बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अब गिनती के दिन बचे हैं। ऐसे में प्रचार प्रसार के लिए सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। लेकिन इस अहम मुकाबले में किसका पलड़ा भारी है? 14 नवंबर को नतीजों का इंतजार करते हुए न्यूज 18 के एडिटर्स ने अहम 'एक्स-फैक्टर्स' की ओर इशारा कर रहे हैं, जो आखिरकार जीत का फैसला कर सकते हैं। आइए जानते हैं क्या है वो फैक्टर्स।
क्या है जमीनी हालात
मनीकंट्रोल के चीफ एडिटर नलिन मेहता ने कहा कि, 'जमीनी हालात पर नजर डालें तो बीजेपी इस बार काफी आत्मविश्वास में दिख रही है। शुरुआत से ही उसने चुनावी रणनीति पर मजबूत तैयारी की है, जो करीबी मुकाबलों में बड़ा असर डाल सकती है। पिछली बार लगभग 30 सीटें ऐसी थीं जहां बीजेपी मामूली अंतर से हार गई थी। इस बार सरकार ने महिला रोजगार योजना के तहत 75 लाख महिला मतदाताओं को ₹10,000 देने की घोषणा की है। गौरतलब है कि पिछले तीन चुनावों में बिहार में महिलाओं ने पुरुषों से ज़्यादा मतदान किया है। यही रणनीति मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए फायदेमंद रही थी। अब पार्टी उम्मीद कर रही है कि बिहार में भी यह दांव उतना ही असर दिखाएगा।'
विपक्ष के बिखराव का फायदा
उन्होंने आगे कहा कि, बिहार भारत का सबसे युवा राज्य माना जाता है, जहां बड़ी संख्या में युवा मतदाता हैं। यही कारण है कि सभी दल इस वर्ग को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन विपक्ष के सामने इस बार सबसे बड़ी चुनौती यह है कि पिछली बार की तरह अब वह एकजुट नहीं है। 2024 के चुनाव में जब विपक्ष ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी, तब सभी दल एक साथ थे। अब स्थिति बदल चुकी है। कांग्रेस की भूमिका कमजोर हो गई है और राहुल गांधी की सक्रियता भी सीमित दिख रही है। ऐसे में विपक्ष के लिए माहौल पहले जैसा नहीं रहा।
'राहुल-तेजस्वी ने उठाए गलत मुद्दे'
#BiharElections | I still think the ‘SIR Debate’ was the wrong issue to focus on: @Zakka_Jacob@nalinmehta: BJP on ground is looking fairly confident
There is space for an alternative option, but BJP and Nitish Kumar is a more credible voice: @RShivshankar #TakeThree pic.twitter.com/yfMb9p57Ui — News18 (@CNNnews18) October 18, 2025
कंसल्टिंग एडिटर राहुल रविशंकर ने कहा कि, मेरा मानना है कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की "मतदाता अधिकार यात्रा" से बहुत ज़्यादा प्रभाव नहीं पड़ा। विपक्ष ने जिन मुद्दों को उठाया, वे आम जनता के रोज़मर्रा के जीवन से सीधे जुड़े नहीं लगते। लोगों को रोजगार और महंगाई जैसे मुद्दों की उम्मीद थी, लेकिन विपक्ष उन पर ज़्यादा ध्यान नहीं दे पाया। यह उनकी रणनीतिक गलती मानी जा रही है। इसके अलावा, सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर भी अस्पष्टता बनी हुई है। अभी तक यह तय नहीं हुआ है कि गठबंधन में कौन-सी पार्टी कितनी सीटों पर लड़ेगी, और कांग्रेस ने यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि क्या तेजस्वी यादव ही मुख्यमंत्री पद के चेहरा होंगे। कुल मिलाकर, ऐसा लगता है कि विपक्ष इस बार स्पष्ट रणनीति के बिना मैदान में है, जबकि कांग्रेस अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए ज़्यादा दांव लगा रही है। बिहार में कांग्रेस को कम से कम 5% वोट शेयर पाने की चुनौती होगी, ताकि वह फिर से राज्य की राजनीति में प्रासंगिक बन सके।
प्रशांत किशोर कितने बड़े फैक्टर
उन्होंने कहा कि, राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इस बार चुनाव न लड़ने का फैसला किया है, और यह फैसला अपने आप में बहुत कुछ कहता है। इससे संकेत मिलता है कि बिहार की राजनीति में अभी भी एक नए विकल्प की गुंजाइश है, लेकिन विश्वसनीयता ही वह वजह है जिसकी वजह से नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार आज भी मतदाताओं की पहली पसंद बने हुए हैं। रोजगार और आर्थिक मुद्दों पर विपक्ष ने सवाल तो उठाए हैं, लेकिन लोगों के मन में यह भरोसा नहीं दिखता कि तेजस्वी यादव और राहुल गांधी इन मुद्दों पर वास्तव में कोई ठोस काम कर पाएंगे। मतदाता यह भी सोचते हैं कि क्या ये नेता सुशासन का एक नया मॉडल पेश कर सकते हैं। खासकर 30 वर्ष से अधिक उम्र के मतदाता अब भी लालू यादव के शासनकाल को याद करते हैं, जिसे अक्सर "जंगल राज" कहा जाता था। उस दौर की यादें अब भी लोगों के मन में बनी हुई हैं, और यही वजह है कि कुछ मतदाता विपक्ष पर भरोसा करने में हिचकिचा रहे हैं।
विपक्ष ने इस बार भी चुनाव में डर की राजनीति का सहारा लिया है। जैसे 2024 के लोकसभा चुनाव में कहा गया था कि संविधान बदला जा रहा है और पिछड़ी जातियों को उनके अधिकारों से वंचित किया जाएगा, वैसे ही अब कहा जा रहा है कि सरकारी नीतियां अल्पसंख्यकों और दलितों के खिलाफ हैं। दरअसल, विपक्ष मतदाताओं के बीच यह संदेश फैलाने की कोशिश कर रहा है कि अगर मौजूदा सरकार वापस आई, तो समाज के कुछ तबकों को नुकसान होगा। लेकिन यह रणनीति कितनी असरदार होगी, यह अभी कहना मुश्किल है। कुल मिलाकर, बिहार की राजनीति में डर और भरोसे के बीच की जंग इस बार भी साफ तौर पर दिख रही है।
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