बिहार चुनाव के पहले चरण में किसका पलड़ा भारी, किस ओर बह रही है सियासी हवा?
Bihar Election 2025: साल 2020 के चुनाव में महागठबंधन (जिसमें RJD, वामदल और कांग्रेस शामिल थे) ने यहां अच्छा प्रदर्शन किया था और 121 में से 63 सीटें जीती थीं। वहीं BJP और JDU ने मिलकर 55 सीटें हासिल की थीं। इस बार भी यह पुराना रिकॉर्ड दिखाता है कि दक्षिण और मध्य बिहार में महागठबंधन को शुरुआत में बढ़त मानी जा रही है
बिहार चुनाव के पहले चरण में किसका पलड़ा भारी, किस ओर बह रही है सियासी हवा?
बिहार में 6 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए मुख्य एजेंडा क्या हैं और स्टार प्रचारक कौन हैं? पिछली बार, गंगा के दक्षिणी इलाके में महागठबंधन को बढ़त मिली थी। क्या NDA इस बार अपनी ताबड़तोड़ चुनावी रणनीति से महागठबंधन को धूल चटा पाएगा? 6 नवंबर को विधानसभा चुनाव का पहला चरण 121 सीटों पर होगा। यह इलाका राजनीतिक इतिहास और सामाजिक समीकरणों के कारण बहुत अहम माना जाता है। यह लोकतंत्र का वो मौका है, जब हर वोट आम जनता की उम्मीदों और चिंताओं को दर्शाता है।
साल 2020 के चुनाव में महागठबंधन (जिसमें RJD, वामदल और कांग्रेस शामिल थे) ने यहां अच्छा प्रदर्शन किया था और 121 में से 63 सीटें जीती थीं। वहीं BJP और JDU ने मिलकर 55 सीटें हासिल की थीं।
इस बार भी यह पुराना रिकॉर्ड दिखाता है कि दक्षिण और मध्य बिहार में महागठबंधन को शुरुआत में बढ़त मानी जा रही है।
चुनाव प्रचार तेज होने के साथ, दो बड़े नेता मुख्य किरदार बन गए हैं- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी। प्रधानमंत्री मोदी का हाल ही में पटना में हुआ रोड शो बहुत भव्य रहा। हजारों महिलाएं सड़क किनारे खड़ी होकर उनका स्वागत कर रही थीं।
रोड शो में JDU नेता ललन सिंह भी मोदी के साथ थे। हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मौजूद नहीं थे। फिर भी मोदी की मौजूदगी ने NDA का संदेश क्षेत्र में मजबूत किया।
लोग कहते हैं कि मोदी और नीतीश की जोड़ी का खास आकर्षण ये है कि दोनों नेता उम्र के इस पड़ाव पर भी जनता के दिलों में पसंद किए जाते हैं।
पटना की गलियां इन उम्मीदों से भरी दिखीं- बदलाव चाहने वालों की भीड़ और 20 साल से सत्ता में बने नीतीश कुमार के साथ-साथ 11 साल से केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी के शासन का सम्मान करने वालों से।
फिर भी युवाओं में बेरोजगारी और पलायन जैसी समस्याओं को लेकर कुछ नाराजगी दिखती है, जिन्हें राजनीतिक वादे और सरकारी नौकरी की घोषणाएं मनाने की कोशिश कर रही हैं।
राहुल गांधी: वोट चोरी के नारे से लेकर मछुआरों के साथ तालाब में तैरने तक
राहुल गांधी की भूमिका चुनावी प्रचार में उतार-चढ़ाव वाली रही है। उन्होंने RJD और CPI-ML के साथ मिलकर 16 दिनों तक मतदाता अधिकार यात्रा निकाली, जिसका मकसद वोटरों की भागीदारी को बढ़ाना था। इस दौरान उनका "वोट चोरी" नारा मतदाताओं की नाराजगी को दर्शाता है। लेकिन इसके बाद लगभग दो महीने तक उनके प्रचार से गायब रहने से विपक्ष की रणनीति पर सवाल उठे।
हाल में राहुल गांधी ने बिहार के एक हिस्से में मछुआरों और नाविकों के साथ तालाब में तैरकर अपने चुनावी प्रचार में एक नई छवि पेश की। वे VIP नेता मुकेश साहनी के संग तालाब में गए, जहां उन्होंने स्थानीय मल्लाह समुदाय के साथ समय बिताया। इस घटना ने सोशल मीडिया पर धूम मचा दी और दूसरे चरण के चुनावों में इसे वोट पाने का तरीका भी माना जा रहा है। मल्लाह और निशाद समुदाय मिथिलांचल के कई इलाकों में प्रभावशाली हैं, जैसे दरभंगा, मधुबनी और कोसी क्षेत्र।
इस तरह राहुल गांधी की पहल ने उनके अभियान को नए रंग दिए हैं, हालांकि उनकी अनुपस्थिति और रणनीति पर अभी भी चर्चा जारी है।
रोजगार, पलायन, भ्रष्टाचार और शिक्षा-स्वास्थ्य
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सबसे बड़े मुद्दे रोजगार, पलायन, भ्रष्टाचार और शिक्षा-स्वास्थ्य के संकट हैं। राज्य में बेरोजगारी दर 3.4% के करीब है, शहरों में यह संख्या युवा वर्ग में ज्यादा गंभीर रूप लेती दिख रही है। कई युवाओं को बेहतर रोजगार की तलाश में बिहार छोड़कर जाना पड़ता है, जिससे पलायन एक महत्वपूर्ण चुनावी विषय बन गया है।
तेजस्वी यादव ने हर परिवार के लिए एक सरकारी नौकरी का वादा किया है, जो अगले पांच वर्षों में 1.3 करोड़ नौकरियों के बराबर है। वहीं एनडीए का मंच भी 1 करोड़ सरकारी नौकरियां देने का वादा करता है, साथ ही महिलाओं के लिए lakhpati बनने के अवसर का प्रस्ताव रखता है।
प्रशांत किशोर की पार्टी जन सूरत ने भ्रष्टाचार, खराब शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर चिंता जताई है। बिहार के मतदाता अब जाति आधारित राजनीति से हटकर रोजगार और विकास के मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।
नीतीश कुमार 20 साल की सियासी पकड़ के साथ महिलाओं में सहानुभूति वोट पा रहे हैं, खासकर उनकी स्वास्थ्य और कल्याण योजनाओं के कारण। वहीं प्रधानमंत्री मोदी की मजबूत उपस्थिति और एनडीए की संगठित चुनाव मशीनरी भी निर्णायक भूमिका निभा रही है।
हालांकि, महागठबंधन को अपनी दोस्ती में सुधार और वोटर्स को जोड़ने के लिए बेहतर रणनीति अपनानी होगी, क्योंकि एनडीए के पास संसाधनों का काफी नियंत्रण है। बिहार की राजनीति इस बार जनतंत्र के संघर्ष के बीच काम, विकास और परिवर्तन की गहरी चाहत को प्रतिबिंबित करेगी।
इस चुनाव की मुख्य लड़ाई महागठबंधन और एनडीए के बीच है, और प्रशांत किशोर के राजनीतिक प्रभाव के कारण यह और भी रोचक बन गई है। बिहार के लोग इस चुनाव में न केवल पार्टियों को परखेंगे, बल्कि अपने भविष्य को भी तय करेंगे।