Bihar Chunav 2025: बिहार के ये 7 बड़े मुद्दे, पलट सकते हैं पूरे चुनाव का रुख
Bihar Assembly Election 2025: इस बार, जबकि SIR विवाद एक बड़ा मुद्दा है, यह धीरे-धीरे नियमित राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का विषय बन गया है, जिसमें कांग्रेस सांसद राहुल गांधी जैसे नेता "वोट चोरी" का आरोप लगा रहे हैं। आइए इसके अलावा उन दूसरे मुद्दों पर भी एक नजर डालते हैं, जो इस चुनाव में काफी अहम हैं
Bihar Chunav 2025: बिहार को वो 7 बड़े मुद्दे, जो पलट सकते हैं पूरे चुनाव का रुख
बिहार एक बार फिर एक अनोखे विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। चुनाव आयोग (EC) की ओर से विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के बाद राज्य में यह पहला चुनाव है। SIR को चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट के "शुद्धिकरण" के लिए जरूरी बताया था। लेकिन SIR प्रक्रिया उस समय विवादों में घिर गई, जब विपक्ष ने आरोप लगाया कि इससे असली वोटर वंचित रह जाएंगे और मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया। 2020 के आखिर में हुआ पिछला विधानसभा चुनाव भी Covid-19 महामारी के कारण अनोखा था। इस महामारी ने दुनिया भर में तबाही मचाई और भारत सहित लगभग हर देश को प्रभावित किया।
कोविड लॉकडाउन के दौरान बिहार से हजारों प्रवासी श्रमिकों का पैदल घर की ओर पलायन उस समय चुनाव में एक निर्णायक मुद्दा बन गया था। इस बार, जबकि SIR विवाद एक बड़ा मुद्दा है, यह धीरे-धीरे नियमित राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का विषय बन गया है, जिसमें कांग्रेस सांसद राहुल गांधी जैसे नेता "वोट चोरी" का आरोप लगा रहे हैं।
आइए इसके अलावा उन दूसरे मुद्दों पर भी एक नजर डालते हैं, जो इस चुनाव में काफी अहम हैं।
बेरोजगारी सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा
इस चुनाव में बिहार का असली मुद्दा बेरोजगारी है। BJP और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल (यूनाइटेड) के सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) पर युवा और पहली बार वोट देने वाले मतदाताओं का दबाव बढ़ रहा है, जो रोजगार की मांग कर रहे हैं।
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव को लगता है कि इस बात का एहसास हो गया है। उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में युवाओं के लिए रोजगार को नंबर एक मुद्दा बना दिया है।
पूर्व चुनाव रणनीति सलाहकार प्रशांत किशोर के नए संगठन जन सुराज ने भी राज्य की युवा आबादी के लिए रोजगार सृजन के मुद्दे को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में उठाया है।
विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ युवाओं में जबरदस्त असंतोष का आरोप लगाया है, जिससे गठबंधन को मजबूत सत्ता-विरोधी भावना का सामना करने का खतरा होगा।
पलायन
हालांकि बिहार से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर देश भर में मौजूद हैं, लेकिन राज्य में अवसरों की कमी के कारण पलायन करने वाले कामगारों की संख्या में चिंताजनक बढ़ोतरी देखी जा रही है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि बिहार से पलायन बेरोजगारी का परिणाम है, जो कि मुख्य मुद्दा है।
पटना की शोधकर्ता रीना सिंह के अप्रैल में जारी एक स्टडी के अनुसार, बिहार की अर्थव्यवस्था को अक्सर “रेमिटेंस इकोनॉमी” (प्रवासी आय आधारित अर्थव्यवस्था) कहा जाता है, क्योंकि यहां से बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में बाहर जाते हैं। हालांकि, अब ये पैटर्न बदल रहा है, पहले जहां ज्यादतार लोग ग्रामीण इलाकों से दूसरे राज्यों में जाते थे, अब यह प्रवासन ग्रामीण से शहरी इलाकों की ओर ज्यादा हो गया है।
इस बीच, चुनाव आयोग (EC) ने आज घोषणा की कि बिहार में चुनाव दो चरणों में होंगे- 6 नवंबर और 11 नवंबर को। यह तारीखें छठ पूजा के बाद तय की गई हैं, जो राज्य का सबसे अहम त्योहार है और जब ज्यादातर प्रवासी मजदूर अपने घर लौटते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस शेड्यूल से साफ है कि आयोग ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए टाइमिंग को ध्यान से तय किया है। वोटों की गिनती 14 नवंबर को होगी।
भ्रष्टाचार पर नई बहस: प्रशांत किशोर ने बदली चर्चा की दिशा
भ्रष्टाचार भले ही बिहार की राजनीति में पुराना चुनावी मुद्दा रहा हो, लेकिन प्रशांत किशोर और उनके अभियान ‘जन सुराज’ के आने से इसे एक नई दिशा मिल गई है, खासकर युवा मतदाताओं के बीच। किशोर का सीधा संदेश है कि युवाओं को उन भ्रष्ट नेताओं को नकारना चाहिए, जो दशकों से राजनीति में बने हुए हैं, लेकिन जनता के लिए कुछ नहीं किया।
उन्होंने हाल ही में राज्य के मंत्री अशोक चौधरी पर गंभीर आरोप लगाए कि उन्होंने 200 करोड़ रुपए की अवैध संपत्ति बनाई और सरकारी ठेकों पर भारी कमीशन लिया। इसके जवाब में चौधरी ने किशोर को 100 करोड़ रुपए का मानहानि नोटिस भेजा।
इस पूरे विवाद ने प्रशांत किशोर की छवि को “भीड़ से अलग” नेता के रूप में उभारा, जो युवाओं के समर्थन जुटाने में अहम साबित हो सकता है।
वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पहले महिलाओं से बड़ी समर्थन लहर मिली थी, जब उनकी सरकार ने 2016 में शराबबंदी लागू की थी। लेकिन अब शराब माफिया के बढ़ते आरोपों ने इस फैसले की छवि धूमिल कर दी है, और विपक्ष इसे चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है।
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) पर सियासी संग्राम
देश में पहली बार किए गए स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) अभियान को लेकर राजनीतिक बवाल मच गया है। विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, ने इस पर चुनाव आयोग और सत्तारूढ़ भाजपा के बीच “सांठगांठ” के आरोप लगाए हैं। राहुल गांधी का कहना है कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने और हटाने की प्रक्रिया को राजनीतिक रूप से प्रभावित किया गया है।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को “झूठा और भ्रामक” बताते हुए खारिज कर दिया। लेकिन राहुल गांधी ने हमला जारी रखा और इसे “वोट चोरी” तक करार दिया।
SIR के तहत तैयार फाइनल वोटर लिस्ट जारी होने के बाद, भाजपा ने कांग्रेस पर तीखे शब्दों में पलटवार किया। BJP नेता अमित मालवीय ने कहा, “यह तथाकथित ‘वोट चोरी’ नैरेटिव एक ढकोसला है, ताकि कांग्रेस अपनी हार को छिपा सके और लोकतंत्र पर लोगों का भरोसा कमजोर कर सके। यह जॉर्ज सोरोस की सोच से प्रेरित चाल है, जिसे राहुल गांधी अपनी डूबती पार्टी को बचाने का जरिया समझ बैठे हैं।”
इस 22 साल बाद हुए मतदाता सूची पुनरीक्षण में 65 लाख नाम हटाए गए, जिनमें मृत, राज्य से बाहर चले गए या दोहरी पंजीकरण वाले मतदाता शामिल थे।
हालांकि, फाइनल लिस्ट में 18 लाख नए मतदाता जोड़े गए, जिससे कुल संख्या ड्राफ्ट लिस्ट से बढ़ गई।
महिला वोटर्स: नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शराबबंदी नीति ने उन्हें महिलाओं के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया है। जिन परिवारों में शराब की वजह से दिक्कतें थीं, उनके लिए यह फैसला एक राहत की नीति साबित हुई।
इसके अलावा, नीतीश कुमार के पास अपने अनुभव और उम्र का भी बड़ा फायदा है, वे अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी तेजस्वी यादव से करीब 30 साल सीनियर हैं। यह परिपक्वता और अनुभव उन्हें युवाओं के बीच की एंटी-इंकम्बेंसी लहर (विरोध की भावना) को काफी हद तक संतुलित करने में मदद करता है।
महिलाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार ने कई लोकप्रिय योजनाएं भी शुरू की हैं-
सामाजिक सुरक्षा पेंशन में बढ़ोतरी,
75 लाख महिलाओं को ₹10,000 की आर्थिक मदद,
और बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़ी परियोजनाएं।
इन सबकी वजह से महिला वोट बैंक अब भी NDA के लिए सबसे भरोसेमंद और निर्णायक माना जा रहा है।
शिक्षा की गिरती क्वालिटी: युवाओं के भरोसे पर चोट
बेरोजगारी की तरह ही, बिहार में स्कूलों और कॉलेजों की गिरती शिक्षा गुणवत्ता अब एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार पेपर लीक की घटनाएं इस समस्या को और गहरा रही हैं।
सबसे चर्चित मामला रहा NEET 2024 पेपर लीक, जिसमें परीक्षा का प्रश्नपत्र हजारीबाग में NTA के ट्रंक से चोरी कर मेडिकल अभ्यर्थियों को बेचा गया था। इस मामले की जांच में CBI और बिहार की आर्थिक अपराध शाखा (EOU) ने कई लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें मुख्य साजिशकर्ता और मास्टरमाइंड भी शामिल थे।
ऐसी घटनाओं ने उच्च शिक्षा के छात्रों, यानी युवा मतदाताओं में गहरा रोष पैदा किया है। उनका मानना है कि यह सिस्टम पर उनके भरोसे के साथ धोखा है, जो निष्पक्ष और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने वाला होना चाहिए था।
सीमांचल में घुसपैठ का मुद्दा: बिहार चुनाव में नया सियासी ध्रुवीकरण
BJP ने सीमांचल इलाके में अवैध प्रवासियों (Illegal Immigrants) की मौजूदगी को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस पर चिंता जताते हुए कहा कि यह स्थिति राज्य की जनसांख्यिकी (demographics) के लिए खतरा बन सकती है।
बांग्लादेश से आने वाली अवैध घुसपैठ लंबे समय से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और राजनीतिक बहस का अहम हिस्सा रही है। हाल के महीनों में केंद्र और राज्य स्तर पर अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान और कार्रवाई को लेकर कई क्रैकडाउन अभियान चलाए गए हैं।
वहीं, कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों का आरोप है कि बीजेपी का यह दावा सिर्फ मतदाताओं को धार्मिक आधार पर बांटने के लिए किया जा रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि फाइनल वोटर लिस्ट में, अल्पसंख्यक बहुल सीमांचल क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोटर डिलीशन (7.7%) दर्ज किया गया। यह इलाका किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार और अररिया जिलों को शामिल करता है, जहां औसतन 48% मुस्लिम आबादी है।