबिक, संगठन ने एक ऑनलाइन कार्यक्रम शुरू किया है जिसका नाम तुफत अल-मुमिनात है। इसके साथ ही एक समानांतर महिला संगठन बनाया गया है, जिसे जमात उल-मुमिनात या “महिला ब्रिगेड” कहा जा रहा है।
इस नए संगठन में अहम भूमिका आतंकी मौलाना मसूद अजहर की बहनों- सादिया और समैरा अजहर और एक दूसरे कमांडर की पत्नी अफरीरा फारूक को दी गई है। सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि यह परिवार आधारित नेतृत्व भरोसा बनाने, निष्ठा कायम रखने और विचारधारा पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए किया गया है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, यह पहल उन आतंकवादी संगठनों की तरह है, जिन्होंने पहले महिलाओं को सक्रिय भूमिका में लाया है, जैसे ISIS की अल-खंसा ब्रिगेड, LTTE और हमास। रिपोर्टों में कहा गया है कि इस कार्यक्रम में महिलाओं को “धार्मिक और नैतिक रूप से संघर्ष में भाग लेने का अधिकार और कर्तव्य” बताया जा रहा है।
यह ऑनलाइन कोर्स ₹500 पाकिस्तानी रुपए के एक “दान” के तहत रजिस्ट्रेशन किया जाता है। खुफिया एजेंसियों को शक है कि यह फीस असल में धन उगाही (fundraising) का तरीका है। यह कोर्स धार्मिक शिक्षा या सामुदायिक सेमिनार के नाम पर पैसे के फ्लो को छिपाने में मदद कर सकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय निगरानी एजेंसियां जैसे FATF इसका पता न लगा सकें।
अधिकारियों के अनुसार, कार्यक्रम में महिलाओं को “इस्लामी जिहादी दृष्टिकोण” से प्रशिक्षित किया जा रहा है। उनसे उम्मीद की जा रही है कि वे रसद प्रबंधन, सूचना इकट्ठा करने, पैसे ट्रांसफर करना और कभी-कभी आत्मघाती अभियानों जैसी भूमिकाओं में योगदान देंगी।
इस पूरी ट्रेनिंग को ऑनलाइन ऑपरेट किया जा रहा है, जिसमें रोजाना लगभग 40 मिनट की क्लास होती हैं। विश्लेषकों का कहना है कि यह तरीका सीमाएं पार करके पाकिस्तान, अफगानिस्तान, कश्मीर और प्रवासी समुदायों में भी इनके समर्थकों तक पहुंच बनाता है।
आलोचकों का तर्क है कि पाकिस्तान में ऐसे JeM-से जुड़े कार्यक्रमों का खुलकर चलना या तो निगरानी की विफलता है या फिर प्रशासनिक सहमति। यह पाकिस्तान के FATF और आतंकवाद-विरोधी प्रतिबद्धताओं के विपरीत है।
सुरक्षा विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि सरकारों और डिजिटल प्लेटफॉर्म को मिलकर ऐसी गतिविधियों पर सख्ती करनी चाहिए। साथ ही यह भी ज़रूरी है कि ऐसे संगठनों के वित्तीय स्रोतों की पारदर्शी जांच हो और जो भी “धार्मिक या शैक्षिक” नाम पर चरमपंथ को बढ़ावा दें, उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाए।