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अमेरिकी टैरिफ के झटके के बावजूद 2038 तक भारत बन जाएगा दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था - EY रिपोर्ट

इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के साथ-साथ भारत को भी 'मरी हुई इकोनॉमी' कहा था। अनुमान है कि 2028 तक बाजार विनिमय दर के लिहाज से भारत जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा

MoneyControl Newsअपडेटेड Aug 28, 2025 पर 5:08 PM
अमेरिकी टैरिफ के झटके के बावजूद 2038 तक भारत बन जाएगा दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था - EY रिपोर्ट
रिपोर्ट में कहा गया है कि टैरिफ के दबाव और ग्लोबल मंदी जैसी अनिश्चितताओं के बावजूद भारत की मजबूती, घरेलू मांग पर निर्भरता और आधुनिक तकनीकों की वजह से बढ़ती क्षमताओं की वजह से कायम है

EY की एक रिपोर्ट में बुधवार को कहा गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था 2038 तक 34.2 ट्रिलियन डॉलर के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के साथ दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकती है और 2030 तक क्रय शक्ति समता (purchasing power parity) के मामले में 20.7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है। इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि अगर 2030 के बाद भारत और अमेरिका 2028-2030 की अवधि (आईएमएफ के पूर्वानुमानों के अनुसार) के 6.5 फीसदी और 2.1 फीसदी की औसत विकास दर बनाए रखते हैं, तो भारत 2038 तक क्रय शक्ति समता (purchasing power parity)के आधार पर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ सकता है।

इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के साथ-साथ भारत को भी एक 'मरी हुई इकोनॉमी' कहा था। अनुमान है कि 2028 तक बाजार विनिमय दर ( market exchange rate terms) के लिहाज से भारत जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर सही उपाय किए जाएं तो भारत अमेरिकी टैरिफ के असर को काफी काम कर सकता है।

EY इकोनॉमी वॉच के अगस्त 2025 अंक में कहा गया है कि भारत दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभर रहा है, जिसमें उच्च बचत और निवेश दर, अनुकूल जनसांख्यिकी और एक स्थिर राजकोषीय स्थिति सहित तमाम मजबूत आर्थिक बुनियादी तत्व मौजूद हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि टैरिफ के दबाव और ग्लोबल मंदी जैसी अनिश्चितताओं के बावजूद भारत की मजबूती, घरेलू मांग पर निर्भरता और आधुनिक तकनीकों की वजह से बढ़ती क्षमताओं की वजह से कायम है। इस रिपोर्ट में अमेरिकी टैरिफ के जुड़ी अनिश्चितताओं और ग्लोबल इकोनॉमिक चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का तुलनात्मक आर्थिक विश्लेषण किया गया है।

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