Get App

जब मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने अपने बेटों को विधान सभा का टिकट नहीं लेने दिया

एक परिवार के एक ही सदस्य चुनाव लड़े, ऐसा कोई नियम कांग्रेस का नहीं था। पर यह संयम श्रीबाबू का था। राजनीति में श्रीबाबू का इतना अधिक प्रभाव था कि यदि वे चाहते थे, तो अपने बेटे को टिकट दिला देना उनके बांये हाथ का खेल था। लेकिन वे राजनीति में गरिमा कायम रखना चाहते थे। पूर्व मुख्यमंत्री भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर की कहानी श्रीबाबू से ही मिलती-जुलती है

Surendra Kishoreअपडेटेड Jul 09, 2025 पर 8:50 AM
जब मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने अपने बेटों को विधान सभा का टिकट नहीं लेने दिया
जब मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने अपने बेटों को विधान सभा का टिकट नहीं लेने दिया

उत्तर बिहार के चम्पारण जिले के कुछ प्रमुख कांग्रेसी नेता सन 1957 में तब के मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह से पटना में मिले। उनसे आग्रह किया कि आप अपने पुत्र शिवशंकर सिंह को विधान सभा चुनाव लड़ने की अनुमति दीजिए। श्रीबाबू ने कहा कि मेरी अनुमति है। किंतु तब मैं खुद चुनाव नहीं लड़ूंगा। क्योंकि एक परिवार से एक ही व्यक्ति को चुनाव लड़ना चाहिए। शिवशंकर सिंह, श्रीबाबू के सन 1961 में निधन के बाद ही विधायक बन सके।

एक परिवार के एक ही सदस्य चुनाव लड़े, ऐसा कोई नियम कांग्रेस का नहीं था। पर यह संयम श्रीबाबू का था। राजनीति में श्रीबाबू का इतना अधिक प्रभाव था कि यदि वे चाहते थे, तो अपने बेटे को टिकट दिला देना उनके बांये हाथ का खेल था। लेकिन वे राजनीति में गरिमा कायम रखना चाहते थे।

धन संग्रह के बारे में भी श्रीबाबू का कैसा संयम था, वह नीचे के विवरण से पता चल जाएगा। उस संयम की तुलना आज के अधिकतर धनलोलुप नेताओं के साथ करके देखिए।

सन 1961 में डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के निधन के 12वें दिन तब के राज्यपाल की उपस्थिति में श्रीबाबू की निजी तिजोरी खोली गई थी। तिजोरी में कुल 24 हजार 500 रुपए मिले। वे रुपए चार लिफाफों में रखे गए थे। एक लिफाफे में रखे 20 हजार रुपए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के लिए थे।

सब समाचार

+ और भी पढ़ें