Budget 2026: केंद्र सरकार के पूंजीगत खर्च में 12% और राज्यों के कैपेक्स सपोर्ट में 10% की हो बढ़ोतरी, CII ने कई सुधारों का दिया सुझाव

Budget 2026: वैश्विक निवेशकों की भागीदारी को गहरा करने के लिए CII ने एक इंडिया ग्लोबल इकोनॉमिक फोरम बनाने की भी सलाह दी। ECB प्रोसेस को आसान बनाने की मांग की है। प्राइवेट इनवेस्टमेंट को बढ़ावा देने का भी सुझाव है

अपडेटेड Dec 14, 2025 पर 4:55 PM
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वित्त वर्ष 2026-27 के लिए केंद्रीय बजट 1 फरवरी 2026 को पेश होने की उम्मीद है।

इंडस्ट्री लॉबी CII (कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री) ने आने वाले यूनियन बजट 2026-27 के लिए सुधारों का एक बड़ा सेट प्रपोज्ड किया है। CII चाहता है कि देश में पब्लिक, प्राइवेट और विदेशी निवेश में लगातार ग्रोथ को बढ़ावा मिल सके और भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार बनी रहे। वित्त वर्ष 2026-27 के लिए केंद्रीय बजट 1 फरवरी 2026 को पेश होने की उम्मीद है।

न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, CII ने वित्त वर्ष 2026-27 में केंद्र सरकार के पूंजीगत खर्च में 12 प्रतिशत और राज्यों के कैपेक्स सपोर्ट में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी करने का सुझाव दिया है। वित्त वर्ष 2026-32 के लिए 150 लाख करोड़ रुपये की नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (NIP) 2.0 लॉन्च करने का सुझाव भी है। इसके अलावा नए निवेश, प्रोडक्शन या टैक्स कॉन्ट्रीब्यूशन के बड़े पड़ाव हासिल करने वाली फर्मों को इंक्रीमेंटल टैक्स क्रेडिट देने या कंप्लायंस में छूट देने; और एक NRI इनवेस्टमेंट प्रमोशन फंड बनाने का भी सुझाव दिया है।

CII की यह भी मांग है कि नए कैपिटल खर्च और टेक्नोलॉजी अपग्रेड्स को और बढ़ावा देने के लिए एक्सेलरेटेड डेप्रिसिएशन बेनिफिट्स को फिर से शुरू किया जाए। CII यह भी चाहता है कि नेशनल इनवेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (NIIF) को मजबूत करने के लिए एक सॉवरेन इनवेस्टमेंट स्ट्रैटेजी काउंसिल (SIFC) बनाई जाए। ऐसा इसलिए ताकि निवेश को राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप बनाया जा सके।


लाया जाए इकोनॉमिक-साइकिल पर बेस्ड पब्लिक डेट फ्रेमवर्क

CII के मुताबिक, सालाना घाटे के सख्त नियमों की जगह इकोनॉमिक-साइकिल पर बेस्ड पब्लिक डेट फ्रेमवर्क लाया जाए। इससे वित्तीय स्थिरता मजबूत होगी, वैश्विक झटकों के दौरान सरकार को हालात के अनुसार खर्च या बचत करने की छूट मिलेगी। साथ ही सालाना लक्ष्यों के बार-बार टूटने से भी बचा जा सकेगा। आगे कहा कि ऐसा फ्रेमवर्क, फिस्कल पॉलिसी को मीडियम-टर्म कर्ज को टिकाऊ बनाए रखने के साथ जोड़कर क्रेडिबिलिटी को मजबूत करेगा।

पीटीआई के मुताबिक, CII के डायरेक्टर जनरल चंद्रजीत बनर्जी का कहना है, "आने वाला यूनियन बजट 2026-27 स्टेबलाइजर और ग्रोथ को बढ़ाने वाले, दोनों का डबल रोल निभाएगा। ऐसे में निवेश को बढ़ावा देना सबसे जरूरी चीजों में से एक होगा।"

अच्छा सरकारी निवेश अभी भी जरूरी

CII की सिफारिशों में पब्लिक कैपिटल खर्च को मजबूत करने पर जोर दिया गया है क्योंकि यह इंफ्रास्ट्रक्चर से होने वाली ग्रोथ की रीढ़ है। साथ ही खास इंसेंटिव, इंस्टीट्यूशनल सुधारों और वैश्विक स्तर पर बेहतर जुड़ाव के जरिए प्राइवेट और विदेशी निवेश आकर्षित करने पर भी जोर दिया गया है। CII ने कहा कि सरकारी निवेश को मजबूत करना अब भी जरूरी है, क्योंकि महामारी के बाद भारत की आर्थिक रिकवरी में सरकारी पूंजीगत खर्च ने बड़ी भूमिका निभाई है। इससे इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार हुआ और निजी निवेश को भी आगे आने के लिए प्रेरणा मिली। CII ने एक कैपिटल एक्सपेंडिचर एफिशिएंसी फ्रेमवर्क (CEEF) को इंस्टीट्यूशनल बनाने का प्रस्ताव रखा है।

इसके अलावा प्राइवेट इनवेस्टमेंट को बढ़ावा देने का भी सुझाव है। बनर्जी ने कहा, "भारत सरकार ने पिछले साल के यूनियन बजट में इनकम टैक्स में राहत देकर और हाल ही में GST 2.0 के जरिए डिमांड को बड़ा बढ़ावा दिया है। इनवेस्टमेंट, खासकर प्राइवेट सेक्टर का इनवेस्टमेंट, इकोनॉमिक ग्रोथ के लिए अगला बड़ा ड्राइवर होगा। अगले वित्त वर्ष में ग्रोथ की रफ्तार बनाए रखने के लिए इस पर फोकस करने की जरूरत है।"

CII ने कहा कि इसके लिए जो फर्म नए निवेश, प्रोडक्शन या टैक्स कॉन्ट्रीब्यूशन के बड़े माइलस्टोन हासिल कर रही हैं, उनके लिए इंक्रीमेंटल टैक्स क्रेडिट या कंप्लायंस में छूट दी जाए। इससे वे अपने मुनाफे को फिर से प्रोडक्टिव एसेट्स में लगाएंगी। इससे क्लीन एनर्जी, इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर और लॉजिस्टिक्स जैसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी।

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NRI इनवेस्टमेंट प्रमोशन फंड

CII ने एक NRI इनवेस्टमेंट प्रमोशन फंड बनाने का सुझाव दिया है। यह एक सरकारी-प्राइवेट होल्डिंग कंपनी हो सकती है, जिसमें 49 प्रतिशत तक सरकारी हिस्सेदारी हो। यह फंड इंफ्रास्ट्रक्चर और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसे क्षेत्रों में NRI, FPI और संस्थागत निवेश को आकर्षित कर सकेगा। यह फंड FCNR रेट्स पर बेंचमार्क किए गए लॉन्ग-टर्म कन्वर्टिबल बॉन्ड्स के जरिए कैपिटल जुटा सकता है।

CII ने ECB (एक्सटर्नल कमर्शियल बॉरोइंग्स) प्रोसेस को आसान बनाने की मांग की है। साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर और मैन्युफैक्चरिंग प्रोजेक्ट्स के लिए उधारी की लिमिट बढ़ाने, उधारी चुकाने के लिए लंबी अवधि दिए जाने और पार्शियल रिस्क कवर देने की भी मांग है। CII के अनुसार, बड़े FDI प्रस्तावों के लिए केंद्र और राज्यों में विशेष सहायता इकाइयों के साथ सिंगल-विंडो क्लीयरेंस सिस्टम लागू किया जाना चाहिए। अगर 60–90 दिनों में स्वतः मंजूरी (डीम्ड अप्रूवल) का प्रावधान हो, तो इससे स्पष्टता आएगी, प्रशासनिक देरी कम होगी और बड़े निवेश तेजी से आगे बढ़ेंगे।

वैश्विक निवेशकों की भागीदारी को गहरा करने के लिए CII ने एक इंडिया ग्लोबल इकोनॉमिक फोरम बनाने की भी सलाह दी। यह सरकार के नेतृत्व वाला प्लेटफॉर्म होगा, जो MNCs, सॉवरेन वेल्थ फंड्स, पेंशन फंड्स, प्राइवेट इक्विटी और दूसरे इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स को एक साथ लाएगा।

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