बिहार के मतदाताओ ने अपना फैसला सुना दिया है। इस बार चुनावों के नतीजे स्पष्ट हैं। मतदाता एक बार फिर राज्य में एनडीए की सरकार चाहते हैं। मतदाताओं पर सत्ता विरोधी लहर का असर नहीं दिखा। यह गौरतलब है कि बीच के कुछ समय को छोड़ दिया जाए तो नीतीश कुमार 2005 से बिहार के मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने के श्री कृष्ण सिन्हा के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री पद की सबसे ज्यादा बार शपथ लेने का रिकॉर्ड भी उन्हीं के नाम है। साफ है कि इस बार के चुनाव नतीजों से सबसे ज्यादा फायदा नीतीश कुमार को हुआ है। आइए जानते हैं और किन दूसरे लोगों को इस चुनाव से फायदा हुआ है।
नीतीश कुमार के लिए और 5 साल सीएम बनने का रास्ता साफ
नीतीश कुमार के लिए अगले पांच साल के लिए मुख्यमंत्री बने रहने का रास्ता साफ हो गया है। गौरतलब है कि 2020 के विधानसभा चुनाव प्रचारों के दौरान उन्होंने मतदाताओं से आखिरी बार अपने पक्ष में मतदान करने की अपील की थी। तब यह माना गया था कि अगर वह चुनाव जीतते हैं तो वह आखिरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन, इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन पर एक बार भरोसा किया। एनडीए ने उनके नेतृत्व में मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया। नीतीश कुमार इस बार एनडीए की जीत के सबसे बड़े नायक बनकर उभरे हैं।
बिहार चुनाव के नतीजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कई तरह से फायदेमंद दिख रहे हैं। केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार जदयू के समर्थन पर निर्भर है। बिहार में फिर से एनडीए की सरकार बनने का मतलब है कि केंद्र की मोदी सरकार को जदयू का समर्थन मिलता रहेगा। दूसरा यह कि चुनाव के नतीजों से संकेत मिलता है कि मतदाताओं के बीच पीएम मोदी का आकर्षण कम नहीं हुआ है। उन्होंने बिहार में कई चुनावी रैलियां की। मतदाताओं से बिहार में विकास का वादा किया। राजद के जंगलराज की याद दिलाई। इसका असर मतदाताओं पर पड़ा। एनडीए अगले साल 5 राज्यों में विधानसभा चुनावों में मोदी मैजिक का फायदा उठा सकती है।
अगले साल होने वाले चुनावों में बीजेपी नए आत्मविश्वास के साथ उतरेगी
भाजपा को भी बिहार चुनावों के नतीजों से काफी फायदा होता दिख रहा है। बिहार में जीत से बीजेपी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। उनका आत्मविश्वास मजबूत हुआ है। यह उत्साह और आत्मविश्वास अगले साल कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में काम आएगा। अगले साल पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे। इनमें सिर्फ असम में एनडीए की सरकार है। पश्चिम बंगाल में बीजेपी की लड़ाई अपनी चिर विरोधी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से है। बीजेपी की एड़ी-चोटी की कोशिश के बाद पिछले दो बार से ममता विधानसभा चुनाव जीतती आ रही हैं। इस बार नए जोश के साथ बीजेपी उन्हें सत्ता से हटाने की कोशिश करेगी।
राजद के सामने पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रखने का चैलेंज
राजद को बिहार चुनाव के नतीजों से सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। पार्टी को पिछले विधानसभा चुनावों के मुकाबले आधी से भी कम सीटें मिली हैं। पार्टी को बिहार में सरकार बनाने के लिए पांच साल तक इंतजार करना होगा। इस हार का असर राजद के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ेगा। तेजस्वी यादव का मुख्यमंत्री बनने का सपना भी चकनाचूर हो गया है। उनके पिता और राजद के संस्थापक लालू प्रसाद यादव की उम्र बढ़ रही है। ऐसे में तेजस्वी यादव पर कार्यकर्ताओं का उत्साह बनाए रखने की बड़ी जिम्मेदारी होगी।
जुनसुराज पार्टी को अगले पांच सालों तक करना होगा इंतजार
जनसुराज पार्टी को भी बिहार चुनाव के नतीजों से बड़ा झटका लगा है। यह पार्टी करीब एक साल पहले बनी थी। हालांकि, इसके संस्थापक प्रशांत किशोर ने करीब तीन साल पहले बिहार विधान सभा चुनावों को लेकर तैयारी शुरू कर दी थी। उन्होंने पूरे राज्य की यात्रा कर मतदाताओं को उन मसलों के बारे में जागरूक करने की कोशिश की थी, जो बिहार के आम आदमी से जुड़े हैं। उनकी रैलियों में भीड़ भी खूब जुटती थी। इससे यह माना जा रहा था कि इस बार के चुनाव में बिहार के मतदाताओं के सामने एक नया विकल्प है। लेकिन, बिहार के मतदाताओं ने प्रशांत किशोर की पार्टी को रिजेक्ट कर दिया है। अभी किशोर ने अपनी अगली रणनीति का खुलासा नहीं किया है।
इंडिया अलायंस में बिखराव बढ़ने के आसार
इंडिया अलायंस के लिए भी बिहार के नतीजे बड़ा झटका से कम नहीं है। कांग्रेस की इस चुनाव में करारी हार हुई है। उसका प्रदर्शन 2020 के चुनावों से भी खराब रहा है। इससे इंडिया अलायंस के बीच कांग्रेस की अहमियत घटेगी। जो पार्टी खुद को बीजेपी के विकल्प के रूप में पेश करना चाहती है, उसका इतना खराब प्रदर्शन पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल को गिराने का काम करेगा। हालांकि, अभी लोकसभा चुनाव काफी दूर है, लेकिन कमजोर कांग्रेस के लिए विपक्षी दलों को एकजुट करना काफी मुश्किल होगा।