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बिहार चुनाव: दल बदल की आंधी में जब पांच साल में राज्य को मिले थे 9 मुख्यमंत्री

जिस महामाया सरकार ने अय्यर आयोग का गठन किया था, उस सरकार में कर्पूरी ठाकुर और रामानंद तिवारी भी शामिल थे। आयोग ने छह कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ आरोपों की जांच की थी। पर कर्पूरी ठाकुर की सन 1970 वाली सरकार ने उन छह में से एक नेता को बिहार वित्तीय निगम का अध्यक्ष बना दिया

Surendra Kishoreअपडेटेड Aug 04, 2025 पर 4:50 PM
बिहार चुनाव: दल बदल की आंधी में जब पांच साल में राज्य को मिले थे 9 मुख्यमंत्री
22 दिसंबर 1970 को संसोपा के कर्पूरी ठाकुर पहली बार मुख्यमंत्री बने। कर्पूरी ठाकुर सरकार को भारतीय जनसंघ और संगठन कांग्रेस के साथ-साथ कुछ अन्य छोटे दलों का समर्थन हासिल था

आश्चर्यचनक किंतु सत्य! सिर्फ पांच साल के भीतर बिहार में एक की जगह बारी-बारी कुल नौ मुख्यमंत्री बने। राजनीतिक अस्थिरता और दल बदल की आंधी के बीच साल 1967 से 1972 तक राज्य में बारी-बारी से नौ मुख्यमंत्री रहे। देश में संभवतः ऐसे मामले में यह एक रिकार्ड था। यह भी रिकॉर्ड ही था कि भोला पासवान शास्त्री उसी पांच साल के भीतर तीन बार मुख्यमंत्री बने। उस बीच सन 1969 मे बिहार विधान सभा का मध्यावधि चुनाव भी करवाना पड़ा।

सबसे पहले उन मुख्यमंत्रियों के नाम जान लीजिए। महामाया प्रसाद सिन्हा,सतीश प्रसाद सिंह, बी.पी.मंडल,भोला पासवान शास्त्री,सरदार हरिहर सिंह, दारोगा प्रसाद राय और कर्पूरी ठाकुर। कांग्रेस विरोधी हवा के बीच सन 1967 में हुए आम चुनाव के बाद संयुक्त मोर्चा की सरकार बिहार में बनी। उस सरकार के मुख्य मंत्री थे महामाया प्रसाद सिन्हा। पर,संयुक्त मोर्चा में शामिल और उसके समर्थक 33 विधायकों ने दल बदल करके महामाया सरकार को गिरा दिया। बीपी मंडल को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने के लिए चार दिनों के सतीश प्रसाद सिंह मुख्य मंत्री बने। यह भी एक रिकार्ड ही था।

बीपी मंडल की सरकार सिर्फ 50 दिनों तक चली 

सतीश प्रसाद सिंह के बाद बीपी मंडल के नेतृत्व में मंत्रिमंडल का गठन हुआ। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नेताओं का आरोप था कि कांग्रेस ने संयुक्त मोर्चा में दल बदल को इसलिए बढ़ावा दिया ताकि उसके नेता अय्यर आयोग की जांच के प्रभाव से बच सकें। पर, बीपी मंडल सरकार सिर्फ 50 दिनों तक ही चल सकी। क्योंकि मंडल सरकार को बाहर से समर्थन दे रही कांग्रेस में विद्रोह हो गया।

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