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जिन्होंने आतंकवादी हिंसा में अपनों को खोया, उनके जख्म पर मलहम लगाने की जम्मू-कश्मीर में शुरू हुई बड़ी कवायद

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने विशेष अभियान शुरु किया है। ये अभियान उन परिवारों को राहत देने के लिए है, जिन्होंने पिछले साढ़े तीन दशक के आतंकवाद में अपनों को खोया, लेकिन न तो नेताओं ने और न ही अधिकारियों ने उनकी खोज-खबर ली। न्याय और मदद की आस दशकों से लगाये बैठे इन परिवारों के पास अब सिन्हा की अगुआई में प्रशासन पहुंच रहा है और नौकरी सहित हर किस्म की सहायता देने जा रहा है

Brajesh Kumar Singhअपडेटेड Jul 14, 2025 पर 6:10 PM
जिन्होंने आतंकवादी हिंसा में अपनों को खोया, उनके जख्म पर मलहम लगाने की जम्मू-कश्मीर में शुरू हुई बड़ी कवायद
आतंक पीड़ित महिला को सरकारी नौकरी का नियुक्ति पत्र देते हुए जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा

रविवार, 13 जुलाई, दिन के साढे़ ग्यारह बजे। कश्मीर यूनिवर्सिटी का बारामूला स्थित नॉर्थ कैंपस। इसके ऑडिटोरियम में लोग खचाखच भरे हुए हें। महिलाएं, युवक, बुजुर्ग, बच्चे सभी। सामने मंच पर हैं जम्मू- कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, वरिष्ठ अधिकारियों के साथ, चीफ सेक्रेटरी से लेकर डीजीपी तक। मंच से उदघोषणा होती है, वजाहत स्वागत भाषण देंगे।

वजाहत किसी अधिकारी का नाम नहीं है, बल्कि ये एक युवा है। कश्मीरी युवा, बारामूला का ही रहने वाला। युवाओं को अपने साथ जोड़कर एक स्वयंसेवी संगठन चलाता है, उन लोगों से संपर्क साधने के लिए, उनकी समस्याएं अधिकारियों, प्रशासन तक ले जाने के लिए, जिन्होंने अपनों को खोया है, घाटी में 1989 से शुरु हुए आतंकवाद के कारण।

वो बताता है कि कश्मीर में ‘कन्फ्लिक्ट इकोनॉमी’ से फायदा उठाने और इसके लिए आतंकवाद को भड़काने वाले नेताओं और अलगाववादियों के गठजोड़ ने आतंक की भेंट चढ़े लोगों के परिवार का क्या हाल किया। कई मामलों में न तो एफआईआर लिखी गई, और न ही कोई मुआवजा दिया गया, सरकारी नौकरी तो दूर की बात रही। दहशतगर्दी के ये कारोबारी पीड़ित परिवारों के आंसू पोछने में यकीन नहीं रखते थे।

आतंकवादियों के सताए लोगों की मदद 

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