Delhi Assembly Election Result : दिल्ली के हर हिस्से की अपनी कहानी है, यहां पुरानी दिल्ली की तंग गलियां आज भी मौजूद हैं तो अंग्रेजों की बसाई हुई नई दिल्ली की चमक वैसे ही बरकरार है। आजादी के पहले और बाद में यहां, देश के हर कोने से भीड़ आती और यहीं कहीं गुम होकर रह जाती। कहते हैं अतीत मे दिल्ली 7 बार बसी और हर बार उजड़ी। सैकड़ों सालों तक दिल्ली ने कई हमले झेले, कई विदेशी ताकतों ने इसे लूटा लेकिन ये डटकर खड़ी रही और फिर आबाद होती रही।
दिल्ली में राज करने आए घरानों ने बुलंदी को छुआ तो यहां लोगों ने सल्तनतों की पहचान, मिट्टी में भी मिलती देखी। आज भी ये शहर पूरी बुलंदी के साथ देश की राजधानी है। राजधानी बनने के साथ -साथ यहां खूब सियासी खेल भी खेले गए। ऐसे सियासी खेल, जिनके मोहरों के कारनामे देश के इतिहास में दर्ज हो गए। राजधानी में सियासी उठापटक का ऐसा ही एक खेल, आज से 17 साल पहले देखने को मिला था।
जोधा-अकबर, आंतक की काली छाया और चुनाव
साल 2008, उस दिनों सिनेमा घरों में आशुतोष गोवारिकर की फिल्म 'जोधा-अकबर' कमाल कर रही थी। इस फिल्म में रितिक और एश्वर्या की जोड़ी, दर्शकों को खूब भा रही थी और बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ने 100 करोड़ का आंकड़ा भी पार कर लिया था। पर इसी साल मायानगरी मुंबई पर आंतकियों की काली छाया भी पड़ी थी। 26 नवंबर 2008 की उस रात मुंबई गोलियों की आवाज़ से दहल उठी। हमलावरों ने मुंबई में एक साथ कई जगहों पर हमले किए थे। इन हमलों में 160 लोगों की जानें गईं थी। वहीं इस खौफनाक हमलो के दो दिन बाद देश की राजधानी दिल्ली में चुनाव होने थे।
26 नवंबर को मुंबई में आतंकी हमला हुआ और फिर 29 नवंबर को दिल्ली में वोटिंग, यानी कि डर और खौफ के बीच में दिल्ली वालों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। बीजेपी ने तो चुनाव प्रचार में इस आतंकी हमले का भी काफी जिक्र किया, जिम्मेदार तो केंद्र में बैठी यूपीए सरकार को ठहराया लेकिन जब चुनाव के नजीते सामने आए तो हर कोई हैरान था।
परिसीमन के बाद पहले चुनाव
बता दें कि दिल्ली चुनाव में 2008 में जब दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही थी तो उस समय देश के साथ राजधानी में भी कांग्रेस का राज था।दिल्ली में कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित थीं। वहीं विपक्ष में बैठी बीजेपी दोबारा सत्ता में वापसी की राह तलाश रही थी। 2008 के चुनाव की सबसे दिलचस्प ये थी कि ये चुनाव परिसीमन (Delimitation) के ठीक बाद हो रहे थे। यानी दिल्ली के राजनीतिक भूगोल और चुनावी गणित में बड़ा बदलाव हो चुका था, दिल्ली में अब 70 विधानसभा सीट हो गए थे। हांलाकि जब इस चुनाव के नतीजे सामने आए तो वो बेदह ही चौंकाने वाले रहे। इस चुनाव में उस पार्टी ने भी सीटें जीती जिसका दिल्ली से कोई सीधा वास्ता नहीं था। दिल्ली में बसपा ने पहली बार जीत का स्वाद चखा और उसका वोट शेयर 14 फीसदी रहा।
'हाथी' ने किया सबको सरप्राइज
2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 43 सीटें जीती थीं, वही बीजेपी का आंकड़ा 23 सीटों पर जाकर सिमट गया। इस चुनाव में एक सरप्राइज एलिमेंट बनकर बहुजन समाज पार्टी आई और उसने 2 सीटें अपने नाम की। बसपा गोकलपुरी और बदरपुर सीट जीतने में कामयाब रही थी। गोकलपुर सीट रिजर्व सीट थी, जबकि बदरपुर सीट नान रिजर्व थी। मायावती का कमाल ऐसा रहा कि 5 सीटों पर बसपा दूसरे नंबर पर रही। जानकारों ने माना कि मायावती की वजह से भी इस चुनाव में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा। वहीं कांग्रेस को तीसरी बार लगातार सत्ता मिली और शीला दीक्षित ने इतिहास रच दिया। वे तब देश की पहली ऐसी मुख्यमंत्री बन गईं जिनकी लगातार तीसरी बार ताजपोशी हुई।
लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटना कांग्रेस और शीला दीक्षित के लिए एक बड़ी राजनीतिक जीत माना गया। दिल्ली में मेट्रो का विस्तार, सड़कों और फ्लाईओवर के निर्माण कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हुए। विकास कार्यों का जोर वोटर्स को आकर्षित करने में सफल रहा। यह जीत 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए मनोबल बढ़ाने वाली थी। इस जीत का फायदा कांग्रेस को 2009 को लोकसभा चुनाव में भी हुआ और पार्टी केंद्र में फिर से अपनी सरकारबना पाई।