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Bihar Chunav 2025: बिहार में किस करवट लेगी सियासी बयार? नीतीश से PK तक...एक्सपर्ट्स से जानें ये सारे फैक्टर

Bihar Election 2025 : बिहार चुनाव में प्रचार प्रसार के लिए सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। लेकिन इस अहम मुकाबले में किसका पलड़ा भारी है? 14 नवंबर को नतीजों का इंतजार करते हुए न्यूज 18 के एडिटर्स अहम 'एक्स-फैक्टर्स' की ओर इशारा कर रहे हैं, जो आखिरकार जीत का फैसला कर सकते हैं। आइए जानते हैं क्या है वो फैक्टर्स

Edited By: Rajat Kumarअपडेटेड Oct 18, 2025 पर 11:22 PM
Bihar Chunav 2025: बिहार में किस करवट लेगी सियासी बयार? नीतीश से PK तक...एक्सपर्ट्स से जानें ये सारे फैक्टर
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अब गिनती के दिन बचे हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अब गिनती के दिन बचे हैं। ऐसे में प्रचार प्रसार के लिए सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। लेकिन इस अहम मुकाबले में किसका पलड़ा भारी है? 14 नवंबर को नतीजों का इंतजार करते हुए न्यूज 18 के एडिटर्स ने अहम 'एक्स-फैक्टर्स' की ओर इशारा कर रहे हैं, जो आखिरकार जीत का फैसला कर सकते हैं। आइए जानते हैं क्या है वो फैक्टर्स।

क्या है जमीनी हालात

 मनीकंट्रोल के चीफ एडिटर नलिन मेहता ने कहा कि, 'जमीनी हालात पर नजर डालें तो बीजेपी इस बार काफी आत्मविश्वास में दिख रही है। शुरुआत से ही उसने चुनावी रणनीति पर मजबूत तैयारी की है, जो करीबी मुकाबलों में बड़ा असर डाल सकती है। पिछली बार लगभग 30 सीटें ऐसी थीं जहां बीजेपी मामूली अंतर से हार गई थी। इस बार सरकार ने महिला रोजगार योजना के तहत 75 लाख महिला मतदाताओं को ₹10,000 देने की घोषणा की है। गौरतलब है कि पिछले तीन चुनावों में बिहार में महिलाओं ने पुरुषों से ज़्यादा मतदान किया है। यही रणनीति मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए फायदेमंद रही थी। अब पार्टी उम्मीद कर रही है कि बिहार में भी यह दांव उतना ही असर दिखाएगा'

विपक्ष के बिखराव का फायदा

उन्होंने आगे कहा कि, बिहार भारत का सबसे युवा राज्य माना जाता है, जहां बड़ी संख्या में युवा मतदाता हैं। यही कारण है कि सभी दल इस वर्ग को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन विपक्ष के सामने इस बार सबसे बड़ी चुनौती यह है कि पिछली बार की तरह अब वह एकजुट नहीं है। 2024 के चुनाव में जब विपक्ष ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी, तब सभी दल एक साथ थे। अब स्थिति बदल चुकी है। कांग्रेस की भूमिका कमजोर हो गई है और राहुल गांधी की सक्रियता भी सीमित दिख रही है। ऐसे में विपक्ष के लिए माहौल पहले जैसा नहीं रहा।

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