Bihar Election 2025: पीएम मोदी और अमित शाह बिहार में करेंगे ताबडतोड रैलियां, संगठन को किया दुरुस्त

Bihar Assembly Election 2025: एक तरफ कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद नकारात्मकता को खतम कर रहा था तो दूसरी ओर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यात्रा ने बीजेपी के कैंपेन को पटरी पर वापस ला दिया। आला सूत्रों का मानना है कि इस यात्रा ने जमीन पर पार्टी की किस्मत बदल दी क्योकि इसमे माई यानि मुस्लिम यादव गठजोड हावी रहा था

अपडेटेड Oct 17, 2025 पर 7:48 PM
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पीएम नरेन्द्र मोदी ने 15 अक्टूबर को बिहार के बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ संवाद किया तो दूसरी तरफ अमित शाह की रैलियां भी शुरु हो गयीं हैं।

Bihar Election 2025: बिहार में एनडीए में टिकट वितरण का काम अब पूरा हो चुका है।उम्मीदवार नामांकन भरने लगे हैं। पीएम नरेन्द्र मोदी ने 15 अक्टूबर को बिहार के बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ संवाद किया तो दूसरी तरफ अमित शाह की रैलियां भी शुरु हो गयीं हैं। देश भर से बीजेपी के शीर्ष नेता और बीजेपी शासित राज्यों के सीएम बिहार पहुंचने लगे हैं। आलम ये है कि कई शीर्ष नेताओं की ड्यूटी कई जिलों में लगायी गयी है ताकि वो ये नजर रख सकें की कहीं कोई उम्मीदवार कमजोर तो नहीं पड़ रहा है। अब बारी है बीजेपी-एनडीए के धुंआधार प्रचार की।

बीजेपी के आला सूत्रों का कहना है कि अब पीएम की कम से कम 10 रैलियां होंगी और अगर जरुरत पड़ी तो 2 रैलियां और बढायी जा सकतीं हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने भी 17 अक्टूबर की रैलियों से प्रचार की शुरुआत कर दी है। बीजेपी सूत्रों के मुताबिक अमित शाह की भी 35 से 40 रैलियां कराने की योजना पार्टी बना रही है। इसके अलावे मनोज तिवारी, पवन सिंह, रवि किशन, निरहुआ जैसे भोजपुरी सितारे भी बीजेपी के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में शामिल हैं।

चंद महीेने पहले बिहार मे स्थितियां

पहले बिहार में एसआईआर के विरोध में कांग्रेस के राहुल गांधी और आरजेडी के तेजस्वी यादव बिहार की यात्रा पर निकल पड़े थे। इस यात्रा के पहले तक तो तेजस्वी यादव ने पूरे बिहार की अपनी यात्राओं के बाद महागंठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रुप में उभऱ चुके थे। लेकिन राहुल गांधी के साथ की यात्रा ने उन्हे नंबर दो साबित कर दिया और साथ ही राहुल गांधी ने तब से अब तक मुख्यमंत्री पद के लिए उनके नाम के ऐलान पर चुप्पी साध कर इतना तो साफ कर दिया कि महागठबंघन बिहार में फिर से महागांठ बंधन बनता जा रहा है। बीजेपी के शीर्ष नेताओ ने कहा कि इस यात्रा का जमीन पर असर बिलकुल नहीं पड़ा है बल्कि इसके विपरित घुसपैठियों का विरोध करने वाली जनता भी क्रांग्रेस और आरजेडी से छिटक गयी है। टिकटों का ऐलान भी हो चुका है और कांग्रेस-आरजेडी अब तक सीटों के बंटवारे का मसला भी नहीं सुलझा सके हैं।

बात चंद महीने पहले की हो रही है तो ये भी नहीं भूलना चाहिए की इतने साल सत्ता में रहने के बाद एनडीए को लेकर एक निगेटिविटी जनता में जरुर फैली हुई थी। रोजगार, पलायन, जैसी समस्याओं को लेकर जनता के मन में नकारात्मकता थी। इस नकारात्मकता को दूर करने का काम भी बीजेपी ने तभी शुरु कर दिया गया था। राहुल-तेजस्वी यात्रा के बीच पीएम मोदी की 7-8 रैलिया बिहार के हर क्षेत्र में करायीं गयी। अमित शाह ने भी 5 संगठनात्मक कार्यक्रम कर जिला स्तर से लेकर बूथ स्तर के कार्यकर्ताओ को साफ किया कि उन्हे जीतने के लिए काम करना है।


मंडल स्तर से बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं में एक निराशा थी। स्तर पर बीजेपी के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता बिहार के शीर्ष नेतृत्व से निराश थे क्योकि उन्हें ये लगने लगा था कि विचारधार पर चलने वाले कार्यकर्ताओं की अनदेखी की जा रही है। ये मूड भांपते ही बीजेपी आलाकमान ने वरिष्ठ नेताओं को कार्यकर्ताओं के साथ संवाद के काम मे लगाया। वो नेता सीधा कार्यकर्ताओं तक गए। बिहार के कुल 1420 मंड़लों और 243 विधानसभा क्षेत्रों तक पहुंच कर मंडल अध्यक्षों, महामंत्रियो और पदाधिकारियो से मुलाकात कीपार्टी के कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद जोड़ा गया।

एक तरफ कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद नकारात्मकता को खतम कर रहा था तो दूसरी ओर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यात्रा ने बीजेपी के कैंपेन को पटरी पर वापस ला दिया। आला सूत्रों का मानना है कि इस यात्रा ने जमीन पर पार्टी की किस्मत बदल दी क्योकि इसमे माई यानि मुस्लिम यादव गठजोड हावी रहा था। बीजेपी के मुताबिक, एक तरफ तो हिंदु एकजुट हुआ तो दूसरी तरफ तेजस्वी समर्थकों का शक्ति प्रदर्शन देख कर पिछडी और अति पिछड़ी जातियां भी औक एकजुट हो कर एनडीए की तरफ खिसक गयीं। इसके बाद सीएम नीतीश कुमार ने महिलाओं और युवाओं के लिए जिन योजनाओं की शुरुआत की वो भी अब गेमचेंजर साबित हो रहीं हैं। महिलाओं के खाते में दस हजार रुपये डालना, युवाओं के लिए भत्ता, 125 युनिट बिजली मुफ्त जैसी योजनाओं ने न सिर्फ उपभोक्ताओं को राहत दी है बल्कि एनडीए सरकार की साख भी बढायी है। इसलिए बीजपी को भरोसा है कि पीएम मोदी के साईलेंट वोटर यानि महिला वोटर ही एक बार फिर एनडीए की नैय्या पार लगाएंगी।

इंतजार सबको है कि बिहार मे ऊंट किस करवट बैठता है। लेकिन इस बार के बहुदलिय संघर्ष में जहां एनडीए एकजुट नजर आ रहा है, वहीं विपक्षा दल बिखरा हुआ और एजेंडा रहित नजर आ रहे हैं। ऐसा कोई अंडरकरेंट नजर नहीं आ रहा है जो जंगल राज से मुक्ति दिलाने वाले नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सके। ऊपर से पीएम मोदी की छवि और उनकी लोकप्रियता का बिहार की जनता पर अमिट असर ही है जो एक बार फिर एनडीए की राह आसान बना रहा है।

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