NCERT Class 7 Social Science Syllabus: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) देश की युवा पीढ़ी को अपनी प्रचीन सांस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर से रूबरू कराने के लिए कई कदम उठा रहा है। परिषद ने कई कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में बदलाव किया है। इसी क्रम में 7वीं कक्षा की सोशल साइंस की किताब में भी एक नया चैप्टर जोड़ा गया है। यह चैप्टर देश की बरसों पुरानी विरासत पर आधारित है, जिसे अब दुनिया ने भी स्वीकार कर लिया है। 7वीं कक्षा में एनसीआरटी की किताबें पढ़ने वाले छात्र अब ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का पाठ पढ़ेंगे। वसुधैव कुटुंबकम, जिसका अर्थ ‘विश्व एक परिवार’ है। वसुधैव कुटुंबकम की सोच अब सिर्फ बड़े-बड़े मंचों और नेताओं के भाषणों का हिस्सा नहीं होगी। ये स्कूली छात्रों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनेगी। इसके जरिए वे न सिर्फ अपने देश की धरोहर, सोच और प्राचीन परंपराओं को जान पाएंगे, बल्कि इसे आगे बढ़ाने में अहम भूमिका भी निभाएंगे।
परिषद के अधिकारियों ने कहा कि इसका मकसद बच्चों को यह बताना है कि वैश्विक भाईचारे में विश्वास सदियों से भारत के सांस्कृतिक ताने-बाने का जरूरी हिस्सा रहा है। यह भारत की G20 प्रेसीडेंसी की थीम बनने से भी बहुत पहले से ये सोच देश की परंपरा और विरासत का हिस्सा रही है। एनसीईआरटी के डायरेक्टर दिनेश प्रसाद सकलानी ने कहा कि चैप्टर का नाम ‘इंडिया, ए होम टू मेनी’ है। उन्होंने कहा, ‘जो लोग यहां बसे, फले-फूले और तरक्की की, उन्होंने भारत के वास्तविक अर्थ को समझा। भारत की सोच में वसुधैव कुटुम्बकम की मूल भावना समाई हुई है।’
उन्होंने बताया कि 7वीं कक्षा की सोशल साइंस की किताब के चैप्टर में उन लोगों के कुछ उदाहरण दिए गए हैं जो अलग-अलग वजहों से भारत आकर बस गए। उन्हें एहसास हुआ कि वे यहां सुरक्षित हैं और उन्हें प्यार से अपनाया गया है। इस चैप्टर में यहूदी और पारसी ग्रुप्स के बारे में बताया गया है जो अपनी ही जमीन पर जुल्म और उथल-पुथल से भागकर भारत आए थे।
इन समुदायों को यहां सिर्फ पनाह ही नहीं मिली, यहां उन्हें सम्मान और फलने-फूलने के अवसर भी मिले। यह चैप्टर इस बात पर जोर देता है कि कैसे यह अपनापन भारत की लंबे समय से चली आ रही परंपरा का हिस्सा बन गया।
यह अध्याय छात्रों को बताएगा कि ‘वसुधैव कुटुंबकम’ सिर्फ नारा या मुहावरा नहीं है। यह भारत के सामाजिक ताने-बाने का वो हिस्सा है, जिसे भारत ने अपनाया है। भारत और भारत के लोगों के लिए यह सिर्फ उपदेश तक ही सीमित नहीं रहा है। अधिकारियों का मानना है कि यह चैप्टर बच्चों को यह समझने में मदद करेगा कि वसुधैव कुटुम्बकम कोई आज का नारा नहीं है, बल्कि दुनिया को देखने का एक विरासत में मिला तरीका है, जिसने पीढ़ियों से भारत की पहचान बनाई है।