यूनियन बजट 2025 से पहले इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों और इकोनॉमिस्ट्स ने सरकार को इनकम टैक्स में कमी करने की सलाह दी है। इंफोसिस के पूर्व सीएफओ और आरिन कैपिटल के चेयरमैन टीवी मोहनदास पई ने भी सरकार को लोगों पर इनकम टैक्स का बोझ घटाने की सलाह दी है। कुछ हफ्ते पहले उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इस बारे में पोस्ट किया था। सीएनबीसी-टीवी18 को दिए इंटरव्यू में उन्होंने इनकम टैक्स में कमी की अपनी मांग दोहराई। उन्होंने कहा कि सरकार को इनकम टैक्स का ऐसा फ्रेमवर्क बनाना होगा, जिसमें टैक्स चुकाने के बाद भी लोगों के हाथ में अच्छे पैसे बच सके।
ऐसा होना चाहिए इनकम टैक्स स्लैब
पई ने सरकार को इनकम टैक्स (Income Tax) स्लैब्स को आसान और लोगों के लिए फायदेमंद बनाने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि 0-5 लाख तक की इनकम पर टैक्स नहीं लगना चाहिए। 5-10 लाख रुपये तक की इनकम पर 10 फीसदी टैक्स लगाया जा सकता है। 10-20 लाख रुपये तक की इनकम पर 20 फीसदी टैक्स लगाया जा सकता है। 20 लाख रुपये से ज्यादा की इनकम पर 30 फीसदी टैक्स लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार को ज्यादातर एग्जेम्प्शन खत्म कर देने चाहिए। सिर्फ इंश्योरेंस और परोपकार पर डिडक्शन मिलना चाहिए।
विवादित मामलों का निपटारा जरूरी
उन्होंने इनकम टैक्स से जुड़े विवाद के मामलों के निपटारे पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए यह जरूरी है। उन्होंने इनकम टैक्स के विवाद के मामलों में इजाफा पर चिंता जताई। 2014 में इनकम टैक्स के विवाद के मामलों की संख्या 4.5 लाख थी। 2024 में यह संख्या बढ़कर 12.5 लाख हो गई है। करीब 5.65 लाख मामले कमिश्नर के स्तर पर लंबित हैं। विवादित मामलों की यह संख्या बिजनेस की ग्रोथ में बड़ी रुकावट है। उन्होंने टैक्स को लेकर लोगों को परेशान करने के मामलों पर भी रोक लगाने की मांग की।
इंडिविजुअल टैक्सपेयर्स से बढ़ रहा कलेक्शन
इंडिविजुअल टैक्सपैयर्स से सरकार का टैक्स कलेक्शन लगातार बढ़ रहा है। दो साल पहले यह करीब 7 लाख करोड़ रुपये था। पिछले साल यह बढ़कर 10.35 लाख करोड़ रुपये हो गया है। FY25 में इसके 13 लाख करोड़ तक पहुंच जाने का अनुमान है। इसके मुकाबले कॉर्पोरेट टैक्स कलेक्शन में सिर्फ 8 फीसदी इजाफा हुआ है। नॉन-कॉर्पोरेट टैक्स कलेक्शन 21 फीसदी से ज्यादा बढ़ा है। इंडिविजुअल टैक्सपेयर्स नॉन-कॉर्पोरेट टैक्स कलेक्शन के तहत आते हैं।
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अभी इनकम टैक्स की दो रीजीम हैं
इंडिविजुअल टैक्सपेयर्स को इनकम टैक्स दो रीजीम में से किसी एक का चुनाव करना होता है। नई रीजीम की शुरुआत 2020 में हुई थी। इसमें टैक्स के रेट्स कम हैं, लेकिन डिडक्शन के फायदे नहीं मिलते हैं। ओल्ड रीजीम में टैक्स के रेट्स ज्यादा है, लेकिन डिडक्शन के फायदे मिलते हैं।