फिल्म: जॉली एलएलबी 3
फिल्म: जॉली एलएलबी 3
रेटिंग: 3/5
निर्देशक: सुभाष कपूर
कलाकार: अक्षय कुमार, अरशद वारसी, सौरभ शुक्ला, गजराज राव, हुमा कुरैशी, अमृता राव, सीमा बिस्वास
Jolly LLB 3 Review: साल 2013 में सुभाष कपूर निर्देशित फिल्म जॉली एलएलबी को रिलीज किया गया था। इसमें मेरठ का जगदीश त्यागी (अरशद वारसी) उर्फ जॉली लैंडक्रूजर हिट एंड रन का केस लेता है और लड़ता है। चार साल बाद आई इस फ्रेंचाइजी की दूसरी फिल्म का बेस वही रहता है, लेकिन जॉली के किरदार में दिखते हैं कानपुर का जगदीश्वर मिश्रा यानी अक्षय कुमार। दोनों जॉली की खासियत है कि दोनों ही अनाड़ी है, अल्हड़ हैं, लेकिन ईमानदार भी हैं।
अब करीब आठ साल बाद एक फिर सुभाष कपूर अपने दोनों जॉली के साथ लौटे हैं। यहां पर कहानी की नींव वही पुरानी है बस दोनों जाली एक साथ आ गए हैं। इस बार कहानी का स्तर काफी शानदार और बड़ा है, लेकिन जौलीनेस (प्रसन्नता) पिछली दोनों फिल्मों से थोड़ी कम रह गई है। इस बार किसान आत्महत्या और भूमि अधिग्रहण के मामले फिल्म में उठते दिखते है। कहानी साल 2011 में उत्तर प्रदेश के भट्टापरसौल में हुई घटना से ली गई है, लेकिन दिखाई कल्पनिक गई है।
कहानी की शुरुआत राजस्थान के परसौल गांव से होती है। उद्योगपति हरिभाई खेतान को उनके ड्रीम प्रोजेक्ट "बीकानेर टू बोस्टन" के लिए किसान राजाराम सोलंकी अपनी पुश्तैनी जमीन बेचने से साफ मना कर देता है। वह कर्ज ली गई राशि नहीं वापस कर पाता है। ऐसे में तहसीलदार उसकी जमीन का अस्थायी मालिकाना हक देनदार के हाथों में सौंप देता है। इससे आहत राजाराम आत्महत्या कर लेता है। कुछ साल बाद, राजाराम की विधवा जानकी (सीमा बिस्वास) की बदौलत यह मामला दिल्ली की अदालत में जाता है।
शुरुआत में जगदीश्वर मिश्रा इस मामले को जानकी के खिलाफ लड़ता दिखता है। वहीं जानकी की तरफ से जगदीश त्यागी मुकदमा कोर्ट में पेश करता है, लेकिन मुकदमा हार जाता है। फिल्म में तब मोड़ आता है जब जगदीश्वर और जगदीश आपसी लड़ाई को साइड करके जानकी का मुकदमा एकसाथ लड़ने लगते हैं। वहीं खेतान की पैरवी हाई प्रोफाइल वकील विक्रम करता दिखता है, जिसकी दलील होती है कि विकास बुलेट ट्रेन की गति से होना बुरी बात नहीं हैं।
जॉली फ्रेंचाइजी (Jolly LLB 3 Review) की तीसरी किस्त जॉली एलएलीबी 3 सुभाष कपूर ने अपने अंदाज में पेश की हैं। इंटरवल से पहले कहानी दोनों जॉली के बीच नोकझोंक और प्रतिद्वंद्वता को दिखाती है। साथ में किसानों का मुद्दा और अपील दर्शती है। फिल्म को और बेहतर किया जा सकता था। कुछ दृश्यों को देखते हुए लगता है कि हरिभाई पूरी ताकत से दोनों जॉली के खिलाफ चीजें पेश नहीं कर पा रहे हैं।
दरअसल, हरिभाई के प्रभुत्व और वर्चस्व को देखते हुए उम्मीद है कि वह और उसकी कानूनी टीम अदालत में पलटवार पर पलटवार करते दिखेंगे, लेकिन ऐसा नहीं होता। शायद यही वजह है कि सौरभ शुक्ला के जज की भूमिका ज्यादा शानदार लग रही है। वह पुलिस अधिकारी (शिल्पा शुक्ला) को रिझाने के साथ-साथ हरिभाई जैसे लालची व्यापारियों पर लगाम लगाने में भी समय लगता दिखता है। बहरहाल, क्लाइमेक्स को सुभाष ने शानदार क्रिएट किया है। लेखन की बात करें तो कहीं कहीं थोड़ा फीका तो कहीं-कहीं थोड़ा तीखा है।
कॉमेडी के लिए वास्तविक घटनाओं को सांकेतिक तौर पर दिखाया गया है। उदाहरण के लिए एक व्यवसायी वीएम का एक संक्षिप्त संदर्भ है, जो भारी कर्ज न चुका पाने के बाद लंदन भाग गया है। तकनीकी पक्ष में मंगेश धाकड़े का बैकग्राउंड स्कोर एकदम सटीक है। सिनेमेट्रोग्राफर रंगराजन रामबद्रन ने दिल्ली से राजस्थान और अदालती माहौल को बारीकी से कैमरे में उतारा है। परवेज शेख का एक्शन और वीरा कपूर भी अच्छी लग रही हैं।
स्क्रीन प्रेजेंस की बात कहें तो अरशद वारसी के मुकाबले अक्षय कुमार को ज्यादा को ज्यादा वन लाइनर दिए गए हैं। दोनों की केमिस्ट्री मजेदार है खास तौर पर इंटरवल के बाद अदालती कार्यवाही के दौरान शानदार लगती है। सीमा बिस्वास के पास फिल्म में मौके नहीं रहे हैं, लेकिन उनकी खामोशी ध्यान खींचने वाली है। खलनायक की भूमिका में गजराज राव की भूमिका को लेखन कमजोर है। राम कपूर अपनी भूमिका में जच रहे हैं। वहीं हुमा कुरैशी और अमृता राव को कम स्क्रीन टाइम दिया गया है।
फिल्म का सबसे खास आकर्षण सौरभ शुक्ला है। उनकी लाजवाब टाइमिंग और साधारण से साधारण डायलॉग को भी हंसी के ठहाकों में बदलना फिल्म के लिए वरदान साबित हुआ है। वो हर फ्रेम में छा गए हैं। जॉली एलएलबी 3 किसानों की अहमियत और जिम्मेदारी को दर्शकों के बीच पेश करती हैं।
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