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Gandhi Jayanti Special: राजकुमार हिरानी की 'लगे रहो मुन्ना भाई' में गांधी जी की इन 5 बातों ने दर्शकों पर डाला था गहरा असर

Gandhi Jayanti Special: हर साल 2 अक्टूबर को भारत में गांधी जयंती मनाई जाती है, जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन है। यह दिन हमें उनके शांति, सच और अहिंसा के विचार याद दिलाता है।

अपडेटेड Oct 02, 2025 पर 5:20 PM
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राजकुमार हिरानी की 'लगे रहो मुन्ना भाई' में गांधी जी की इन 5 बातों ने दर्शकों पर डाला था गहरा असर

Gandhi Jayanti Special: हर साल 2 अक्टूबर को भारत में गांधी जयंती मनाई जाती है, जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन है। यह दिन हमें उनके शांति, सच और अहिंसा के विचार याद दिलाता है और दया और इंसानियत की ताकत दिखाता है। कई फिल्मों ने उनके विचारों को याद किया है, लेकिन कहना होगा कि राजकुमार हिरानी की फिल्म लगे रहो मुन्ना भाई ने इसे सबसे यादगार और असरदार तरीके से दिखाया है।

राजकुमार हिरानी, जिन्हें ह्यूमर को दिल से मिलाने वाली कहानिया बनाने के लिए जाना जाता है, उनमें दर्शकों को हसाने, रुलाने और सोचने पर मज़बूर करने की एक अनोखी कला है और वो भी एक साथ। फिल्म 'मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस.' की ज़बरदस्त सफलता के बाद, वह 2006 में 'लगे रहो मुन्ना भाई' के साथ लौटे, एक ऐसी फिल्म जिसने 'गांधीगिरी' के हमेशा यादगार रहने वाले लेंस के जरिए गांधी की शिक्षाओं को एक नई पीढ़ी तक पहुचाया।

राजकुमार हिरानी कुछ अलग किया, और गांधी के विचारों को फिर से पेश किया लेकिन ताजगी, जोश और गहराई के साथ। इस फिल्म ने एक सिद्धि सच्चाई को फिर साबित किया कि महात्मा गांधी के मूल्य कभी पुराने नहीं होंगे। लगे रहो मुन्ना भाई के जरिए हिरानी ने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया, दरअसल उन्होंने गांधी की विचारधारा को पॉप कल्चर में बदल दिया और ‘गांधीगिरी’ को फैशन बनाया। यह फिल्म देशभर में दया, ईमानदारी और माफी की लहर उठाने वाली सामाजिक जागरूकता की शुरुआत बन गई, जो सिनेमा हॉल से कहीं आगे तक फैली।

हिरानी ने महात्मा गांधी का किरदार निभाने के लिए मशहूर मराठी अभिनेता दिलीप प्रभवलकर को लिया, जिनका अभिनय सरल और असरदार दोनों था। वहीं, संजय दत्त के खुरदरे लेकिन प्यारे मुन्ना भाई के सामने उनका प्रदर्शन स्क्रीन पर जादू जैसा लगा। उनके बीच हर सीन में एक खास भावनात्मक असर था। ऐसे ने हिरानी की खूबी यह थी कि उन्होंने आम, साधारण हालातों को गांधी के तरीके से दिखाया, जिसे कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता था।

तो चलिए इस गांधी जयंती पर, हम फिर से उन कुछ अनमोल जीवन के सबक़ों को याद करते हैं जो लगे रहो मुन्ना भाई ने हमें दिए, कुछ ऐसे सबक जिन्हें हमें कभी नहीं भूलना चाहिए।


1) अहिंसा में ही असली ताकत है

फिल्म का सबसे दिल छू लेने वाला पल तब आता है जब मुन्ना अपने गुस्से में भड़क रहा होता है और गांधी का हल्का लेकिन पक्का “मुन्ना…” उसे रोक देता है। यह सीन हमें खूबसूरती से याद दिलाता है कि ताकत ज़बरदस्ती में नहीं, बल्कि संयम में होती है। हिरानी ने अहिंसा के इस पुराने सिद्धांत को ऐसा रूप दिया जिसे हर कोई समझ सके, और दिखाया कि शांत साहस किसी भी हथियार से ज़्यादा मजबूत होता है।

2) सत्यमेव जयते

सच बोलना मुश्किल हो सकता है, लेकिन यही एक रास्ता है जो सच्ची शांति देता है। वह सीन जब मुन्ना अपने प्यार (विद्या बालन) से अपनी झूठी बातें कबूल करता है, एक तरफ़ वो दिल को तोड़ने वाला था लेकिन दूसरी तरफ सच से मिले राहत का एहसास भी दिलाता है। उस पल में हिरानी ने दर्शकों को याद दिलाया कि ईमानदारी शुरुआत में दर्द महसूस करा सकती है, लेकिन इससे हमेशा सम्मान और लंबे समय तक रहने वाली खुशी मिलती है।

3) अपने दुश्मनों से प्यार करो

हिरानी की कहानी कहने की कला इस बात में दिखती है कि मुन्ना अपने दुश्मन, बॉमन ईरानी के किरदार, के साथ कैसे पेश आता है। बदला लेने की बजाय, मुन्ना हर दिन उन्हें ताजे फूल भेजता है और नोट में सिर्फ लिखता है, “जल्दी ठीक हो जाओ।” यह नफरत की जगह प्यार का आसान तरीका गांधी की सोच को किसी उपदेश से भी बेहतर दिखाता है। यह बताता है कि दया सच में दुश्मनी को कम कर सकती है।

4) दया से सब घाव भर जाते हैं

जादू की झप्पी” से लेकर छोटे-छोटे ख्याल रखने के काम तक, मुन्ना भाई ने एक पूरी पीढ़ी को सिखाया कि दया और अपनापन के लिए किसी तरह के पैसे नहीं लगते। हालांकि, यह सब कुछ बदल सकते हैं। गांधीगिरी सिर्फ गांधी का पालन करने के बारे में नहीं थी; यह उनकी सोच को सबसे सरल और इंसानी तरीकों में जीने के बारे में थी।

5) बदलाव आपसे शुरू होता है

चाहे वह मुन्ना दूसरों को सच बोलने के लिए प्रेरित कर रहा हो या सही के लिए खड़ा हो रहा हो, लगे रहो मुन्ना भाई ने हमें याद दिलाया कि सामाजिक बदलाव के लिए कोई बड़ी क्रांति जरूरी नहीं बल्कि यह एक ईमानदार कदम से शुरू होता है। हिरानी का संदेश साफ था: अगर हम सही को आसान विकल्प के बजाय चुनें, तो हर कोई बदलाव का हिस्सा बन सकता है।

लगभग दो दशक बाद भी, लगे रहो मुन्ना भाई उतना ही ताज़ा और जुड़ाव महसूस करने वाला लगता है जितना कि इसे रिलीज के समय लगा था। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं थी बल्कि यह एक आंदोलन था जिसने हँसी, भावना और सोच के जरिए गांधी को पूरी पीढ़ी के सामने फिर से पेश किया।

इस गांधी जयंती पर, जब पूरी दुनिया शांति और सत्य का जश्न मना रही है, तब हिरानी की रचना आज भी अपना सबसे शक्तिशाली संदेश दे रही है। क्योंकि कभी-कभी, पूरी दुनिया को बस एक “जादू की झप्पी” की जरूरत होती है।

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