बघेलखंड में अब खेतों की रौनक एक बार फिर लौटने वाली है। खरीफ फसलों की कटाई लगभग पूरी हो चुकी है और किसान नई उम्मीदों के साथ रबी सीजन की तैयारी में जुट गए हैं। इस बार किसानों की निगाहें ऐसी फसलों पर हैं जो मेहनत कम और मुनाफा ज्यादा दें। खेतों में जल्द ही ट्रैक्टरों की गड़गड़ाहट और बीज बोने की चहल-पहल शुरू हो जाएगी। मौसम बदल रहा है, मिट्टी तैयार हो रही है और किसान नए सीजन की संभावनाओं को लेकर उत्साहित हैं। गेहूं, चना और सरसों जैसी फसलों के साथ अब किसान आधुनिक तकनीक और नई किस्मों को अपनाने की सोच रहे हैं
ताकि पैदावार भी बढ़े और बाजार में अच्छे दाम भी मिल सकें। इस बार का रबी सीजन सिर्फ खेती का नहीं बल्कि उम्मीदों का भी मौसम बनकर सामने आ रहा है, जहां हर बीज के साथ किसान अपने भविष्य की फसल बो रहे हैं।
कौन सी फसल देगी ज्यादा मुनाफा?
अक्टूबर के आखिर और नवंबर की शुरुआत में किसानों के सामने हमेशा यही सवाल खड़ा होता है “इस बार कौन सी फसल बोएं ताकि मेहनत कम और मुनाफा ज्यादा मिले?” कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अब वक्त है पारंपरिक फसलों के साथ वैकल्पिक फसलों पर भी ध्यान देने का, ताकि मौसम और बाजार दोनों का फायदा उठाया जा सके।
गेहूं भारत की खाद्य सुरक्षा की रीढ़ मानी जाती है। नवंबर का महीना इसकी बुवाई के लिए सबसे सही समय होता है। विशेषज्ञों के अनुसार, पूसा यशस्वी, करण वंदना और डीडीडब्ल्यू-47 जैसी उन्नत किस्में किसानों को अधिक उपज और बेहतर गुणवत्ता देती हैं।
मध्य प्रदेश में चना रबी सीजन की सबसे लोकप्रिय फसल है। सतना और रीवा जैसे जिलों में इसकी बड़ी पैदावार होती है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक पूसा-256 और गुजरात चना-4 किस्में उच्च उत्पादन के लिए बेहद उपयुक्त हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है।
अब बघेलखंड के किसान भी सरसों की खेती में रुचि दिखा रहे हैं। ये फसल ठंडे मौसम में बेहतरीन परिणाम देती है और इसके तेल, खली और पत्तों की बाजार में हमेशा उच्च मांग बनी रहती है। यही वजह है कि सरसों किसानों के लिए सोने की फसल साबित हो रही है।
रबी सीजन में आलू की खेती किसानों के लिए लगातार मुनाफे का सौदा बन रही है। सतना और आसपास के क्षेत्रों में कुफरी चिप्ससोना और राजेंद्र आलू जैसी किस्मों की अच्छी पैदावार मिल रही है। मिट्टी की सही तैयारी और समय पर सिंचाई से आलू की अच्छी पैदावार हो सकती है।
मटर ऐसी फसल है जो किसान को सब्जी और दाल, दोनों रूप में लाभ देती है। 6 से 7.5 पीएच वाली दोमट मिट्टी में ये फसल खूब पनपती है। आर्केल, लिंकन और पूसा प्रभात किस्में उत्तर भारत की जलवायु के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती हैं।