Bihar Assembly Election: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है। इस बार राज्य में 40 साल में पहली बार चुनाव केवल दो चरणों में होने जा रहे है। पहला चरण 6 नवंबर को और दूसरा चरण 11 नवंबर को होगा। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने 6 अक्टूबर को घोषणा की कि पहले चरण में 121 और दूसरे चरण में 122 सीटों पर मतदान होगा, जिसका परिणाम 14 नवंबर को आएगा। बिहार का इस बार का चुनावी कार्यक्रम कई मायनों में दिलचस्प है, खासकर जिस तरह से प्रमुख राजनीतिक गठबंधनों के मजबूत क्षेत्रों को विभाजित किया गया है। आइए आपको बताते है पहले और दूसरे फेज में NDA या महागठबंधन किसका है पलड़ा भारी।
NDA का गढ़ वाली सीटों पर होगी पहले चरण में वोटिंग
पहले चरण की 121 सीटों में से 70 सीटें तिरहुत और मिथिलांचल क्षेत्रों से आती हैं, जहां NDA का पलड़ा भारी है। इस बार पहले चरण में उत्तर बिहार के क्षेत्रों, जैसे तिरहुत, मिथिलांचल और कोसी की सीटें शामिल हैं, जहां बीजेपी का NDA गठबंधन मजबूत है। पहले चरण में जिन प्रमुख जिलों में मतदान होगा, उनमें दरभंगा, मुंगेर, नालंदा, सहरसा और गोपालगंज शामिल है। पिछले तीन चुनावों की तरह इस बार भी बिहार चुनाव की शुरुआत मगध और शाहाबाद (दक्षिण बिहार) से नहीं हो रही है।
महागठबंधन के गढ़ क्यों बांटे गए?
बिहार की सियासत पर नजर रखने वाले पत्रकार बताते हैं कि इस बार महागठबंधन के मजबूत क्षेत्रों को जानबूझकर विभाजित किया गया है। अरवल, औरंगाबाद, गया, जहानाबाद, कैमूर और रोहतास जैसे पारंपरिक महागठबंधन गढ़ वाले जिलों में दूसरे चरण में मतदान होगा। वहीं, बक्सर, भोजपुर, नालंदा और पटना जैसी सीटों पर पहले चरण में मतदान होगा। विशेषज्ञों के अनुसार, चुनाव के चरण कम होने से छोटी पार्टियों को नुकसान और बड़ी पार्टियों को फायदा होता है, जिनके पास संसाधन और मजबूत नेटवर्क होता है।
2 फेज में चुनाव कराने की क्या है वजह?
दो चरणों में चुनाव से केंद्रीय बलों की तैनाती आसान हो जाती है। नेपाल (8 जिले), पश्चिम बंगाल (3) और उत्तर प्रदेश (8) की सीमा से लगे जिले ज्यादातर दूसरे चरण में एक साथ मतदान करेंगे। झारखंड की सीमा से लगे नक्सल प्रभावित जिले (जैसे जमुई, बांका) और सीमांचल क्षेत्र को एक ही चरण में कवर करने से सुरक्षा बलों की आवाजाही आसान होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह विभाजन सुरक्षा चिंताओं और प्रशासनिक सुविधा को ध्यान में रखकर किया गया है।