रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं अब पूरी तरह तैयार हो चुकी है और किसान तेजी से इसकी कटाई में जुट गए हैं। पारंपरिक रूप से गेहूं की कटाई के बाद किसान केवल अनाज निकालकर फसल अवशेष को बेकार समझकर जला देते थे। लेकिन अब समय बदल गया है। आधुनिक मशीनों की मदद से किसान इस बचे हुए अवशेष को भूसे में बदलकर एक और कमाई का जरिया बना सकते हैं। भूसा सिर्फ पशुओं के चारे तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उपयोग पेपर और कार्डबोर्ड इंडस्ट्री में भी होता है।
स्ट्रॉ रीपर जैसी मशीनें किसानों को फसल अवशेष का अधिकतम लाभ उठाने में मदद कर रही हैं।इससे न केवल खेतों की उर्वरता बनी रहती है, बल्कि आगजनी जैसी समस्याओं से भी बचा जा सकता है। अब कटाई के बाद भी किसानों के लिए आमदनी के नए रास्ते खुल रहे हैं।
पराली जलाने का समाधान और कमाई का नया तरीका
परंपरागत रूप से कटाई के बाद खेत में बची पराली को जला दिया जाता था, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान होता था और मिट्टी की उर्वरता भी घटती थी। लेकिन अब स्ट्रॉ रीपर नामक मशीन इस समस्या का हल बन गई है। ये ट्रैक्टर से जुड़कर खेत में फैले फसल अवशेष को उठाती है, छोटे-छोटे टुकड़ों में काटती है और भूसे में बदल देती है। इस भूसे को किसान बेचकर अतिरिक्त आमदनी कमा सकते हैं। एक एकड़ खेत में लगभग 10 क्विंटल तक भूसा मिल सकता है, जिसे बाजार में अच्छे दाम पर बेचा जा सकता है।
अनाज और पशुचारे से दोगुना फायदा
स्ट्रॉ रीपर सिर्फ भूसा बनाने में ही मदद नहीं करता, बल्कि कटाई के दौरान गेहूं की उन बालियों को भी इकट्ठा कर लेता है, जो खेत में गिरकर बेकार हो जाती थीं। इस तरह, एक एकड़ खेत से लगभग 70-80 किलो अतिरिक्त गेहूं भी मिल सकता है, जिससे किसानों को दोगुना फायदा होगा। वहीं, पशुपालकों के लिए भूसा एक महत्वपूर्ण चारा है, जिससे वे अपने मवेशियों को उचित पोषण दे सकते हैं। कुल मिलाकर, गेहूं की कटाई के बाद भूसे का सही उपयोग करके किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं और पर्यावरण को भी सुरक्षित रख सकते हैं।