जिंदा या बेसुध? हवा में मौत की आहट और दिमाग की आखिरी लड़ाई, एयर इंडिया प्लेन क्रैश से पहले कैसी होगी यात्रियों की मनोदशा
एयर इंडिया क्रैश के पीड़ितों के परिवार अभी भी एक भयावह सवाल से परेशान हैं: विमान में सवार उनके प्रियजनों ने उन आखिरी पलों में क्या अनुभव किया होगा? क्या विमान के टकराने के समय वे होश में थे? न्यूरोलॉजिस्ट, मनोवैज्ञानिक और ट्रॉमा एक्सपर्ट से बात कर इन सवालों के जवाब खोजने की कोशिश की गई, जिनसे ये जानने और समझने में मदद मिली कि ऐसी भीषण और घातक घटना के दौरान आखिर इंसानी दिमाग कैसा फील करता है और कैसे काम करता है
Air India Plane Crash: एयर इंडिया प्लेन क्रैश से पहले कैसी होगा यात्रियों की मनोदशा (IMAGE- AI)
कुछ ही सेकंड में, अहमदाबाद से लंदन तक की एक उड़ान भारत की सबसे घातक विमान दुर्घटनाओं में से एक बन गई। 12 जून को एयर इंडिया की फ्लाइट AI 171, बोइंग 787 ड्रीमलाइनर, उड़ान भरने के कुछ ही समय बाद क्रैश हो गई, जिसमें 241 यात्रियों की मौत हो गई। जांचकर्ता इस बात का पता लगाने में लगे हैं कि आखिर क्या गलती हुई, लेकिन पीड़ितों के परिवार अभी भी एक भयावह सवाल से परेशान हैं: विमान में सवार उनके प्रियजनों ने उन आखिरी पलों में क्या अनुभव किया होगा? क्या विमान के टकराने के समय वे होश में थे?
News18 की रिपोर्ट के अनुसार, न्यूरोलॉजिस्ट, मनोवैज्ञानिक और ट्रॉमा एक्सपर्ट से बात कर इन सवालों के जवाब खोजने की कोशिश की गई, जिनसे ये जानने और समझने में मदद मिली कि ऐसी भीषण और घातक घटना के दौरान आखिर इंसानी दिमाग कैसा फील करता है और कैसे काम करता है।
हवाई हादसे के आखिरी पल में शरीर और दिमाग कैसे करते हैं प्रतिक्रिया?
एयरक्राफ्ट जैसे ही अचानक नीचे गिरने लगता है, हमारे शरीर और दिमाग में प्राचीन ‘सर्वाइवल सिस्टम’ एक्टिव हो जाते हैं। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि इस दौर में इंसानी शरीर ज़रदस्त डर के चलते एड्रेनालिन हार्मोन छोड़ता है, जिससे दिल की धड़कन तेज होती है, सांसें उखड़ने लगती हैं और मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं।
गाजियाबाद के यशोदा सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल की कंसल्टेंट साइकोलॉजिस्ट डॉ. शोभा शर्मा कहती हैं, “हाई-इम्पैक्ट क्रैश के ठीक पहले इंसान का शरीर अलर्ट मोड में चला जाता है। कुछ लोगों को इस दौरान बहुत तेज सोचने की क्षमता मिलती है, तो कुछ को टनल विजन या समय के धीमे चलने का भ्रम भी होता है।”
क्या क्रैश के वक्त इंसान को होश रहता है?
नई दिल्ली के श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट के न्यूरोलॉजी डायरेक्टर डॉ. रजुल अग्रवाल के मुताबिक, जब विमान जमीन से टकराता है, तब दिमाग को गंभीर चोट पहुंचती है। क्रैश की तीव्रता, एंगल, व्यक्ति की सीट लोकेशन और सीटबेल्ट पहनने जैसे फैक्टर्स इस पर असर डालते हैं कि होश बना रहता है या नहीं।
डॉ अग्रवाल बताते हैं, “ऐसे टकराव में दिमाग खोपड़ी से जोर से टकरा सकता है, जिससे ‘डिफ्यूज एग्जोनल इंजरी’ जैसे जानलेवा ब्रेन डैमेज हो सकता है।”
चेन्नई के अपोलो हॉस्पिटल्स के इमरजेंसी रिस्पॉन्स प्रमुख डॉ. धवपलानी अलगप्पन का मानना है कि ज्यादातर यात्रियों ने आग लगने से पहले ही होश खो दिया होगा। “इतनी ऊंचाई और रफ्तार पर टक्कर होने से सिर और बाकी अंगों को भयानक नुकसान होता है। शायद कुछ यात्री आखिरी सेकेंड तक होश में रहे हों, लेकिन ज्यादातर नहीं।”
ब्रेन इंजरी और क्रैश प्रोफाइल के अनुसार बदलती है स्थिति
फरीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल के न्यूरोसर्जन डॉ. आनंद बालासुब्रमण्यम कहते हैं, “क्रैश के समय अचानक रुकने से शरीर के अंदरूनी अंगों को तेज झटका लगता है। कई बार तंत्रिकाएं (न्यूरॉन्स) एक-दूसरे से अलग हो जाती हैं, जिससे ब्रेन फंक्शन ठप हो सकता है।”
हालांकि ये सब कुछ दुर्घटना की क्रैश डायनामिक्स पर निर्भर करता है। उदाहरण के तौर पर, 2014 की मलेशियन एयरलाइंस फ्लाइट MH17 की हवा में मिसाइल से टक्कर हुई थी, जिसके बाद यात्री काफी समय तक होश में रहे हो सकते हैं। इसी तरह 2009 की एयर फ्रांस फ्लाइट 447 जब हवा में रुक कर 3 मिनट में नीचे आई, तो ऐसा माना गया कि कई यात्री इस दौरान सबकुछ महसूस कर रहे थे – जिससे उनकी मानसिक पीड़ा और गहरी हो गई।
डॉ. आनंद कहते हैं, “अगर क्रैश बहुत तेज और अचानक होता है, तो यात्री तुरंत बेहोश हो जाते हैं। लेकिन अगर गिरावट धीमी और लंबी हो, तो इंसान आखिरी सेकंड तक सबकुछ जान रहा होता है – और यह कहीं ज्यादा मनोवैज्ञानिक रूप से दर्दनाक होता है।”
हादसे के बाद क्यों जरूरी है यह समझ?
एयर इंडिया (Air India) के हालिया हादसे के बाद, एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह समझना बेहद जरूरी है कि अंदरूनी तौर पर यात्रियों ने क्या झेला। इससे न केवल परिवारों के लिए सहानुभूति आधारित सपोर्ट सिस्टम बनाया जा सकता है, बल्कि इकलौते जिंदा बचे विश्वाश कुमार रमेश की मानसिक देखभाल और एविएशन सेफ्टी सुधार की दिशा में भी कदम उठाए जा सकते हैं।